
मां के शव को कंधे पर लादकर ले जाना पड़ा....
नई दिल्ली:
श्रीनगर में सेना और सरकार की सहायता न मिलने के कारण भारतीय सेना का एक जवान अपनी मां का शव 10 फुट गहरी बर्फ़ में घंटों तक ऊंची चढ़ाई चढ़कर अपने घर ले जा सका. मोहम्मद अब्बास खान नाम के इस जवान की मां की मौत पठानकोट में 28 जनवरी को हो गई थी. बेटे की इच्छा थी कि वह अपनी मां का शव अपने गांव LOC के करीब कश्मीर के करनाह में दफनाए. अब्बास अगले दिन पठानकोट से गाड़ी के ज़रिए पहले जम्मू और फिर वहां से श्रीनगर पहुंचे. यहां उन्होंने सेना से हेलीकॉप्टर की गुज़ारिश की. लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली.
इधर अब्बास मां का शव लेकर श्रीनगर से कुपवाड़ा पुहंच चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि सेना शव को चित्राकोट, जो उनके घर से 52 किलोमीटर दूर है, तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर दे देगी, लेकिन सेना की मदद नहीं आई. अब्बास ने स्थानीय प्रशासन से भी हेलीकॉप्टर की मांग की, लेकिन यहां भी सिर्फ आश्वासन ही मिला. अब तक चित्राकोट से अब्बास के कुछ रिश्तेदार कुछ मजदूरों के साथ कुपवाड़ा पहुंच चुके थे. यहां गांववालों ने छत और खाना देकर उनकी मदद की.
इधर, वे सेना से फरियाद लगाते रहे, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला. कुपवाड़ा में ये सभी चार दिन तक फंसे रहे. अंत में 2 फरवरी को 10 घंटे में 30 किलोमीटर की यात्रा कर वे अगले पड़ाव तक पहुंचे. बाद में सेना की ओर से यह कहा गया कि हेलीकॉप्टर भेजा गया था तब तक अब्बास निकल चुके थे. कुपवाड़ा में सेना ने उन्हें कुछ मजदूर मुहैया कराए थे. बाकी के 22 किलोमीटर की यात्रा उन्होंने वहां से गुजरने वाली गाड़ियों से लिफ्ट लेकर की और बेटे ने अंत में अपनी मां को अपने गांव में दफनाने की अपनी इच्छा पूरी की.
इधर अब्बास मां का शव लेकर श्रीनगर से कुपवाड़ा पुहंच चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि सेना शव को चित्राकोट, जो उनके घर से 52 किलोमीटर दूर है, तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर दे देगी, लेकिन सेना की मदद नहीं आई. अब्बास ने स्थानीय प्रशासन से भी हेलीकॉप्टर की मांग की, लेकिन यहां भी सिर्फ आश्वासन ही मिला. अब तक चित्राकोट से अब्बास के कुछ रिश्तेदार कुछ मजदूरों के साथ कुपवाड़ा पहुंच चुके थे. यहां गांववालों ने छत और खाना देकर उनकी मदद की.
इधर, वे सेना से फरियाद लगाते रहे, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला. कुपवाड़ा में ये सभी चार दिन तक फंसे रहे. अंत में 2 फरवरी को 10 घंटे में 30 किलोमीटर की यात्रा कर वे अगले पड़ाव तक पहुंचे. बाद में सेना की ओर से यह कहा गया कि हेलीकॉप्टर भेजा गया था तब तक अब्बास निकल चुके थे. कुपवाड़ा में सेना ने उन्हें कुछ मजदूर मुहैया कराए थे. बाकी के 22 किलोमीटर की यात्रा उन्होंने वहां से गुजरने वाली गाड़ियों से लिफ्ट लेकर की और बेटे ने अंत में अपनी मां को अपने गांव में दफनाने की अपनी इच्छा पूरी की.
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