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This Article is From May 16, 2023

कर्नाटक से BJP ने लिया सबक, राजस्थान-MP और छत्तीसगढ़ में SC-ST सीट पर करेगी फोकस

कर्नाटक चुनाव में बीजेपी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 सीटों में सिर्फ 8 सीटें जीतने में सफल रही. लेकिन पार्टी आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों में से एक भी सीट जीत नहीं पाई.

कर्नाटक से BJP ने लिया सबक, राजस्थान-MP और छत्तीसगढ़ में SC-ST सीट पर करेगी फोकस
चुनाव से पहले राज्य सरकार ने दोनों समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने का ऐलान किया था.
नई दिल्ली:

कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Polls) के नतीजे बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हुए हैं. खासकर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों (SC-ST Reserved Seats) पर बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है. चुनाव से पहले राज्य सरकार ने इन सीटों पर दोनों समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने का ऐलान किया था. पार्टी को भरोसा था कि चुनाव में इसका फायदा मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.  

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक की अधिकतम एससी-एसटी सीटें जीती थीं. पार्टी ने 2014 के चुनावों में 131 निर्वाचन क्षेत्रों में 67 और 2019 में 77 सीटें जीतीं. दोनों सामाजिक समूह बीजेपी के लाभार्थी (केंद्रीय कल्याण) योजनाओं के केंद्र का अहम हिस्सा रहा है.

अब आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी ने रणनीति बदली है. बीजेपी नेताओं ने कहा कि पार्टी की एससी-एसटी पहुंच को और बढ़ाया जाएगा. क्योंकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनावी राज्यों में इन एससी-एसटी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है.

कर्नाटक में, बीजेपी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 सीटों में सिर्फ 8 सीटें जीतने में सफल रही. पार्टी आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों में से एक भी सीट जीत नहीं पाई. वहीं, कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनावों में 21 एससी सीटों में 12 और 14 एसटी सीटों में 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. श्रीरामुलु और गोविंद करजोल जैसे एससी-एसटी समुदायों के बीजेपी के सबसे बड़े नेता भी अपनी सीट हार गए थे.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी अनुसूचित जाति (लेफ्ट) के लिए आरक्षण बढ़ाने के अपने फैसले के बारे में अनुसूचित जाति के मतदाताओं को समझाने में फेल रही. इस कारण बंजारा, भोवी और अनुसूचित जाति (राइट) समुदायों के मतदाताओं ने बीजेपी के खिलाफ मतदान किया. चुनावों से ठीक पहले बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने 17 प्रतिशत एससी कोटा में आंतरिक आरक्षण को सबसे पिछड़े एससी (लेफ्ट) के लिए 6 फीसदी, कम पिछड़े एससी के लिए 5.5 फीसदी अनुसूचित जाति के लिए 4.5 फीसदी कोटे के रूप में बांटने का फैसला किया था.

दिल्ली में बीजेपी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा- "अनुसूचित जाति (राइट), भोवी और बंजारा समुदायों ने खासतौर पर महसूस किया कि हम अनुसूचित जाति (लेफ्ट) का पक्ष ले रहे थे. हमारे आकलन के अनुसार बेंगलुरु, तटीय कर्नाटक और बीदर को छोड़कर अनुसूचित जाति चुनाव में बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो गई. जबकि बीजेपी ने चार एससी समुदायों बंजारा, भोविस, कोरमा और कोराचा को एससी लिस्ट से बाहर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था. ऐसे में कांग्रेस लोगों को गुमराह करने में कामयाब रही." 

कांग्रेस में 15 वाल्मीकि (एसटी) विधायक और 11 एससी (राइट) विधायक हैं. जबकि बीजेपी में वाल्मीकि (एसटी) से  2 और  एससी (राइट) से 2 विधायक हैं. कांग्रेस भी अनुसूचित जाति (लेफ्ट) समुदायों में अधिक विधायक पाने में कामयाब रही. कांग्रेस के टिकट पर इस समुदाय से 6 उम्मीदवार जीतें, जबकि बीजेपी के सिर्फ 2 प्रत्याशियों को ही जीत मिली.

