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औद्योगीकरण की दौड़ में पिछड़ क्यों गया बिहार

डॉ. अजय कुमार सिंह
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 01, 2025 07:42 am IST
    • Published On सितंबर 01, 2025 07:22 am IST
    • Last Updated On सितंबर 01, 2025 07:42 am IST
औद्योगीकरण की दौड़ में पिछड़ क्यों गया बिहार

किसी भी राज्य के विकास के लिए उनकी समग्र नीतियां जिम्मेदार होती हैं. नीतियों के साथ राज्य की सरकार की विधायिका और कार्यपालिका के मध्य बेहतर समन्वय भी आवश्यक है. कुछ राज्यों की सरकारों ने सजगता का परिचय देते हुए अवसरों को आगे बढ़कर विकास के नए आयाम गढे हैं. बिहार जैसे राज्य की सरकार ने कभी भी ऐसी तत्परता नहीं दिखाई. इस वजह आज भी बिहार बीमार राज्य की श्रेणी में ही है. 

बिहार के विभाजन के बाद झारखंड अलग राज्य बना. बिहार के अधिकांश खनिज भंडार झारखंड राज्य में चले गए. जमशेदपुर, बोकारो जैसे कल कारखानों वाले शहर भी झारखंड का हिस्सा बन गए. इस नव बिहार के सामने कल कारखानों की स्थापना एक बड़ी चुनौती बनी. बिना औद्योगिक विकास के किसी भी राज्य की आर्थिक वृद्धि टिकाऊ नहीं रहती. साथ हीं नए रोजगार का सृजन भी मुश्किल है. औद्योगिक माहौल का निर्माण राज्य सरकार की इच्छाशक्ति और विजन का प्रमाण होता है. यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि राज्य सरकार की प्राथमिकता क्या है? औद्योगिक माहौल के निर्माण में भी विशेष आर्थिक क्षेत्र, कर रियात, आधारभूत संरक्षण, ड्राई पोर्ट, व्यापार सुगमता और निवेशक का विश्वास महत्वपूर्ण पक्ष है. बिहार इसमें विफल साबित हुआ है. बिहार के लोकसेवकों की कार्यशैली भी औद्योगिक माहौल के निर्माण में प्रतिकूल साबित हुई है. कार्यपालिका और विधायिका में बेहतर सामंजस्य का अभाव भी औद्योगिक पिछड़ेपन का कारण है. 

क्या कहते हैं आंकड़े

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बिहार में कार्यात्मक कल कारखानों की संख्या 2013-14 में 3,132 थी जो घट कर 2022-23 में 2,782 रह गई. यह बिहार सरकार की प्राथमिकताओं के बारे में बताता है. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के कुल सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की संख्या में बिहार का योगदान केवल 5.47 फीसदी है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, निर्माण क्षेत्र, जो राज्य की प्रमुख औद्योगिक गतिविधियों में से एक है, उसकी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में हिस्सेदारी 2021-22 में 9.9 फीसदी से घटकर 2023-24 में 7.6 फीसदी रह गई है. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में औद्योगिक ढांचे की कमजोरी, निजी निवेश की कमी और बड़े उद्योगों का अभाव अब भी बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं. अगला सवाल यह है कि क्या सरकार बिहार में औद्योगीकरण के विचार के प्रति प्रतिबद्ध है? अन्य प्रश्न भी उठते हैं कि क्या हम निवेश आकर्षित करने, उद्यमियों के लिए बाधाओं को कम करने और अपनी संस्थागत व्यवस्था में सुधार करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं? हम दूसरे राज्यों से पीछे क्यों रह गए?

