नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि देश में 68 फीसदी से अधिक दूध खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के मानकों के अनुरूप नहीं हैं। केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के स्वामी अच्युतानंद तीर्थ के नेतृत्व में प्रबुद्ध नागरिकों की जनहित याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में न्यायालय को यह जानकारी दी। याचिका में सिंथेटिक और मिलावटी दूध तथा विभिन्न डेयरी उत्पादों की बिक्री पर अंकुश लगाने का अनुरोध किया गया है।
केंद्र सरकार के हलफनामे के अनुसार खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने अपने सर्वे में पाया कि शहरी क्षेत्रों में 68 फीसदी से अधिक दूध निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है। निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं मिले दूध में से 66 फीसदी खुला दूध है। हलफनामे में कहा गया है कि आमतौर पर दूध में पानी के अलावा कुछ नमूनों में डिटरजेंट के भी अंश मिले हैं। मानक पर खरे न उतर पाने की मुख्य वजह दूध में ग्लूकोज और दूध के पाउडर की मिलावट बताया गया है।
न्यायालय ने इस याचिका पर हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किए थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सिंथेटिक और मिलावटी दूध तथा दूध के उत्पाद यूरिया, डिटरजेंट, रिफाइंड ऑयल, कॉस्टिक सोडा और सफेद पेंट आदि से तैयार हो रहे हैं और यह मानव जीवन के लिए बहुत घातक है, क्योंकि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
याचिकाकर्ता के वकील अनुराग तोमर के अनुसार कथित मिलावटी दूध और इसके उत्पादों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर हलफनामे में कुछ नहीं कहा गया है। हलफनामे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 83 फीसदी से अधिक खुला दूध निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं मिला। खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खुले दूध और पैकेट वाले दूध में आमतौर पर होने वाली मिलावट का पता लगाने के इरादे से 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दूध के 1791 नमूने एकत्र किए थे।
ये नमूने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों से एकत्र किए गए थे। सार्वजनिक क्षेत्र की पांच प्रयोगशालाओं में इन नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि इनमें से 68.4 फीसदी नमूने मिलावटी थे और वे निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं थे। विश्लेषण के बाद 565 नमूने निर्धारित मानकों पर खरे मिले, जबकि दूध के 1226 नमूने इन मानकों के अनुरूप नहीं मिले। याचिका में कहा गया है कि नागरिकों के लिए शुद्ध और प्राकृतिक दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को तत्काल कार्रवाई करने चाहिए क्योंकि मौजूदा स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक हैं।
केंद्र सरकार के हलफनामे के अनुसार खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने अपने सर्वे में पाया कि शहरी क्षेत्रों में 68 फीसदी से अधिक दूध निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है। निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं मिले दूध में से 66 फीसदी खुला दूध है। हलफनामे में कहा गया है कि आमतौर पर दूध में पानी के अलावा कुछ नमूनों में डिटरजेंट के भी अंश मिले हैं। मानक पर खरे न उतर पाने की मुख्य वजह दूध में ग्लूकोज और दूध के पाउडर की मिलावट बताया गया है।
न्यायालय ने इस याचिका पर हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किए थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सिंथेटिक और मिलावटी दूध तथा दूध के उत्पाद यूरिया, डिटरजेंट, रिफाइंड ऑयल, कॉस्टिक सोडा और सफेद पेंट आदि से तैयार हो रहे हैं और यह मानव जीवन के लिए बहुत घातक है, क्योंकि इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
याचिकाकर्ता के वकील अनुराग तोमर के अनुसार कथित मिलावटी दूध और इसके उत्पादों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर हलफनामे में कुछ नहीं कहा गया है। हलफनामे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 83 फीसदी से अधिक खुला दूध निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं मिला। खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खुले दूध और पैकेट वाले दूध में आमतौर पर होने वाली मिलावट का पता लगाने के इरादे से 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दूध के 1791 नमूने एकत्र किए थे।
ये नमूने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों से एकत्र किए गए थे। सार्वजनिक क्षेत्र की पांच प्रयोगशालाओं में इन नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि इनमें से 68.4 फीसदी नमूने मिलावटी थे और वे निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं थे। विश्लेषण के बाद 565 नमूने निर्धारित मानकों पर खरे मिले, जबकि दूध के 1226 नमूने इन मानकों के अनुरूप नहीं मिले। याचिका में कहा गया है कि नागरिकों के लिए शुद्ध और प्राकृतिक दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को तत्काल कार्रवाई करने चाहिए क्योंकि मौजूदा स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक हैं।
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