
- झारखंड के पलामू से चोरी हुई हथिनी को बिहार के छपरा में बेचा गया.
- चोरी की गई हथिनी की कीमत चोरों ने 40 रुपये बताई थी लेकिन उसे 27 लाख रुपये में बेचा गया
- पुलिस ने हथिनी को बरामद कर लिया है और अब फरार महावतों की तलाश की जा रही है.
अक्सर हाथी खरीदने की कहावत ऐसे अंदाज में इस्तेमाल की जाती है, जो सामान अपने खरीदने के बूते के बाहर हो, लेकिन जब ऐसा हाथी चोरी हो जाए तो बड़ा विवाद तो मचना तय ही है. हथिनी चोरी का ऐसा ही एक अजीबोगरीब वाकया सामने आया है. चार यारों ने मिलाकर हाथी खरीदा और फिर उसके लापता होते ही हंगामा मच गया. तीन राज्यों यूपी, बिहार और झारखंड में इसको लेकर खोजबीन मच गई. लेकिन जब पुलिस ने तहकीकात की तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला कहावत चरितार्थ हुई.
दरअसल, यूपी के जौनपुर जिले के निवासी नरेंद्र कुमार शुक्ला ने दो हफ्ते पहले झारखंड के पलामू जिले में एक पुलिस कंप्लेन दर्ज कराई थी. उसने दावा किया कि उसका 40 लाख की कीमत की हथिनी जयामति चोरी हो गई है. शुक्ला का आरोप था कि झारखंड के रांची से जौनपुर लाते वक्त जयामति चोरी हो गई.
शुक्ला ने महावत पर इस चोरी का इल्जाम लगाया. शुक्ला का कहना था कि उसने हथिनी को परिवार में हाथी को रखने की परंपरा को कायम रखने के लिए खरीदा था. उसका दावा था हथिनी और उसका महावत पलामू के जोरकट इलाके से लापता हो गया. लेकिन जब पुलिस हथिनी को खोजने में जुटी तो वो बिहार में गोरख सिंह के नाम के शख्स के पास मिली. सिंह ने पूछताछ में बताया कि उसने जयामति को चोरी नहीं किया है, बल्कि 27 लाख में खरीदा है.
पुलिस ने पाया कि शुक्ला ने अकेले हथिनी को नहीं खरीदा था. पलामू पुलिस प्रमुख रेशमा रमेशन के मुताबिक, शुक्ला और उसके तीन सहयोगियों ने मिलकर 40 लाख में खरीदा था. लेकिन शुक्ला ने इसे ऐसे पेश किया कि वो चोरी हो गया. उसने हथिनी की कीमत भी बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये भी बताई. पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज किया और हथिनी को छपरा में गोरख सिंह के पास से बरामद किया. उसके बाद पूरे मामले की परतें खुलने लगीं.
पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला है कि इस हथिनी को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के निफरा गांव के रहने वाले नरेंद्र कुमार शुक्ला और उनके तीन साथियों ने करीब 40 लाख रुपये में खरीदी थी. इस हथिनी की देखरेख की जिम्मेदारी नरेंद्र की थी. लेकिन जब हथिनी को रखने में उसे दिक्कत होने लगी तो उसने महावत मुन्ना पांडे के साथ हथिनी को पलामू के जोरकट गांव भेज दिया. इस गांव में और भी हथिनियां रहती हैं. यहां महावत मन्ना पाठक भी दूसरी हथिनी के साथ रह रहा था. दोनों महावत में दोस्ती मिर्जापुर के रहने वाले तारकेश्वर नाथ तिवारी से हो गई.
पुलिस की जांच में पता चला है कि तारकेश्वर इन लोगों को हथिनी को बेच देने की सलाह लगातार दे रहा था. हथिनी बेचने की की सलाद उसके बहकावे में आकर महावतों ने हथिनी को बेच दिया. इसके बाद हथिनी के लापता होने की सूचना नरेंद्र को मिली तो वो पलामू पहुंचा तो दोनों महावत भी फरार मिले. इसके बाद नरेंद्र ने 12 सितंबर को पलामू के सदर थाना में चोरी का मामला दर्ज कराया.पुलिस ने हथिनी को छपरा से बरामद कर लिया लेकिन इस मामले में महावत मुन्ना पांडे और मन्ना पाठक फरार हैं. पुलिस उनकी खोजबीन में लगी हुई है. इन दोनों की गिरफ्तारी होने के बाद ही ये साफ तौर पर पता चल पाएगा कि आखिर ये हथिनी पलामू से छपरा कैसे पहुंची.
सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि हथिनी पर शिकायतकर्ता का अकेले मालिकाना हक नहीं था. बल्कि चार साझेदारों ने इसे मिलकर खरीदा था. हकीकत में तीन साझेदारों ने मिलकर एक समझौता किया और छपरा में एक शख्स को 27 लाख में बेच दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, गोरख सिंह ने हथिनी खरीद के कानूनी दस्तावेज भी दिखा दिए. उसके पास कस्टडी बॉन्ड था. इसके बाद पुलिस ने सभी साझेदारों से संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा है. इन दस्तावेजों के सत्यापन के बाद ही पता होगा कि हथिनी का असली मालिक कौन है.
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