World Health Day 2022: दुनिया भर में 15 प्रतिशत कपल्स को बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, भारत में प्राथमिक बांझपन (Infertility) की कुल फ्रीक्वेंसी 3.9 और 16.8 प्रतिशत के बीच होने का अनुमान है. एआईआईएमएस के अनुसार, करीबन 10-15% भारतीय जोड़ों में इनफर्टिलिटी की समस्या है. चिकित्सीय दृष्टी से किसी भी प्रकार के गर्भनिरोधक के बिना एक साल तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में अक्षमता को बांझपन या वन्ध्यत्व कहा जाता है, लेकिन भारत में बांझपन एक ऐसी चिकित्सीय समस्या है जिसके कई सामाजिक प्रभाव हैं.
ज़्यादातर संस्कृतियों में बांझपन को एक कलंकित विषय माना जाता है और उसके बारे में बहुत कम बात की जाती है. बच्चा होने के लिए कोशिश कर रहे लेकिन मनचाहे परिणाम पाने में असफल दंपति को काफी तनाव और निराशा का सामना करना पड़ता है. बच्चे की तीव्र चाह अक्सर उनके संबंधों में दरार का कारण बनती है, जिससे उनकी समस्या और भी जटिल होती जाती है. गर्भधारण करने में अक्षमता से पैदा होने वाला तनाव कठिनाइयों को बढ़ाता है और इससे उनकी प्रजनन क्षमता पर और भी ज़्यादा प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना होती है.
बांझपन की समस्या पुरुष, महिला में से किसी में भी या दोनों में हो सकती है. जब मेडिकल इलाज से काम नहीं बनता है, तो वह इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के लिए जा सकते हैं. इस इलाज का सफलता अनुपात काफी ज़्यादा है. आईवीएफ फर्टिलाइजेशन की एक प्रक्रिया है जहां एक अंडे को इन विट्रो में शुक्राणु के साथ जोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया में महिला की ओव्युलेटरी प्रक्रिया की निगरानी की जाती है और उसे उत्तेजना दी जाती है, ओवरीज से ओवम या ओवा को निकालकर और प्रयोगशाला में एक कल्चर मीडियम में शुक्राणु को उन्हें फर्टिलाइज करने दिया जाता है. यह इलाज दंपतियों की समस्याओं को समाप्त कर सकता है और वे हेल्दी गर्भावस्था की ओर कदम बढ़ा सकते हैं.
आईवीएफ के बारे में 5 मिथ और फैक्ट्स | 5 Myths And Facts About IVF
बांजपन और आईवीएफ प्रक्रिया के बारे में कई गलतफहमियां हैं. आइए उनके पीछे के सच को उजागर करते हैं:
मिथ: बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है और सिर्फ उन्हें आईवीएफ करने की जरूरत होती है.
फैक्ट: अगर किसी दंपति को बच्चा नहीं हो रहा है तो आम तौर पर उसका दोष महिला पर डाल दिया जाता है. यह आज तक की सबसे बड़ी गलतफहमी है. गर्भवती होने से लेकर नौ महीनों तक बच्चे को अपनी कोक में पालने, उसे अपना दूध पिलाने और उसकी पूरी देखभाल करने तक की पूरी प्रक्रिया का केंद्र बिंदु महिला होती है, इसलिए बांझपन की जिम्मेदार भी उसी को ठहराया जाता है, लेकिन चिकित्सकीय रूप से यह साबित हो चूका है कि बांझपन का कारण महिला या पुरुष किसी में भी हो सकता है. सही निदान और समस्या की पहचान के बाद समस्या के आधार पर महिला या पुरुष किसी के लिए भी आईवीएफ प्लान को अनुकूलित किया जा सकता है.
2. मिथ: महिला की उम्र ज्यादा हो तो आईवीएफ सफल नहीं हो पाता है.
फैक्ट: आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि अगर महिला की उम्र ज़्यादा हो तो उनमें आईवीएफ असफल होने की संभावना होती है. अधिक उम्र की महिलाओं में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स के बिना गर्भधारण करने की संभावना कम होने की वजह से यह गलतफहमी होती है. यह सच है कि जब अधिक उम्र की महिलाएं अपने एग्स (ओवा) का इस्तेमाल करती हैं तब सफलतापूर्वक गर्भधारण करने की संभावना कम होती हैं, लेकिन जब महिलाओं को किसी दाता से एग्स मिलते हैं तब सफलता का दर काफी बढ़ जाता है. अगर आईवीएफ महिला के अपने एग्स के साथ किया जा रहा है तो महिला की उम्र और प्रेगनेंसी दर के बीच विपरीत संबंध होता है.
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3. मिथ: माता-पिता की उम्र ज़्यादा होना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.
फैक्ट: भारत में पुरुषों और महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है. तो, एक छोटे बच्चे का कम उम्र में अनाथ या मातृहीन होने की संभावना काफी कम है. कुछ का मानना है कि अधिक उम्र की महिलाएं मातृत्व की शारीरिक मांगों को पूरा करने में असमर्थ होती हैं, लेकिन यह बात शारीरिक और मनोवैज्ञानिक सीमाओं के कारण युवा महिलाओं के लिए भी सही है.
4. मिथ: एग डोनेशन एक दर्दनाक प्रक्रिया है.
