उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि सत्तारूढ़ दलों को सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से अपने राजनीतिक विरोधियों की बुद्धिमता को कुचलने की इजाजत देकर देश लोकतंत्र खोने का जोखिम नहीं उठा सकता. यह टिप्पणी तमिलनाडु में एक रोजगार योजना को लेकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की क्रमिक सरकारों के बीच संघर्ष से संबंधित है.
शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें तमिलनाडु सरकार को ‘ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता‘ पदनाम के तहत पद बनाने का निर्देश दिया गया था, जिसे ‘मक्कल नाला पनियालारगल‘ (एमएनपी) के रूप में जाना जाता है और उन लोगों को समायोजित करता है, जो रिक्त पदों के विरुद्ध दिनांक आठ नवंबर 2011 के शासनादेश के निर्गत होने की तिथि को एमएनपी की पंजी पर काम कर रहे थे.
एम करुणानिधि के नेतृत्व वाली पूर्व द्रमुक सरकार ने राज्य भर में 12,617 ग्राम पंचायतों में शिक्षित युवाओं को रोजगार देने के लिए ‘मक्कल नाला पनियारगल‘ योजना शुरू की थी. हालांकि, द्रमुक सरकार के बाद सत्ता में आई अन्नाद्रमुक सरकार ने 1991 में इस योजना को समाप्त कर दिया था. द्रमुक सरकार ने एक बार फिर 1997 में इस योजना को पुनर्जीवित कर दिया, जिसे एक बार फिर अन्नाद्रमुक ने 2001 में समाप्त कर दिया. यह सिलसिला 2006 और 2011 में भी चलता रहा था.
मंगलवार को सुनाए गए फैसले में, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार, जब भी योजना को छोड़ने या समाप्त करने का निर्णय लिया गया, वह केवल राजनीतिक कारणों से लिया गया और इस बारे में रिकॉर्ड में कोई ठोस या वैध कारण नहीं दिया गया.
पीठ ने कहा, ‘राजनीतिक दलों को सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से अपने राजनीतिक विरोधियों की बुद्धिमता को खत्म करने की अनुमति देकर हम अपने देश में लोकतंत्र को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते.‘
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