बीते 24 जुलाई को देश की संसद में राज्य सभा इंडियन नेशनल लोकदल के सांसद रामकुमार कश्यप ने बंदरों की समस्या का मुद्दा उठाया और अपना दुखड़ा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के सामने सुनाया. INLD सांसद ने कहा कि "दिल्ली में बंदरों की समस्या बढ़ गई है. गीले कपड़े बाहर सुखाना मुश्किल हो गया है. बंदर या तो कपड़े फाड़ देते हैं या लेकर भाग जाते हैं. पेड़-पौधे भी तोड़ देते हैं. एक बार तो एक सांसद बैठक के लिए लेट हो गए क्योंकि बंदरों ने उन पर अटैक कर दिया था. उनके बेटे पर भी हमला किया." राज्यसभा सांसद की बात से इत्तेफाक रखते हुए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने कहा "उपराष्ट्रपति के घर भी यह समस्या है. मेनका गांधी जी यहां नहीं हैं. दिल्ली में बंदरों की समस्या का कुछ समाधान ढूंढने की जरूरत है"
शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मथुरा के वृंदावन में बंदरों से निजात पाने का शानदार नुस्खा बताया. बंदरों के हमलों से बचने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मथुरा-वृंदावन वासियों को सुझाव दिया कि वे हनुमान जी की नियमित पूजा करें व हनुमान चालीसा का पाठ करें, जिससे बंदर उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. बंदरों से निजात पाने का योगी जी का ये फॉर्मूला उनको अपनी ही पार्टी द्वारा शासित दिल्ली के तीनों नगर निगम को देना चाहिए क्योंकि वो दिल्ली में लगातार बढ़ रही बंदर समस्या से दिल्ली वालों को निजात नहीं दिला पा रहे. देखिए दिल्ली के नगर निगम क्या कह रहे हैं:
1. उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम - इनका कहना कि हम 1200 रुपये एक बंदर को पकड़ने को देने को तैयार हैं लेकिन बंदर पकड़ने वाले लोग ही नहीं आ रहे हैं. कुछ आ भी रहे हैं तो उनकी मांग इतनी अटपटी होती है कि उनको माना नहीं जा सकता जैसे कि वो परमानेंट नौकरी पर रखने की मांग करते हैं जो हम नहीं कर सकते है.
2. दक्षिणी दिल्ली नगर निगम - इनका कहना है कि हम तो 2400 रुपये प्रति बंदर देने को राजी हैं लेकिन बंदर पकड़ने में लोग दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं.
3. NDMC- NDMC यानी नई दिल्ली नगरपालिका परिषद - इसके तहत सारा लुटियंस दिल्ली आती है. संसद आती है. सभी सांसदों, मंत्रियों और शीर्ष नौकरशाहों के निवास आते हैं. इसके मुताबिक हमारे पास सिर्फ 25 लोग हैं लेकिन बंदरों की संख्या ज्यादा है. 25 में से कुछ लोग लंगूर की आवाज़ निकालकर बंदर भगाते हैं तो कुछ बंदर पकड़ते हैं, लेकिन समस्या पर काबू नहीं पाते हैं क्योंकि ये कोई परमानेंट सॉल्यूशन नहीं है. बंदर बार-बार आ जाते हैं, क्योंकि कुछ लोग उनको खाने को भी देते हैं. लंगूर से बंदर भगाने और गुलेल से बंदर को मारने पर रोक है. बंदर को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाते हैं लेकिन बंदर भी दिल्ली वाला होता है होशियार. वो पिंजरे में आसानी आता ही नहीं है.
आखिर दिल्ली में बंदर पकड़ने में दिक्कत क्या है? ये जानने के लिए मैंने पीपल फ़ॉर हेल्प के अंकित शर्मा से बात की. इनकी संस्था हरियाणा के बहादुरगढ़ और सोनीपत में बंदर पकड़कर जंगल मे छोड़ने का काम करती है. अंकित शर्मा ने बताया कि 'दिल्ली में बंदर पकड़ना आतंकवादी पकड़ने से ज़्यादा मुश्किल है क्योंकि आतंकवादी तो सिर्फ़ ज़मीन पर भागेगा-दौड़ेगा, लेकिन बंदर तो कहीं भी चढ़ जाता है. इसलिए हरियाणा में हम जहां 1000-1100 रुपये प्रति बंदर पकड़ने का लेते हैं. वहीं दिल्ली में 2400 रुपये रेट है, क्योंकि दिल्ली में बहुत सी समस्याएं और भी हैं.
1. दिल्ली में फ्लैट्स हैं, बहुमंजिला इमारतें हैं, घनी आबादी है. जिसके चलते बंदर पकड़ना बहुत मुश्किल होता है.
2 .जब बंदर पकड़ने जाते हैं तो कोई भी व्यक्ति पुलिस बुला लेता और पुलिस इनको पकड़कर ले जाती है. जब पुलिस को किसी तरह समझाते हैं कि हम क्या काम कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं तब जाकर वे छोड़ते हैं.
3. नगर निगम का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है. भुगतान में देरी होने का डर रहता है.
4. दिल्ली में पशु अधिकार से जुड़े NGO भी सक्रिय रहते हैं. वो बंदर को पकड़ते वक़्त हमको परेशान करना शुरू कर देते हैं और पुलिस बुला लेते हैं. कहते हैं कि आपने बंदरों के साथ बर्बरता की है, आपने बच्चों को पकड़ लिया लेकिन इनकी मां कहाँ है?. अब बताइये एक बंदर पकड़ने में दम निकला जाता है, अब उसका परिवार कहां से पकड़ें?
आपको बता दें कि बीते साल भर में बंदर के काटने के करीब एक हज़ार मामले सामने आए हैं. जहां तक बात बंदर पकड़ने की है तो साल 2013-14 में तीनों निगम में कुल 1071 बंदर पकड़े गए. वहीं 2014-15 में 1283 बंदर पकड़े गए लेकिन समय के साथ पकड़े गए बंदरों की संख्या घटती रही. साल 2017-18 में कुल 189 बंदर पकड़े गए. दिल्ली में बंदरों को पकड़कर दक्षिणी दिल्ली के असोला वन्य जीव अभ्यारण्य में छोड़ा जाता है लेकिन वहां भी अब बंदरों की भीड़ है. साल 2007-2008 में वहां करीब 6 हज़ार बंदर थे जो 10 साल में तीन गुना से अधिक बढ़कर 20 हज़ार से ज़्यादा हो गए हैं.
ये मामला दिल्ली हाई कोर्ट में भी चल रहा है. वहां पर दिल्ली सरकार ने बताया है कि उसके प्लान के मुताबिक दिल्ली में 25 हज़ार बंदरों को पकड़कर उनका बंध्याकरण करने में करीब 23.5 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. यानी एक बंदर पर 9400 रुपये का खर्चा. इसलिए योगी आदित्यनाथ जी का बंदर से निजात पाने का फार्मूला आज वक़्त की ज़रूरत है. वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, उनके पास शायद समय न हो तो दिल्ली नगर निगम के मेयर को उनसे या उनके कार्यालय से समय लेना चाहिए और बंदरों पर काबू पाने के लिए सभी तरीके उनसे सीखने चाहिए और उनको दिल्ली में लागू करके बंदरों की समस्या से दिल्ली वालों और देश के नेताओं को राहत दिलानी चाहिए.
शरद शर्मा एनडीटीवी इंडिया में वरिष्ठ संवाददाता हैं.
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