प्रतीकात्मक तस्वीर
औरंगाबाद:
महाराष्ट्र के पोखरी गांव को एक वर्ष पहले खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया था। वहां कुछ अन्य पिछड़ी जाति के लोग भी रहते हैं और उनका दावा है कि उन्हें खुले में शौच करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें शौचालय बनाने के लिए अभी धनराशि नहीं मिली है।
पोखरी के बाहरी हिस्से में रहने वाली गंगा साय आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हैं। उनकी एकमात्र इच्छा यह है कि उनके घर में भी शौचालय हो ताकि उन्हें खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़े।
गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत मिशन के तहत गत वर्ष खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था। यद्यपि साय और गांव के आखिरी छोर पर रहने वाले पिछड़ी जाति के कुछ अन्य परिवारों का दावा है कि वे अभी भी शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।
साय कहती हैं, ''ऊंची जाति के किसानों ने अपने घरों में शौचालय बनवा लिये हैं लेकिन हम खुद से शौचालय नहीं बना सकते।'' हालांकि, सरपंच अमोल काकडे ने इन दावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उक्त बस्ती में रहने वाले 47 परिवारों ने वास्तव में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया है और वे गांव का हिस्सा नहीं माने जाते।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
पोखरी के बाहरी हिस्से में रहने वाली गंगा साय आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हैं। उनकी एकमात्र इच्छा यह है कि उनके घर में भी शौचालय हो ताकि उन्हें खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़े।
गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत मिशन के तहत गत वर्ष खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था। यद्यपि साय और गांव के आखिरी छोर पर रहने वाले पिछड़ी जाति के कुछ अन्य परिवारों का दावा है कि वे अभी भी शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।
साय कहती हैं, ''ऊंची जाति के किसानों ने अपने घरों में शौचालय बनवा लिये हैं लेकिन हम खुद से शौचालय नहीं बना सकते।'' हालांकि, सरपंच अमोल काकडे ने इन दावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उक्त बस्ती में रहने वाले 47 परिवारों ने वास्तव में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया है और वे गांव का हिस्सा नहीं माने जाते।
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