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God Syndrome से जूझ रहीं 'Tere Ishq Mein' फिल्म की मुक्ति, जानें क्या है गॉड सिंड्रोम और कितना खतरनाक है?

फिल्म तेरे इश्क में, मुक्ति और शंकर की लव स्टोरी असल में एक मनोवैज्ञानिक समस्या गॉड सिंड्रोम को दिखाती है. इसमें मुक्ति खुद को शंकर की मददगार मान लेती है और सोचती है कि वह उसे बदल सकती है. यही वजह है कि वह शंकर की गलतियों को भी नजरअंदाज करती रहती है.

God Syndrome से जूझ रहीं 'Tere Ishq Mein' फिल्म की मुक्ति, जानें क्या है गॉड सिंड्रोम और कितना खतरनाक है?
यह वह कंडीशन है जब कोई इंसान किसी दूसरे को बचाने, सुधारने या ठीक करने को ही अपना उद्देश्य समझ लेता है.

धनुष और कृति सेनन स्टारर 'तेरे इश्क में' ने रिलीज के पहले ही वीकेंड पर बॉक्स ऑफिस पर धमाका कर दिया है. फिल्म ने सिर्फ 3 दिनों में हाफ सेंचुरी पूरी करते हुए कमाई के नए रिकॉर्ड बना दिए हैं. इस फिल्म में मुक्ति का किरदार निभा रही कृति सेनन एक रिसर्च स्कॉलर हैं, जो यह साबित करना चाहती हैं कि हिंसक व्यक्ति भी बदल सकता है. मुक्ति शंकर को अपना थीसिस सब्जेक्ट बना लेती है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर डॉ. प्रसन्ना ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें मुक्ति की इस कंडीशन को गॉड सिंड्रोम का नाम दिया है. उनका कहना है कि फिल्म 'तेरे इश्क में' के किरदार मुक्ति और शंकर का रिश्ता सिर्फ लव स्टोरी नहीं है, यह एक साइकोलॉजिकल कंडीशन की झलक भी है, जिसे कई एक्सपर्ट्स God Syndrome या Saviour Complex के नाम से पहचानते हैं. यह वह कंडीशन है जब कोई इंसान किसी दूसरे को बचाने सुधारने या ठीक करने को ही अपना उद्देश्य समझ लेता है.

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क्या होता है गॉड सिंड्रोम? | What is God Syndrome

God Syndrome वह अवस्था है जहां कोई व्यक्ति खुद को किसी का सहारा या जीवन का समाधान समझने लगता है. यह दिखने में प्यार जैसा लगता है, महसूस उद्देश्य जैसा होता है, लेकिन अंत चेतावनी पर खत्म होता है. क्योंकि जब हम खुद को किसी का हीलर मानने लगते हैं, तो हम उसके उसके गलत, खतरनाक या टॉक्सिक व्यवहार को देखना बंद कर देते हैं. यही वजह है कि इस तरह के रिश्ते अक्सर इंबैलेंस, भावनात्मक रूप से थकाऊ और अंत में टूटने वाले साबित होते हैं.

क्यों खतरनाक है यह Syndrome?

God Syndrome बाहर से बहुत अच्छा लगता है, जैसे कोई आपको बहुत समझता है, आपकी फिक्र करता है, आपकी मदद करना चाहता है. लेकिन, धीरे-धीरे यही चीज एक रिश्ते को नुकसान पहुंचाने लगती है.

  • आप भावनाओं के सहारे किसी पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर होने लगते हैं.
  • अपनी खुद की पहचान और अपनी इच्छाएँ भूलने लगते हैं.
  • रिश्ते में हमेशा आप ही त्याग करते रहते हैं.
  • सामने वाले की गलतियाँ दिखती तो हैं, लेकिन आप उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं.
  • इस तरह का रिश्ता प्यार नहीं होता. ये एक ऐसा बोझ बन जाता है जिसे ढोते-ढोते इंसान टूटने लगता है.

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फिल्म में मुक्ति और शंकर का रिश्ता- भ्रम या सिर्फ प्यार?

फिल्म में मुक्ति को शंकर में वह व्यक्ति दिखाई देता है जिसे वह बचा सकती है. उसका आकर्षण शंकर से कम और अपनी कल्पना से ज्यादा है. एक ऐसी कल्पना जिसमें वह खुद को उसके टूटे हुए जीवन की रोशनी समझती है. यह “helping fantasy” होती है जहां व्यक्ति खुद को भगवान और सामने वाले को “rescue mission” की तरह देखता है.

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    (अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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