बीजेपी एसटी मोर्चा के प्रमुख समीर उरांव ने NDTV से कहा कि पार्टी कर्नाटक चुनाव नतीजों की उचित समीक्षा सुनिश्चित करेगी. उन्होंने कहा- "20 मई से 20 जून तक हम मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का जश्न मनाएंगे. विशेष रूप से सभी एसटी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाएगा. हम लोगों को बताएंगे कि कैसे पीएम मोदी की योजनाएं उनके लिए कल्याणकारी साबित हुई हैं. हम इसकी विस्तृत रूपरेखा तैयार करेंगे. सभी मोर्चा प्रमुख एक साथ बैठेंगे और योजना तैयार करेंगे."

"पार्टी और सरकार एससी-एसटी समुदायों के महत्व को समझती है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों उन्हें लामबंद करने की कोशिश में हैं. हमने 2018 के चुनाव नतीजों से सबक सीखे हैं, तब पार्टी को एससी-एसटी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. इसलिए हम पिछले पांच वर्षों से इन समूहों के साथ बहुत ध्यान से काम कर रहे हैं. यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि बीजेपी की वैचारिक पैठ इन लोगों के बीच है."

पी मुरलीधर राव

मध्य प्रदेश बीजेपी चुनाव प्रभारी

कर्नाटक बीजेपी महासचिव और एमएलसी रविकुमार ने एससी-एसटी सीटों पर पार्टी को मिली हार को लेकर कहा- "पार्टी अगले 4-5 दिनों में चुनावों की समीक्षा शुरू करेगी. यह स्पष्ट है कि हम आरक्षण के लाभों को सामने नहीं ला सके. कांग्रेस लोगों को गुमराह करने में सफल रही." 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की आबादी में 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 6.95 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है. 224 विधानसभा सीटों में 36 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 15 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए एससी-एसटी समुदाय बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार,  मध्य प्रदेश की आबादी में एसटी का हिस्सा 21.1 फीसदी और एससी समुदाय का हिस्सा 15.6 फीसदी था. 30.62 फीसदी आदिवासी आबादी और 12.82 फीसदी एससी आबादी वाला आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ भी बीजेपी के लिए काफी अहम है. वहीं, राजस्थान में भी पीएम इन समूहों के वोट को साधने के लिए बांसवाड़ा, भरतपुर और नाथद्वारा और एससी-एसटी मतदाताओं की बड़ी आबादी वालों क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं.

हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से बढ़ती महंगाई और खराब शासन व्यवस्था के कारण राज्य सरकार द्वारा आरक्षण के ऐलान से बहुत पहले एससी-एसटी समूहों में नाराजगी थी.

कर्नाटक यूनिवर्सिटी धारवाड़ के डिपार्टमेंट ऑफ स्टडीज इन एंथ्रोपोलॉजी के चेयरमैन प्रोफेसर टी टी बसवनगौड़ा कहते हैं, " राज्य में आदिवासी समुदाय समरूप नहीं है. कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र के बारे में जनजातियों के बीच जागरूकता पैदा करने पर विशेष जोर दिया था. आदिवासी बदलाव चाहते थे. ये ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे हैं. इनमें प्रवासन (माइग्रेशन) भी अधिक है. निश्चित रूप से, वे कांग्रेस पार्टी द्वारा घोषित गारंटी से आकर्षित हुए और पार्टी को एक मौका देना चाहते थे. दूसरी और बीजेपी के आरक्षण की घोषणा ने आदिवासियों पर अधिक प्रभाव नहीं छोड़ा, क्योंकि वे जानते थे कि आरक्षण नीति में संशोधन और कार्यान्वयन किया जाना है. जिसमें काफी समय लगेगा. इसलिए मुझे लगता है कि कांग्रेस को भी अपने वादों पर ध्यान देना चाहिए. उन्हें जल्द से जल्द अपनी 5 गारंटियों को लागू करना चाहिए."

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