
भारतीय सेना (Indian Army) से सेनानिवृत्त एक कर्नल ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Places of Worship Act 1991) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक और याचिका दाखिल की है. याचिका दायर करने वाले सेनानिवृत्त कर्नल अनिल कबोत्रा 1971 में पाकिस्तान (Pakistan) के साथ युद्ध में शामिल रह चुके हैं. कर्नल ने अपनी याचिका के माध्यम से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 संवैधानिक प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि ये कानून बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक ऐतिहासिक पूजा और तीर्थ स्थलों को कब्ज़ा करने को कानूनी दर्जा देता है. प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. पर्सनल लॉ का अपमान कर बनाई गई इमारत को पूजा की जगह नहीं कहा जा सकता है.
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जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की अर्जी
मुस्लिम पक्ष की ओर से जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की है. उन्होंने कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा है. जमीयत ने कौन-कौन सी मांग कि उसकी एक लिश्ट देख सकते हैं.
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- जमीयत उलेमा ए हिंद ने हिंदू पक्ष की याचिका खारिज करने की मांग की है.
- याचिका में कहा कि हिंदू पक्ष ने जिन मुद्दों को अपनी ओर उठाया है उस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ पहले ही विचार कर चुकी है.
- अगर वर्तमान याचिका पर विचार किया जाता है तो इससे देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी की बाढ़ आ सकती है.
- कानून को इतिहास में जाकर एक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
- अदालत पहले ही साफ कर चुकी है कि हिंदू पूजा स्थलों के खिलाफ मुगलों ने जो भी कार्रवाई की थी उसके संदर्भ में अब नए दावों पर सुनवाई नहीं की जा सकती है.
- साथ ही ऐतिहासिक गलतियों को इस तरह सुधारा नहीं जा सकता है.
आपको बता दें कि इससे पहले प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर अब तक 9 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी थीं.
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