
Sawan somwar 2025 : सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू होने वाला है. इस माह में शिव भक्त भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा अर्चना करते हैं और श्रावण सोमवार का व्रत भी रखते हैं. क्योंकि शिव जी का यह प्रिय माह है. मान्यता है इस मास में भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाना, रुद्राभिषेक करना, महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना और सोमवार का व्रत रखना बहुत ही शुभ फलदायी होता है. ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य और माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी कॉलेज के वास्तु और ज्योतिष संस्थान की विभागाध्यक्ष डॉ.अलकनंदा शर्मा से शिव जी ने कितने अवतार लिए हैं और उसकी कहानी क्या है.
डॉ.अलकनंदा शर्मा कहती हैं कि शिव जी के 11 अवतार को जानने से पहले शिव क्या हैं इसके बारे में समझते हैं...
शक्ति - शक्तिम दुत्थं तु शाक्य शैवमिदम् जगत
श्री पुंस प्रभवं विश्वं स्त्री पुंसात्मकमेव च..
परमात्मा शिवः प्रोक्तः शिवाभायोति कथ्यते
पुरुषः परमेशानः प्रकृति परमेश्वरीः .. शंकरः पुरुषाः सर्वे स्त्रियः सर्वा महेश्वरी (शिवसंहिता)
अर्थात सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड शैव शाक्यमय है और है शिव-शक्ति रूप. दोनों के मैथुन से उसकी उत्पत्ति हई है. शिव जड़तत्व यानी भूतत्व है और शक्ति है चेतन तत्व, जिसे देव तत्व भी कहा जाता है. भौतिक सुष्टि में शव तंत्र का यह सिद्धांत स्त्री-पुरुष के प्रति व्यवहित होता है. स्त्री प्रकृति रूपा है और पुरुष, पुरुष रूप है. सभी स्त्रियां परमेश्वरी रूपा है और सभी पुरुष परमेश्वर के स्वरूप है. शिव-शक्ति की मिथुनजन्य आदि कामवासना भौतिक सृष्टि में स्त्री-पुरुष,परमेश्वरी-परमेश्वर आदि शब्द उन दोनों पर आरोपित किया गया है.
शैव तंत्र से शाक्त तंत्र कुछ सिद्धान्तों में भिन्नता रखता है. शाक्त तंत्र, 'मैं हो जाऊं', इस अभिमान को स्वीकार नहीं करता. वह शिव के वीर्य के संक्षोभ से जगत की सृष्टि को मानता है. शिव तंत्र और शाक्त तंत्र अपने आपमें मौलिक और आदि तंत्र है. कई सिद्धान्तों में पार्थक्य होते हुए भी दोनों की दृष्टि में सृष्टि का मर्म मैथुनजन्य ही है. दोनों का कहना है कि शब्द और अर्थ की उत्पत्ति भी मैथुनजन्य है. उनमें भी प्रवृत्ति और निवृत्ति है आकर्षण और विकर्षण है.
शाक्त तंत्र के अनुसार शब्द की निष्पत्ति का कारण मैथुन मानते हैं. इसी प्रकार जप को भी जप कर्ता के दोनों ओष्ठ पुरों में एक शिव और दूसरा शक्ति है. इन दोनों के मैथुन यानी संयोग से शब्द और उसके अर्थ की उत्पत्ति हुई है. दोनों होठों का हिलना वही मैथुन है, बिना हिले शब्द बाहर निकल ही नहीं सकता.
अहम् और इदम् के संबंध में सृष्टि को पूर्व अवस्था में समझना होगा और उस अवस्था के प्रति भिन्न-भिन्न मत और विभिन्न विचार हैं. सृष्टि के पूर्व घोर अन्धकार था और वह घनीभूत होता चला गया और जब वह अपनी चरमसीमा पर पहुंचा तो एकाएक उसमें विस्फोट हुआ जिसके परिणामस्वरूप दो मूलतत्व उत्पन्न हुए. दोनों एक दूसरे के विरोधी थे. अन्धकार और प्रकाश में विरोध होना स्वाभाविक है. फिर भी दोनों तत्वों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण और विकर्षण था .
कालान्तर में दोनों तत्वों को सृष्टि भूमि में नाम दिया गया. अन्धकार तत्व को शक्ति की संज्ञा मिली और प्रकाश तत्व को मिली संज्ञा 'शिव' की. इसी को विज्ञान कहता है 'मैटर और एन्टीमैटर' . एन्टीमैटर ही डार्कमैटर है. एन्टीमैटर के रहस्य को जानने का प्रयास विज्ञान कर रहा है.
शिवतत्व और शक्तितत्व आकर्षण-विकर्षण के कारण एक दूसरे में लीन होने की चेष्टा करने लगे. अन्त में लीन होकर एक परमविन्दु का रूप धारण कर लिया. जो लीन होने की चेष्टा थी वह वास्तव में दोनों का आपसी क्षोभ था और क्षोभ मैथुनजन्य था. उस मैथुनजन्य क्षोभ से एक दुर्लभ वस्तु की उपलब्धि हुई और उस वस्तु का नाम था 'आनन्द'. जो मैथुन था वह सृष्टि का प्रथम मैथुन था और उसके क्षोभ से उत्पन्न आनन्द, सृष्टि का प्रथम आनन्द था. तंत्र में इसीलिए उसे परमानंद कहते हैं. इस परमानंद से नाद की उत्पत्ति हुई और फिर उससे उत्पत्ति हुई बिन्दु की. कालान्तर में वह बिन्दु दो भागों में विभक्त हो गया.
उसी बिन्दु ने दोनों भागों में अहम् और इदम् का रूप धारण कर लिया, तंत्र भूमि में अहम् शिवतत्व है और इदम् है शक्तितत्व. इन्हीं दोनों के मिथुनात्मक भाव से जगत की सृष्टि हुई है. सृष्टि के मूल में बिन्दु ही है.
शिव जी के 11 प्रमुख अवतार
1.महाकाल - शिव का यह रूप समय (काल) को भी जीतने वाला है. यह अवतार अधर्म के विनाश के लिए प्रकट हुआ था.
2.वीरभद्र - दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने के लिए शिव ने क्रोध से वीरभद्र को उत्पन्न किया।
3. भैरव - यह रूप अंधकार और अधर्म का नाश करने वाला है। काल भैरव काशी के रक्षक हैं।
4.नंदी- शिव का यह अवतार धर्म की सेवा हेतु हुआ। नंदी शिव का वाहन भी है और उनका परम भक्त भी।
5.शरभ - यह रूप नरसिंह रूप का दमन करने के लिए आया (विवादास्पद मान्यता). यह सिंह से भी अधिक विकराल है.
6.गृहपति - इस रूप में शिव ने ब्राह्मण बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर ऋषि गृहपति के रूप में जन्म लिया.
7. दुर्वासा ऋषि - क्रोध और तपस्या के प्रतीक माने जाते हैं. भगवान शिव के अंश से उत्पन्न हुए.
8. हनुमान - हनुमान जी को भी शिव का अवतार माना जाता है, विशेष रूप से रुद्रांश रूप में.
9.पिप्पलाद - यह अवतार पितरों के कष्ट निवारण के लिए लिया गया. शिव ने ऋषि पिप्पलाद के रूप में जन्म लिया.
10.यतिनाथ - यह अवतार भक्ति, साधुता, तपस्या और त्याग का प्रतीक है.
11.कृष्णदर्शन - इस रूप में शिव ने भक्ति मार्ग का प्रचार किया और श्रीकृष्ण का दर्शन कराया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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