फैक्ट: एग को रिट्रीव करने की प्रक्रिया दर्द रहित होती है क्योंकि प्रक्रिया के लिए व्यक्ति को बेहोश किया जाता है. हालांकि, कुछ डोनर को डोनेशन के बाद मिचली, ऐंठन, सूजन आदि जैसी हल्की असुविधा का अनुभव हो सकता है. यह एक्सट्रैक्शन से पहले लगभग 10-15 दिनों तक दिए जाने वाले हार्मोन शॉट्स के कारण हो सकता है.
5. मिथ: पुरुषों में बांझपन का पता लगाने के लिए कोई टेस्ट नहीं है.
फैक्ट: सहायक प्रजनन तकनीकों में प्रगति ने पुरुषों में बांझपन का पता लगाना और उसका इलाज करना संभव बना दिया है. शुक्राणु डीएनए फ्रैग्मेन्टेशन जैसे परीक्षणों का उपयोग शुक्राणु में असामान्य आनुवंशिक मटेरियल का पता लगाने के लिए किया जाता है, जो बांझपन, आईवीएफ में विफलता और गर्भपात का कारण बन सकता है. उन्नत प्रजनन सुविधाएं स्पर्म क्रोमेटिन स्ट्रक्चर (एससीएसए) के जरिए यह परीक्षण प्रदान करती हैं. यह मूल्यांकन शुक्राणुओं का आकलन करने और डीएनए के नुकसान का पता लगाने का एक अच्छा तरीका है.
भारत में आईवीएफ की लागत | IVf Cost In India
भारत या दुनिया में कहीं और आईवीएफ के लिए आने वाला खर्च मुख्य रूप से बांझपन के निदान पर निर्भर है. इसलिए यह हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है. भारत में आईवीएफ का खर्च आम तौर पर हर साइकिल के लिए 1- 3 लाख के बीच होता है.
एग डोनेशन प्रक्रिया क्या है? | What Is The Egg Donation Process?
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजीज (एआरटी) में एग डोनेशन एक ऐसी विधि है जिसमें जो फर्टाइल महिला अपने एग्स खुद पैदा कर सकती है, वह ऐसी महिला को उन्हें दान करती है जो गर्भधारण करने में असमर्थ है. एग डोनेशन में प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला होती है, जो पूर्व-चयन से शुरू होती है और स्टिम्युलेशन और पोस्ट-पिकअप के जरिए जारी रहती है. ओवरी और अन्य स्वास्थ्य कारकों का आकलन करने के लिए चयन पूर्व चरण में एक यूएसजी स्कैन किया जाता है. कई हेल्थ मार्कर्स की जांच के लिए पैथोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं. इसके अलावा, एक इंटरनल डॉक्टर मेडिकल चेक के बाद फिटनेस टेस्ट के लिए एक ईसीजी, एक्स-रे और अन्य टेस्ट किए जाते हैं.
एग्स दान करने के लिए डोनर को दवाएं दी जानी चाहिए जिससे वह एक ही साइकिल में कई एग्स विकसित कर सकें. फिर योनि के ऊतकों के माध्यम से एक अल्ट्रासाउंड जांच से जुड़ी एक सुई लगाकर एग्स को डोनर से निकाल दिया जाता है. फिर अंडों को अंडाशय से धीरे से एस्पिरेटेड किया जाता है. एग्स को निकाल लेने के बाद एम्ब्र्योलॉजिस्ट उनका मूल्यांकन करते है. फिर पुरुष साथी या स्पर्म बैंक के शुक्राणु को आईवीएफ की प्रक्रिया के माध्यम से प्रत्येक एग के आसपास रखा जाता है या इंजेक्ट किया जाता है.
आईवीएफ गर्भावस्था के बारे में आपको और क्या पता होना चाहिए?
यह महत्वपूर्ण है कि लोगों को जोखिम कारकों की जानरकारी भी दी जाए. आमतौर पर जब एक महिला देर से गर्भ धारण करती है, तो गर्भपात सहित कुछ जोखिम जुड़े होते हैं. जो महिलाएं अधिक उम्र में गर्भवती हो जाती हैं, उनमें गर्भकालीन डायबिटीज, सीजेरियन डिलीवरी और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे, समय से पहले प्रसव का खतरा बढ़ जाता है. ज़्यादा उम्र की गर्भधारणा में बच्चों में जन्मजात आनुवंशिक विकारों का खतरा ज़्यादा होता है, खासकर, 40 वर्ष के बाद. इस प्रकार, यह महत्वपूर्ण है कि आईवीएफ के माध्यम से उत्पादित भ्रूणों की आनुवंशिक विसंगतियों के लिए पूर्व-प्रत्यारोपण आनुवंशिक परीक्षण (या पीजीटी) नामक प्रक्रिया के माध्यम से जांच की जाए. भ्रूण की बायोप्सी ली जाती है और उसे कैरियोटाइप किया जाता है, यानी आकार और गुणसूत्रों की संख्या की जांच की जाती है. यह डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम, पटाऊ सिंड्रोम और अन्य जैसी स्थितियों के लिए जेनेटिक मेकअप को प्रदर्शित करने वाले भ्रूण को खत्म करने में मदद करता है.
डॉ क्षितिज मुर्डिया, सीईओ और को-फाउंडर, इंदिरा आईवीएफ)
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