
- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने का आदेश दिया है.
- अदालत ने जज की न्यायिक क्षमता पर सवाल उठाए और उन्हें वरिष्ठ जज के साथ डिवीजन बेंच में बैठाने का निर्देश दिया.
- इलाहाबाद HC के जज ने एक मामले में आपराधिक शिकायत खारिज करने से इनकार किया था, जिस पर SC ने आपत्ति जताई.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के आपराधिक मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी है. अदालत ने जज की क्षमता पर भी सवाल उठाए हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के जज द्वारा माल की बिक्री की राशि की वसूली के मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के 'सबसे खराब और सबसे गलत आदेशों में से एक' कहे जाने पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने एक अभूतपूर्व आदेश में यह निर्देश दिया है.
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इलाहाबाद HC के जज पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
अदालत ने कहा कि जज को उनके सेवानिवृत्त होने तक किसी भी आपराधिक मामला सुनवाई के लिए न दिया जाए और उन्हें हाईकोर्ट के एक अनुभवी वरिष्ठ जज के साथ एक डिवीजन बेंच में बैठाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज की न्यायिक प्रक्रिया की जानकारी और विवेक पर हैरानी जताते हुए उनको सीनियर जज की पीठ में बैठाने की सिफारिश की है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने यह भी कहा कि इन जज को फिलहाल स्वतंत्र रूप से कोई भी आपराधिक मामला सुनवाई के लिए आवंटित नहीं किया जाना चाहिए.
HC के जज को एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ डिवीजन बेंच में बैठाने का आदेश
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर गंभीर आपत्ति जताई, जिसमें एक आपराधिक शिकायत को यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया था कि धन की वसूली के लिए सिविल मुकदमे का उपाय प्रभावी नहीं था. आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश पारित करने वाले हाईकोर्ट के जज को एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ डिवीजन बेंच में बैठाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एकल जज पीठ के आदेश को चौंकाने वाला करार दिया.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने आखिर किया क्या?
अब इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट के पास वापस भेज दिया गया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार द्वारा पारित एक आदेश के विरुद्ध एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत जारी समन को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई की जा रही थी.
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