पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाकर मजबूत नेता बनकर उभरे राजनाथ सिंह

पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाकर मजबूत नेता बनकर उभरे राजनाथ सिंह

पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन में राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)

खास बातें

  • "यह पड़ोसी है कि मानता नहीं " कहकर हालात बयां कर दिए
  • अचानक पाकिस्तान का दौरा करने वाले प्रधानमंत्री के लिए है टिप्पणी
  • 1990 के दशक में दोनों देशों के बीच बढ़ गई थी तल्ख़ी
नई दिल्ली:

केंद्रीय गृह मंत्री ने बयान "यह पड़ोसी है कि मानता नहीं " से वह सब कुछ डाला जो पाकिस्तान को लेकर मौजूदा सरकार की पॉलिसी है. या फिर कहें एक उलझी हुई नीति, जिसमें कभी नरम तो कभी गरम माहौल होता है. कई अफसर जो भारत-पाकिस्तान के हमेशा बदलते रिश्तों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं, कहते हैं कि जब से यह सरकार आई है तब से पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति की दिशा पता नहीं लग पा रही है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि "गृह मंत्री का यह बयान बहुत कुछ बताता है. यह टिप्पणी खासकर प्रधानमंत्री के लिए है, जो पाकिस्तान अचानक चले गए और उसके बाद सबको यकीन दिलाते रहे कि पाकिस्तान भारत की मदद कर रहा है."  

उनके मुताबिक पाकिस्तान में गृह मंत्री के साथ जो बर्ताव हुआ वह बहुत खराब था. लेकिन फिर भी उन्होंने संयम से कदम उठाए. नॉर्थ ब्लाक की राय है कि "पाकिस्तान ने कभी भारत के किसी मंत्री के साथ इतना बुरा बर्ताव नहीं किया, लेकिन चूंकि हमारी विदेश नीति ही तय नहीं है इसीलिए उसे भी शह मिली हुई है."  

दरअसल केंद्र सरकार को समझ नहीं आ रहा कि वह पाकिस्तान को किस तरह इंगेज करे. पिछले कुछ महीनों से केंद्र सरकार लगातार कोशिश में लगी हुई थी कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पाकिस्तान का दौरा जस्टीफाई करे, पठानकोट हमले के बाद भी. एक अधिकारी का कहना है कि "पाकिस्तान की टीम को भारत में एयर बेस तक घुमाया गया लेकिन पाकिस्तान ने एनआईए के जाने को अभी तक मंजूरी नहीं दी."  

यही नहीं कश्मीर में जो कुछ हुआ वह सब को मालूम है. पाकिस्तान ने कश्मीर में मारे गए लोगों के लिए काला दिवस तक मनाया. रायसीना हिल्स में बैठे एक अधिकारी का कहना है कि "पिछले कुछ महीने में पाकिस्तान ने भारत की ओर कड़ा रुख इख्तियार कर लिया है लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कह पाए."  उनके मुताबिक कुछ दिन पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने यह तक कह डाला कि कश्मीर में लोग नरेंद्र मोदी के कारण मारे जा रहे हैं. ख्वाजा आसिफ ने बयान दिया था कि "जो गुजरात में किया, अब कश्मीर में कर रहा है."

ऐसे माहौल में गृह मंत्री पाकिस्तान गए और वहां न सिर्फ खरी-खरी सुनाकर आए बल्कि यह भी सबको जता दिया कि भारत पाकिस्तान के बारे में क्या सोचता है.

उधर गृह मंत्री बार-बार जिक्र कर रहे हैं कि वे पाकिस्तान में खाना खाकर नहीं आए. इसके पीछे भी आलोचक एक पेंच देख रहे हैं. एक अफसर का आकलन है कि "मोदी अचानक नवाज़ शरीफ के कहने पर पाकिस्तान चले गए थे. लेकिन गृह मंत्री सार्क सम्मेलन में गए, वहां अपनी नाराजगी दर्ज कराई और खरी-खोटी भी सुना आए."  ऐसे में राजनाथ का कद काफी ऊंचा हुआ है. वे एक राष्ट्रवादी मजबूत नेता बनकर सामने आए हैं. गृह मंत्री के खुद के शब्दों में भारत ने "पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया."

वैसे जानकार बताते हैं कि इससे पहले 1990 के दशक में दोनों देशों के बीच तब तल्ख़ी इतनी बढ़ गई थी जब दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की मीटिंग थी. उस बैठक का हिस्सा रहे एक पुराने नौकरशाह ने बताया कि "पाकिस्तान के सचिव तब तनवीर अहमद थे और भारत के मुचकुंद दुबे. पाकिस्तान जब भारत की बिगड़ती हालात पर बात नहीं सुन रहा था तब दुबे ने फाइल उठाकर अहमद खान की और फेंक दी थी. उन्होंने भी एक डोजियर भारत की टेबल की और फेंक दिया था. बातचीत तब बन्द हो गई थी." उनके मुताबिक 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार आई और उसने पाकिस्तान को इंगेज करना एकदम बंद कर दिया. उन्होंने बताया कि "तब भी पांच-छह साल दोनों देशों के बीच बातचीत नहीं हुई थी. इसीलिए यह नई बात नहीं है." बातचीत जब नए प्रधानमंत्री आईके गुजराल आए तब शुरू हुई.


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