
प्रतीकात्मक फोटो
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जैनेटिकली मॉडिफाइड बीजों से होगा उत्पादन
सेहत पर होने वाले असर को लेकर संदेह
पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रभाव को लेकर भी सवाल
जीएम सरसों की इस किस्म को दिल्ली विश्वविद्यालय के जैव विज्ञानियों की टीम ने तैयार किया है. इसे धारा मस्टर्ड हाइब्रीड -11 या डीएमएच -11 कहा जाता है. टीम के मुखिया डॉ दीपक पेंटल का कहना है कि जीएम सरसों पूरी तरह से सुरक्षित है और पर्यावरण के लिए कतई नुकसानदेह नहीं है. एनडीटीवी के कार्यक्रम वॉक द टॉक में डॉ पेंटल ने कहा कि हमने इस किस्म को तैयार करने में तीस साल लगाए हैं और इसमें कोई खतरा नहीं है. डॉ पेंटल ने कहा, "अगर आप डीएनए में प्रोटीन इंजेक्ट करते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह नुकसानदेह नहीं है तो किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. यकीन मानिए आज टेक्नोलॉजी काफी विकसित हो चुकी है और यह जानना बिल्कुल मुमकिन है कि जो प्रोटीन आप डाल रहे हैं वह नुकसान नहीं करेगा."
जीएम सरसों को जैनेटिक एप्रूवल अप्रैज़ल कमेटी से इसी साल अगस्त में हरी झंडी मिल चुकी है और इसके फील्ड ट्रायल पूरे हो चुके हैं. किसानों के पास इसके बीज पहुंचने से पहले सरकार से इसे आखिरी हरी झंडी मिलना बाकी है. सरकार ने अपनी वैबसाइट पर पांच अक्टूबर तक लोगों से इस पर फीडबैक मांगा है. लेकिन जीएम फूड का विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं की अपनी चिंताएं हैं. खास तौर से उस सब कमेटी के गठन को लेकर जिसने अगस्त में जीएम सरसों को हरी झंडी दी है.
दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान स्वराज गठबंधन की संयोजक कविता कुरुगंटी ने कहा कि जिस कमेटी ने अगस्त में जीएम सरसों को हरी झंडी दी उसके सात में से चार सदस्यों का वास्ता जीएम फूड के डेवलपमेंट से है. यह सदस्य किसी न किसी रूप में जीएम फूड संवर्धन से जुड़े हैं. कविता के मुताबिक सरकार जीएम सरसों को बिना पूरी सावधानी बरते जल्दबाजी में अनुमति दे रही है.
एनडीटीवी इंडिया की ओर से भेजे गए सवालों के जवाब में सरकार ने कहा है, "जीएम सरसों को हरी झंडी देने वाली कमेटी में सभी विशेषज्ञ वैज्ञानिक हैं. कमेटी में एक हेल्थ एक्सपर्ट और डॉक्टर भी. सब कमेटी ने सभी आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर सुनिश्चित किया है कि जीएम सरसों को लेकर सभी जरूरी टेस्ट किए गए हैं."
कविता कुरुगंटी के मुताबिक जैव विज्ञानियों ने खुद यह माना है कि जीएम सरसों की इस किस्म पर खरपतवार नाशक का कोई असर नहीं होगा. यानी यह फसल हर्बीसाइड टॉलरेंट होगी. इससे यह खतरा है कि किसान अधिक रसायनों का इस्तेमाल करने लगेंगे जो आपकी सेहत के लिए घातक होगा.
जीएम सरसों अगर खेतों में उगाया गया तो यह पहली जैनेटिकली मॉडिफाइड खाद्य फसल होगी. बीटी कॉटन को हमारे देश में कई सालों से जरूर उगाया जाता रहा है लेकिन वह खाद्य फसल नहीं है. ध्यान देने की बात है कि जीएम फूड के तहत आने वाले बीटी बैंगन को उगाने की अनुमति 2010 में मिल गई थी लेकिन तब सवालों के मद्देनजर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उस पर रोक लगा दी थी. जीएम का विरोध कर रहे एक्टिविस्ट कह रहे हैं कि बीटी बैंगन पर अधिक कड़े प्रयोग किए गए थे पर एहतियात के तौर पर उसे रोका गया लेकिन जीएम सरसों को अनुमति क्यों दी जा रही है.
दुनिया के केवल चार देशों में ही जीएम सरसों को उगाने की अनुमति है जिसमें अमेरिका, कनाडा. ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. जीएम सरसों के समर्थकों और वैज्ञानिकों का तर्क है कि कनाडा से पहले ही जीएम सरसों का तेल आयात हो रहा है. इसलिए जीएम फूड का डर फैलाना बेवजह का हौव्वा है. अब देखना यह है कि क्या सरकार जीजीएम सरसों को अक्टूबर में खेतों में उगाने के लिए अनुमति देगी और अगर हां तो क्या इससे वही क्रांति आएगी जिसका दावा किया जा रहा है.
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