चीन के 59 ऐप पर पाबंदी के बाद चीन ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह कारोबार को लेकर भेदभाव कर रहा है. हालांकि हकीकत यह है कि इस मुद्दे पर चीन का दामन कतई साफ नहीं है. सूत्रों के अनुसार चीन लंबे समय से विदेशी कंपनियों और निवेश को लेकर भेदभाव करता आ रहा है. ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां चीन का यह भेदभाव साफ दिखता है.
आईटी, मीडिया, इंटरटेनमेंट और विदेशी निवेश के क्षेत्र में चीन के भेदभाव के ढेरों उदहारण हैं. भारतीय आईटी कंपनियां जैसे एचसीएल, टीसीएस, इंफोसिस, टेक महिंद्रा आदि की चीनी बाजार में पहुंच पर कई पाबंदियां लगा कर रखी गई हैं. चीन में विदेशी फिल्में ही गिनी चुनी संख्या में दिखाई जाती हैं. कई फिल्मों के या तो वितरण पर पाबंदी है या फिर उन पर जबर्दस्त सेंसरशिप कर दी जाती है.
इसी तरह 9 दिसंबर 2019 को चीन ने एक आदेश जारी करके सभी सरकारी दफ्तरों से अगले तीन वर्ष में विदेशी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर हटाने को कहा. अमेरिकी टेक कंपनियों पर कई तरह की पाबंदियां हैं. विकीपीडिया, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब इत्यादि पर कई तरह की रोक लगाई गई हैं. गूगल की भी कई सेवाएं बीच-बीच में बंद कर दी जाती हैं.
चीन में लंबे समय का वीजा बहुत मुश्किल से मिल पाता है. विदेशियों के चीन में फ्रीहोल्ड प्रापर्टी लेने पर रोक है. सरकारी नीतियों में पारदर्शिता की कमी है. सत्तारूढ़ चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का नीतियों और न्यायिक प्रक्रिया में दखल है.
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