मुंबई : 'हंटर' अंग्रेजी शब्द है जिसका अर्थ है शिकारी... फिल्म 'हंटर' भी एक खास किस्म के शिकारी की कहानी है, जो अपनी हवस की आग बुझाने के लिए महिलाओं का शिकार करता है, और उसका नाम है मंदार...
दरअसल, मंदार का किरदार एक प्लेबॉय का है, जिसे अदा किया है गुलशन देवैया ने... फिल्म में दिखाया गया है कि एक प्लेबॉय 40 की उम्र के आसपास पहुंचकर अपने हमेशा वाले इरादे से एक लड़की से पब में मिलता है, तब कुछ लड़के उसे 'अंकल' कहकर मारते-पीटते हैं और उसी समय उसे एहसास होता है कि अब उसे शादी करके घर बसा लेना चाहिए... मंदार एक चरित्र है, जो 12 साल की उम्र से ही हवस का पुजारी है...
लेखक और निर्देशक हर्षवर्धन कुलकर्णी ने 12 साल के स्कूल जाने वाले छात्र से लेकर 40 साल तक के पुरुष की सेक्स के प्रति सोच और मानसिक रवैये को दर्शाया है... उम्र बदलने के साथ-साथ ख्वाहिशें किस तरह पनपती और बदलती हैं, उनका रवैया कैसा होता चला जाता है, इसी विषय पर कुछ रोशनी डालती है फिल्म 'हंटर'...
'हंटर' यह भी बताती है कि चाहे कोई खुद को कितना ही बड़ा हवस का पुजारी समझता हो, या नए से नए खयालात वाली कोई भी लड़की, जो प्यार और शादी के बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रहने तक को सही समझती हो, एक न एक दिन उन्हें भी घर-संसार की ज़रूरत पड़ती है, और उन्हें भी प्यार हो सकता है...
अब अगर फिल्म की कहानी पर नज़र डालें तो काफी बिखरी हुई नज़र आती है... ढेर सारे सीन ऐसे हैं, जो बिना मतलब के हैं, और वे फिल्म को लंबा और सुस्त बनाते हैं... कुछ दृश्यों में आपको हंसी ज़रूर आएगी, लेकिन मेरे हिसाब से कई सीन बेवजह 'वल्गर' बना दिए गए हैं... हां, फिल्म की कास्टिंग अच्छी है, और हर कोई अपने-अपने किरदार में जंचा है...
एक बात और, आजकल एक परम्परा-सी शुरू हो गई है फ्लैशबैक की... सो, इस कहानी को भी सीधे-सीधे न कहकर हर दो से चार मिनट के बाद फ्लैशबैक में ले जाया गया है, जो कहीं न कहीं ध्यान को भटका देता है... मेरी नज़र में 'हंटर' एक एवरेज फिल्म है, जिसके लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार...
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