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केंद्र सरकार ने देश के सबसे बड़े आर्थिक सुधार कहे जा रहे गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स, यानी जीएसटी को 1 जुलाई से लागू कर देने की अपनी डेडलाइन को हासिल कर लेने के उद्देश्य से सोमवार को चार सहायक विधेयक संसद में पेश कर दिए हैं. नए कानूनों तथा मौजूदा कानूनों में बदलाव से जुड़े या चार बिल संसद के निचले सदन, यानी लोकसभा में पेश कर दिए गए हैं, और इन पर मंगलवार को चर्चा करवाई जाएगी. सरकार चाहती है कि सदन में ये बिल ज़्यादा से ज़्यादा गुरुवार तक पारित हो जाएं, और फिर इन्हें राज्यसभा में पेश किया जाएगा.
जीएसटी तथा उसके सहायक बिलों से जुड़ी खास बातें...
इन चार बिलों - सेंट्रल जीएसटी, इन्टीग्रेटेड जीएसटी, यूनियन टेरिटरीज़ जीएसटी तथा मुआवज़ा कानून - को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसी महीने मंज़ूरी दी थी. इन बिलों को संसद से मंज़ूरी मिल जाने के बाद राज्य जीएसटी बिल राज्य विधानसभाओं में पेश किए जाएंगे.
कैबिनेट की मंज़ूरी से पहले वित्तमंत्री की अध्यक्षता वाली और राज्यों के वित्तमंत्रियों की सदस्यता वाली शक्तिशाली जीएसटी काउंसिल ने पांच कानूनों को मंज़ूरी दे दी थी, जिससे राज्यों तथा केंद्र के बीच मौजूद मतभेद दूर हो गए थे, और कई अप्रत्यक्ष करों के बदले लागू होने वाले राष्ट्रीय कर को लागू करने का रास्ता तैयार हो गया था.
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इन बिलों को जल्द से जल्द लोकसभा से पारित करवा लेना चाहती है, ताकि उन्हें राज्यसभा में बिलों को ले जाने तथा वहां से मिले सुझावों को फिर लोकसभा में पेश करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके.
ये सभी धन-संबंधी विधेयक हैं, जिसका अर्थ यह होता है कि उच्च सदन के सुझाव लोकसभा के लिए बाध्यकारी नहीं हैं. लोकसभा उन्हें मंज़ूर भी कर सकती है, और खारिज भी. हालांकि सरकार इस मुद्दे पर राज्यसभा में व्यापक बहस करवाना चाहती है, ताकि विपक्ष को यह आलोचना करने का मौका नहीं मिले कि सरकार जानबूझकर उच्च सदन की अनदेखी कर रही है, क्योंकि वहां सरकार अल्पमत में है.
यह सब कवायद 12 अप्रैल से पहले निपट जानी चाहिए, क्योंकि फिर संसद का बजट सत्र खत्म हो जाएगा. जीएसटी इससे पहले भी 1 अप्रैल की एक डेडलाइन पर लागू नहीं हो पाया था.
जीएसटी के तहत चार - 5, 12, 18 व 28 प्रतिशत - टैक्स स्लैब होंगी, तथा इसके अलावा पहले पांच साल तक कारों, शीतय पेयों तथा तंबाकू उत्पादों जैसी सामग्रियों पर कुछ अन्य कर भी लगाए जाएंगे, ताकि राज्यों के नुकसान की भरपाई की जा सके.
मुआवज़ा कानून इस लिहाज़ से तैयार किया गया है, ताकि जीएसटी के लागू होने पर राज्यों के राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए वादे को संवैधानिक जामा पहनाया जा सके.
चूंकि जीएसटी के आने से केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले बहुत-से अप्रत्यक्ष कर इसी में समाहित हो जाएंगे, इसलिए केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) तथा राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) में बताया गया है कि नई टैक्स प्रणाली में राज्यों तथा केंद्र के बीच राजस्व का बंटवारा किए तरह किया जाएगा. एसजीएसटी में राज्यवार दी गई छूट का भी ज़िक्र किया गया है.
इन्टीग्रेटेड जीएसटी उत्पादों तथा सेवाओं के अंतर-राज्यीय आवगमन पर लगने वाले टैक्स के बारे में स्थिति स्पष्ट करेगा. यूनियन टेरिटरी जीएसटी में केंद्रशासित प्रदेशों में कराधान को स्पष्ट किया जाएगा.
आज़ादी के बाद से अब तक के सबसे बड़े कर सुधार से आर्थिक वृद्धि में आधा फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है, तथा माना जा रहा है कि इससे राजस्व का दायरा बढ़ जाएगा, व कंपनियों की लागत कुछ कम होगी.