सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने जस्टिस बीआर गवई.
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने आज सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश (Supreme Court CJI Justice BR Gavai) के तौर पर शपथ ले ली है. वह सुप्रीम कोर्ट के 52वें सीजेआई बन गए हैं. देश के इस अहम पद पर बैठने से पहले उन्होंने अपनी मां का आशीर्वाद लिया. CJI पद की शपथ लेते ही सबसे पहले उन्होंने अपनी मां कमलताई गवई के पैर छुए.
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जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध सीजेआई हैं. आजादी के बाद वह देश में दलित समुदाय से दूसरे सीजेआई हैं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर उनका कार्यकाल छह महीने का होगा. उन्होंने जब पद की शपथ ली तो इस ऐतिहासिक पल के साक्षी पीएम मोदी, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत तमाम गणमान्य अतिथि बने.

देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस गवई की मां का कहना है कि उनका बेटा डेयरडेविल है, जिसे कोई झुका नहीं सकता है. वह देश के लोगों को पूरी ईमानदारी के साथ इंसाफ देगा.

CJI बीआर गवई का मुंबई से दिल्ली तक का सफर
- CJI गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा.
- 23 नवंबर को 65 साल की उम्र पूरी होने पर CJI गवई का कार्यकाल खत्म हो जाएगा.
- जस्टिस गवई 24 मई 2019 को हाई कोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए थे.
- जस्टिस गवई का जन्म अमरावती में 24 नवंबर 1960 को हुआ था.
- उनको 14 नवंबर 2003 को बंबई हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था.
- 12 नवंबर 2005 को वह हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने.
- 16 मार्च 1985 को वह बार में शामिल हुए थे.
जस्टिस वीआर गवई के अहम फैसले जानें
न्यायधीश रहते जस्टिस वीआर गवई ने कई अहम फैसले दिए, जिनकी खूब चर्चा हुई. उनके मुख्य फैसलों में बुलडोजर जस्टिस, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखना, डिमोनेटाइजेशन को बरकरार रखना, अनुसूचित जाति कोटे में उप-वर्गीकरण को बरकरार रखना, शराब नीति में के कविता को जमानत देना, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी की दो बार आलोचना करना शामिल हैं.
1985 में की वकालत की शुरुआत
नए CJI गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की. शुरुआती सालों में उन्होंने बार. राजा एस. भोसले (पूर्व महाधिवक्ता एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) के साथ 1987 तक कार्य किया. इसके बाद 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की.

जस्टिस गवई ने 1990 के बाद मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस की, जिसमें संवैधानिक और प्रशासनिक कानून विशेष क्षेत्र रहे. वह नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील रहे. इसके अलावा, उन्होंने सीकोम, डीसीवीएल जैसी विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं और निगमों, विदर्भ क्षेत्र की कई नगर परिषदों के लिए नियमित रूप से पैरवी की.
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