भारत के कई राज्य जो औद्योगीकरण की दृष्टि से बिहार से काफी आगे हैं, वो राज्य भी अपने राज्य के उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में निवेश के अवसर के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. जुलाई 2025 में, महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा और आंध्र प्रदेश के आईटी और मानव संसाधन विकास मंत्री नारा लोकेश के बीच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक दिलचस्प बातचीत हुई. महिंद्रा समूह के चेयरमैन ने अपनी नई लॉन्च की गई ऑटोमोबाइल के बारे में तेलुगु भाषा में पोस्ट किया. इसकी सराहना आंध्र प्रदेश के मंत्री ने की, जिन्होंने आगे अपने राज्य में निवेश और विकास की संभावनाओं पर प्रकाश डाला और महिंद्रा से उत्पादन इकाइयां स्थापित करने का आग्रह किया. महिंद्रा ने आंध्र के निवेशक अनुकूल माहौल की प्रशंसा की और मंत्री को आश्वासन दिया कि उनकी टीम सूक्ष्म सिंचाई, सौर ऊर्जा और पर्यटन उद्यमों में निवेश के लिए आंध्र प्रदेश सरकार के साथ बातचीत कर रही है.

हैदराबाद में कैसे खुला इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस

उसी राज्य की एक और कहानी ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थीं. इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद, जो न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अपनी प्रबंधन शिक्षा के लिए जाना जाता है, विभिन्न अग्रणी व्यवसायियों और व्यापारिक घरानों का दृष्टिकोण था. आदि गोदरेज, आनंद महिंद्रा, राहुल बजाज, अनिल अंबानी और कई अन्य अग्रणी व्यवसायी वैश्विक स्तर का एक बिजनेस स्कूल स्थापित करना चाहते थे जो व्यापार, वित्त, सार्वजनिक नीति, सामाजिक प्रभाव और परामर्श में अगली पीढ़ी के लीडर को तैयार करेगा. भारत के शीर्ष उद्योगपतियों की इस टीम ने अपने विश्व स्तरीय बिजनेस स्कूल की स्थापना के लिए कई स्थानों पर विचार किया. मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद विकल्प थे. महाराष्ट्र सरकार से संपर्क करने पर, सरकार ने प्रस्तावित संस्थान में संकाय और छात्रों दोनों में आरक्षण की मांग की. टीम ने सोचा कि यह संस्थान की स्वायत्तता का उल्लंघन होगा.

बेंगलुरु और चेन्नई पर भी विचार किया गया था, लेकिन दोनों ही शहर निर्णायक प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे. कर्नाटक में टीम को अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. मुख्यमंत्री ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई और जो जमीन प्रस्तावित की गई, वह भी आकर्षक नहीं थी. तमिलनाडु सरकार ने एक झील किनारे स्थान की पेशकश की थी, लेकिन वह इलाका असल में एक दलदली जमीन निकला. इसके विपरीत, आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बेहद सक्रिय रुख अपनाया. उन्होंने इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के हर बोर्ड सदस्य को व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर हैदराबाद को चुनने के लिए आमंत्रित किया. जब टीम वहां पहुंची, तो नायडू ने खुद अपने घर पर उनका स्वागत किया, अपनी पत्नी के साथ नाश्ता परोसा और हैदराबाद को एशिया का भविष्य का 'ज्ञान केंद्र' बनाने की अपनी स्पष्ट और प्रेरणादायक योजना पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से साझा की. उन्होंने भरोसा दिलाया कि कोई भी राज्य जितना देगा, वे उससे एक कदम आगे बढ़कर बेहतर प्रस्ताव देंगे. उन्होंने कहा, ''अगर वे X देंगे, तो मैं X+1 दूंगा.''

टाटा के नैनो प्लांट की लड़ाई

फिर, पश्चिम बंगाल के सिंगुर में टाटा नैनो विवाद भी है. पश्चिम बंगाल सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना फर्म को भूमि आवंटित की थी. इसके कारण किसानों का विरोध हुआ और टाटा को अपनी लगभग पूरी हो चुकी फैक्ट्री को छोड़ना पड़ा. गुजरात सरकार ने इसे एक अवसर के रूप में देखा और 0.1 फीसदी ब्याज दर पर करीब 2000 करोड़ के आसान ऋण और अहमदाबाद के करीब साणंद में जमीन के लिए टाटा मोटर्स लिमिटेड से संपर्क किया. अब, टाटा मोटर्स का साणंद प्लांट लचीली असेंबली लाइन के साथ कारों के कई अन्य मॉडलों का निर्माण करता है. इससे साणंद में एक ऑटोमोबाइल क्लस्टर का निर्माण भी हुआ है. इसमें सुजुकी, हीरो, फोर्ड इंडिया और एमजी मोटर्स जैसी अन्य ऑटोमोबाइल कंपनियों ने साणंद में अपने विनिर्माण और असेंबली संयंत्र स्थापित किए हैं.

