ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल का आज शपथ ग्रहण, दिग्गजों के साथ नए चेहरे शामिल

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नई टीम में 25 जाने-पहचाने दिग्गज नेता और 18 नए चेहरे शामिल होंगे, कुल 43 मंत्रियों में से नौ राज्य मंत्री

ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल का आज शपथ ग्रहण, दिग्गजों के साथ नए चेहरे शामिल

ममता बनर्जी (फाइल फोटो).

कोलकाता:

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की टीम में 43 मंत्री शामिल हो रहे हैं जिन्हें सोमवार को शपथ दिलाई जाएगी. ममता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल शुरू करेंगी. इस टीम में 25 पुराने चेहरे और 18 नए होंगे. इन 43 में से नौ राज्य मंत्री होंगे. अमित मित्रा सहित दो मंत्री वर्चुअल शपथ लेंगे. मित्रा अस्वस्थ हैं और ब्रत्या बोस कोविड-19 के संक्रमण से उबर रहे हैं. सुब्रत मुखर्जी, पार्थ चटर्जी, फरहाद हकीम, अरूप विश्वास, सुजीत बोस, चंद्रिमा भट्टाचार्य और शशि पांजा एक बार फिर मंत्री बनने जा रहे हैं.

मानस भुइयन राज्यसभा सांसद थे और इस बार विधानसभा चुनाव लड़े थे. वे भी अब मंत्रिमंडल में होंगे. पूर्वी मिदनापुर के अखिल गिरी और हावड़ा के अरूप रॉय को भी मौका मिल रहा है. पहली बार चुनाव लड़े संथाली सिनेमा के स्टार बीरबहा हंसदा राज्य मंत्री बनने जा रहे हैं. पूर्व आईपीएस अधिकारी हुमायूं कबीर का नाम भी मंत्रियों की सूची में हैं.

शपथ ग्रहण सुबह 10:45 बजे राजभवन में होगा. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारदा स्टिंग ऑपरेशन मामले में चार लोगों के सीबीआई अभियोजन को मंजूरी दे दी है, जिनमें से दो मंत्रियों- सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हकीम को शपथ दिलाई जाएगी.

मामले में दो अन्य आरोपी मदन मित्रा और सोवन चटर्जी हैं. मित्रा विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं और अब विधायक हैं. चटर्जी ने पिछले साल तृणमूल छोड़ दी थी और बीजेपी में शामिल हो गए थे. उन्होंने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी छोड़ दी.

बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ ने नारदा घोटाले में TMC नेताओं पर केस चलाने को मंजूरी दी

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर 5 मई के बाद से विवाद चल रहा है.
राज्यपाल ने हिंसा के लिए ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहरायाता. ममता ने कहा कि हिंसा की बहुत सारी खबरें फर्जी थीं. यह झड़पें तब हुईं जब कानून और व्यवस्था का जिम्मा चुनाव आयोग के पास था.