एमनेस्टी इंडिया ने वित्तीय जांच एजेंसी ईडी के उन आरोपों को खारिज किया है, जिसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया पर 'मनी लॉन्ड्रिंग' में शामिल होने के आरोप लगे हैं. एमनेस्टी इंडिया का कहना है कि ये पूरी तरह से झूठ है. एक ट्वीट के जरिए ईडी के डॉयरेक्टर और वित्त मंत्रालय को टैग कर एमनेस्टी इंडिया ने कहा कि ये असत्य है. बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने विदेशी मुद्रा विनिमय कानून के उल्लंघन के लिए एमनेस्टी इंडिया और उसके पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) आकार पटेल पर 61.72 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. पटेल ने इस आदेश को अदालत में चुनौती देने की बात कही है.
We reiterate that the allegations of @dir_ed, a financial investigation agency under @FinMinIndia, that Amnesty International India was involved in ‘money laundering', are patently untrue.
— Amnesty India (@AIIndia) July 9, 2022
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ईडी ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि एमनेस्टी इंडिया और उसके पूर्व प्रमुख पटेल पर विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत जुर्माना लगाया गया है. एमनेस्टी इंडिया पर 51.72 करोड़ रुपये जबकि पटेल पर 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. ईडी ने एक बयान में कहा कि इन दोनों को जुर्माने के संबंध में नोटिस भेजा गया है. उसने यह कदम एमनेस्टी इंडिया के बारे में मिली शिकायत की पड़ताल के बाद उठाया है. ईडी के विशेष निदेशक स्तर के अधिकारी ने इस मामले की जांच की है.
प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया है कि ब्रिटेन स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नवंबर 2013 से जून 2018 के बीच अपनी भारतीय इकाई एमनेस्टी इंडिया इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (एआईआईपीएल) को बड़ी मात्रा में विदेशी अंशदान कारोबारी गतिविधियों की शक्ल में भेजा था. यह असल में विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) से बचने का तरीका था.
जुर्माने का नोटिस भेजे जाने पर पटेल ने एक ट्वीट में कहा, 'ईडी सरकार है, न्यायपालिका नहीं.हम न्यायालय में इसका मुकाबला करेंगे और जीत हासिल करेंगे.' एजेंसी ने कहा कि उसने इस सूचना के आधार पर फेमा के तहत जांच शुरू की थी कि ब्रिटेन स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल अपनी भारतीय इकाइयों के जरिये बड़ी मात्रा में विदेशी अंशदान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मार्ग से भेजती रही है.शिकायत के मुताबिक एमनेस्टी ने भारत में अपनी एनजीओ गतिविधियों को वित्त मुहैया कराने के लिए ऐसा किया.
प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट (एआईआईएफटी) और अन्य ट्रस्ट को एफसीआरए के तहत पूर्व-पंजीकरण या मंजूरी देने से गृह मंत्रालय के 'इनकार' के बावजूद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विदेशी धन भेजने के लिए एफडीआई मार्ग का इस्तेमाल किया.
उसने कहा, 'नवंबर 2013 से लेकर जून 2018 के दौरान एमनेस्टी इंडिया को विदेश से मिली राशि को कारोबार एवं प्रबंधन सलाह के साथ जनसंपर्क सेवाओं के एवज में मिले शुल्क के तौर पर दिखाया गया लेकिन यह विदेशी अंशदाता से ली गई उधारी के अलावा कुछ नहीं है लिहाजा यह फेमा प्रावधानों का उल्लंघन करता है.' इस मामले की जांच करने वाले फेमा अधिकारी ने एमनेस्टी इंडिया से विस्तृत जवाब मिलने के बाद यह पाया कि एआईआईपीएल ब्रिटेन की एमनेस्टी इंटरनेशनल लिमिटेड के तहत गठित एक इकाई है जिसे भारत में सामाजिक कार्यों के मकसद से बनाया गया था।
बयान के मुताबिक, 'हालांकि एआईआईपीएल ऐसी कई गतिविधियों में लिप्त रहा है जो उसके घोषित वाणिज्यिक कार्यों से मेल नहीं खाता. एफसीआर की निगाह से बचने के लिए कारोबारी गतिविधियों के नाम पर विदेशी फंड को भारत भेजने का काम किया गया है.' प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल को दी गई सेवाओं के एवज में यह राशि मिलने के बारे में किए गए एमनेस्टी इंडिया के सारे दावे एवं हलफनामे 'ठोस सबूत के अभाव में' खारिज कर दिए गए हैं.
एजेंसी ने यह नतीजा निकाला है कि एमनेस्टी इंडिया को मिली 51.72 करोड़ रुपये की राशि असल में एमनेस्टी इंटरनेशनल की तरफ से भारतीय क्षेत्र में अपने मकसद को पूरा करने के लिए दी गई है. ईडी के मुताबिक, एमनेस्टी की यह गतिविधि फेमा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करती है लिहाजा इस मामले में जुर्माने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.
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