एक तरफ हम देखते हैं कि राज्य अपने राज्यों में औद्योगिक निवेश आकर्षित करने, कंपनियों को प्रोत्साहित करने और यहां तक कि कंपनियों से संपर्क करने के लिए संचार के आधिकारिक चैनलों से परे जाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. दूसरी ओर, हम बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (बियाडा) की कार्यप्रणाली को देखते हैं जो निवेशकों के लिए बाधाएं कम करने के बजाय बाधाएं पैदा करती है. बियाडा सालों से फूड पार्क के लिए आवंटित जमीन से अतिक्रमण नहीं हटा सका है. राज्य की सरकार भी इतनी लाचार हो सकती है जो सरकारी जमीन से अतिक्रमण मुक्त नहीं करा सकी. दो फूड पार्क केंद्र को वापस हो गए. 2024 में बिहार की पहली सेमीकंडक्टर कंपनी के सीईओ ने मीडिया में खुलकर खेद व्यक्त करते हुए कहा था कि बिहार में निवेश करना उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी. हमारे पास बिहार बिजनेस कनेक्ट समिट के तीन संस्करण हैं, जिनमें हजारों करोड़ रुपये के मूल्य वाले कई एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं. न तो बिहार सरकार और न ही उद्योग विभाग या बियाडा ने इन एमओयू पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया के बाद कोई सकारात्मक प्रगति दिखाई है. ये सिर्फ कागजी घटनाक्रम है. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (व्यापार सुगमता) रैंकिंग में बिहार सभी राज्यों में 26वें स्थान पर है.

क्या कर सकता है बिहार

औद्योगीकरण की खूबसूरती यह है कि आप उस समय के उभरते क्षेत्रों में निवेश करके किसी भी समय शुरुआत कर सकते हैं. इसलिए, बिहार के लिए सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. हम अभी भी विद्युत गतिशीलता, सेमीकंडक्टर और जैव प्रौद्योगिकी जैसे उभरते क्षेत्रों में निवेश आकर्षित कर सकते हैं. औद्योगीकरण और आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं. लेकिन इससे पहले हमें कारोबार करने में आसानी को बेहतर बनाने, अपनी संस्थागत व्यवस्था में सुधार करने और कंपनियों के लिए प्रोत्साहन रणनीतियों की योजना बनाने की जरूरत है. हमें अन्य राज्यों के मंत्रियों और सरकारों की सक्रियता से भी प्रेरणा लेने की जरूरत है जो वे फर्मों और उद्योगपतियों से संपर्क करने में दिखाते हैं. सभी चीजों को संचार के औपचारिक माध्यमों पर नहीं छोड़ा जा सकता. हमारे पास बिहार के बहुत सारे उद्योगपति हैं जिन्होंने दूसरे राज्यों में उद्योग स्थापित किए हैं. हम उनसे संपर्क करके शुरुआत कर सकते हैं और उनसे अपनी जड़ों और जन्मस्थान को वापस लौटाने का आग्रह कर सकते हैं. बिहार सरकार को बिहार बिजनेस कनेक्ट शिखर सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षरित एमओयू को मूर्त रूप देना शुरू करना चाहिए और नवानगर और कुमारबाग में आवंटित एसईजेड की स्थापना में भी तेजी लानी चाहिए. हम पहले ही आठ दशक खो चुके हैं और हमें बिहार को औद्योगीकरण के शिखर की प्राथमिकता पर रखते हुए 2030 के दशक में प्रवेश करना चाहिए.

अस्वीकरण: डॉक्टर अजय कुमार सिंह बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं. वो राष्ट्रीय जनता दल से जुड़े हुए हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए  विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 
 

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