- प्रशांत किशोर एक बार फिर से बिहार में पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं
- जन सुराज दल के नेता अब युवाओं को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं
- इस बीच ऐसी भी चर्चा है कि जन सुराज और कांग्रेस के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है, लेकिन अभी पुष्टि नहीं
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद कुछ समय तक शांत रहने के बाद प्रशांत किशोर एक बार फिर सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं. हाल में ही पटना में युवाओं के साथ हुआ उनका संवाद कार्यक्रम इस बात का साफ संकेत है कि वे फिलहाल राजनीति से पीछे हटने वाले नहीं हैं। चुनाव परिणाम भले ही उनके पक्ष में निर्णायक न रहे हों, लेकिन प्रशांत किशोर इसे अंत नहीं, बल्कि एक लंबी राजनीतिक यात्रा का एक पड़ाव मानते हैं. इसी सोच के साथ अब वे दोबारा मैदान में उतरते नजर आ रहे हैं.
नई तैयारी में प्रशांत किशोर
पटना में हुआ यह संवाद कार्यक्रम केवल एक औपचारिक बैठक नहीं था. इसमें युवाओं की भागीदारी, सवालों की तीखापन और प्रशांत किशोर की भाषा, तीनों ने यह साफ कर दिया कि आने वाले दिनों में उनका फोकस बिहार की राजनीति में युवाओं और नए मतदाताओं पर रहने वाला है. उन्होंने बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा और अवसरों की कमी जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा और कहा कि बिहार की राजनीति में सबसे ज्यादा नुकसान युवाओं का हुआ है.
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युवाओं पर फोकस
बिहार की राजनीति लंबे समय से जाति और परंपरागत वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में यह भी दिखा है कि युवा मतदाता इन पारंपरिक समीकरणों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. यही वह खाली जगह है, जहां जनसुराज अपनी जमीन तलाशने की कोशिश कर रहा है. प्रशांत किशोर का मानना है कि अगर युवाओं को एक भरोसेमंद मंच और स्पष्ट दिशा दी जाए, तो वे राजनीति की धारा बदल सकते हैं.
लॉन्ग टर्म गोल
पटना संवाद में उन्होंने साफ कहा कि जनसुराज कोई “एक चुनाव की पार्टी” नहीं है, बल्कि यह बिहार को बदलने की दीर्घकालिक मुहिम है. उनका यह बयान यह भी बताता है कि वे फिलहाल तात्कालिक सत्ता की राजनीति से ज्यादा संगठन और सामाजिक आधार मजबूत करने पर जोर देना चाहते हैं.
गठबंधन की राजनीति करेंगे प्रशांत?
चुनाव से पहले प्रशांत किशोर खुद को बिहार की राजनीति में एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर रहे थे. लेकिन नतीजों ने यह भी दिखाया कि बिना बड़े गठबंधन और गहरे संगठन के सत्ता तक पहुंचना आसान नहीं है. इसके बाद उनकी रणनीति में बदलाव साफ नजर आता है. अब वे सीधे सत्ता की दौड़ में शामिल होने की बजाय राजनीतिक दबाव समूह की भूमिका निभाते दिख रहे हैं.
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जन सुराज का मुख्य लक्ष्य
जनसुराज अब सरकार और मुख्यधारा की पार्टियों पर मुद्दों के जरिए दबाव बनाने की कोशिश करेगा. बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं और भ्रष्टाचार जैसे विषयों पर लगातार आवाज उठाकर वे खुद को राजनीतिक बहस के केंद्र में बनाए रखना चाहते हैं.
कांग्रेस से नजदीकी!
इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस से उनकी बढ़ती नजदीकियों को लेकर है. राजनीतिक गलियारों में यह बात जोर पकड़ रही है कि प्रशांत किशोर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच बातचीत का सिलसिला तेज हुआ है. हालांकि दोनों तरफ से इस पर खुलकर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन संकेत साफ हैं कि एक-दूसरे के प्रति नरमी बढ़ी है. कांग्रेस बिहार में लंबे समय से संगठनात्मक कमजोरी से जूझ रही है. उसके पास न तो मजबूत जमीनी नेटवर्क है और न ही कोई स्पष्ट राजनीतिक नैरेटिव. वहीं प्रशांत किशोर के पास रणनीति, डेटा और चुनावी प्रबंधन का अनुभव है. ऐसे में दोनों के बीच मुद्दा आधारित तालमेल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. हालांकि यह भी माना जा रहा है कि जनसुराज का कांग्रेस में विलय फिलहाल दूर की बात है.
जन सुराज की नई रणनीति
पहला, युवाओं और मध्यम वर्ग पर पकड़ मजबूत करना. इसके लिए संवाद कार्यक्रम, यात्राएं और सोशल मीडिया अभियान तेज किए जा सकते हैं. दूसरा, सरकार को मुद्दों पर घेरना। जनसुराज खुद को विपक्ष की भूमिका में रखकर जनता से जुड़े सवालों को लगातार उठाएगा.तीसरा, चुनावी जल्दबाजी से बचना. फिलहाल जनसुराज का फोकस सीटों के गणित से ज्यादा अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करने पर रहेगा. और चौथा, अन्य दलों से सीमित सहयोग. कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों के साथ मुद्दा आधारित तालमेल संभव है, लेकिन अपनी अलग पहचान बनाए रखना उनकी प्राथमिकता होगी.
पटना में युवाओं से संवाद के बाद यह साफ हो गया है कि प्रशांत किशोर राजनीतिक हाशिये पर जाने को तैयार नहीं हैं. वे खुद को एक वैकल्पिक राजनीतिक आवाज के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जो सत्ता में न होकर भी सत्ता को सवालों के कटघरे में खड़ा कर सके. यह रणनीति उन्हें सीधे चुनावी जीत भले न दिलाए, लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी मौजूदगी को लगातार प्रासंगिक बनाए रखेगी. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर की दोबारा सक्रियता यह संकेत देती है कि जनसुराज की राजनीति अभी खत्म नहीं हुई है. युवाओं से संवाद, सरकार पर मुद्दों का दबाव और कांग्रेस से संभावित नजदीकियां, ये तीनों मिलकर आने वाले समय में बिहार की राजनीति में नए समीकरण गढ़ सकते हैं. फिलहाल इतना तय है कि प्रशांत किशोर खुद को सिर्फ चुनावी रणनीतिकार नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति को दिशा देने वाली एक सक्रिय राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करने की कोशिश में हैं.
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