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This Article is From Jun 29, 2019

क्या दुनिया पहले से ज्यादा बंटी हुई है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 29, 2019 14:32 pm IST
    • Published On जून 29, 2019 02:37 am IST
    • Last Updated On जून 29, 2019 14:32 pm IST

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक इंटरव्यू आया है. यह इंटरव्यू उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स को दिया है. जापान के ओसाका में होने वाली जी-20 की बैठक में जाने से पहले पुतिन का यह इंटरव्यू कई मायनों में अहम लगता है. पुतिन ने साफ-साफ कहा है कि उदारवाद का दौर समाप्त हो चुका है. अब इसमें कोई ताकत नहीं बची है. उदारवाद को बचे रहने का हक है मगर आज के समय में उसकी भूमिका क्या है. पुतिन तो यह भी कह रहे हैं कि बहुसंस्कृतिवाद के भी दिन लद गए हैं, जनता इसके खिलाफ है. जनता अब नहीं चाहती कि सीमाएं खुली रहें और लोगों की आवाजाही होती रहे. भारत में भी इन मुद्दों पर बहस होती रहती है. आए दिन आप ऐसी बहसों में लिबरल आइडिया और आइडिया ऑफ इंडिया की बात सुनते रहते हैं. मूल रूप से इसे हम अनेकता में एकता के नारे से समझते हैं. लेकिन पुतिन साफ-साफ कह रहे हैं कि इसके दिन चले गए. पुतिन माइग्रेशन के खिलाफ स्टैंड लेने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप की तारीफ कर रहे हैं तो अपने यहां सीरीया के दस लाख शर्णार्थियों को जगह देने वाली जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल की आलोचना भी कर रहे हैं कि उन्होंने ऐसा कर भयंकर भूल की है. पुतिन 18 साल से सत्ता में हैं.

पुतिन का यह इंटरव्यू ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए. उन्हें बहुत उम्मीद नहीं है कि जी-20 की बैठक से कोई ठोस नतीजा निकलेगा और अमेरिका और चीन के बीच का तनाव कम हो जाएगा. बल्कि पुतिन मानते हैं कि दोनों देशों के बीच का तनाव नाटकीय और विस्फोटक मोड़ पर पहुंच गया है. उन्होंने माना कि दुनिया पहले से कहीं ज्यादा बंटी हुई है. शीत युद्ध के समय कुछ नियम भी थे, संवाद के मंच भी थे जिसे सभी मानते थे या अनुकरण करने की कोशिश करते थे, अब तो लगता है कि कोई नियम कायदा ही नहीं है. इस अर्थ में दुनिया पहले से बंटी हुई है. पता नहीं कब क्या हो जाए. ओसाका में होने वाले जी-20 की बैठक के बारे में कहा कि कम से कम दुनिया के देशों के बीच कुछ सामान्य नियम होने चाहिए जिसका पालन सब करें. यही बात भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जी-20 के देशों के नेताओं से कही है. पुतिन ने यह भी कहा कि मौजूदा स्थिति में उम्मीद नहीं करना चाहिए कि जी-20 से कोई बड़ा फैसला निकलेगा. हम इतनी ही उम्मीद कर सकते हैं कि आपसी बातचीत से तनाव कुछ कम हो.

पुतिन ने यह भी कहा कि लिबरल आइडिया का पारंपरिक मूल्यों को मानने वाली बहुसंख्यक आबादी के हितों से टकराव हो रहा है. पुतिन ने एलजीबीटी यानी समलैंगिकता पर जो कहा है वो अलग से बहस छेड़ने की मांग करता है. भारत का सुप्रीम कोर्ट इस तरह की राय नहीं रखता और इसके आपराधीकरण को रिजेक्ट कर दिया. मगर पुतिन कह रहे हैं कि इसे आप बहुसंख्य संस्कृति पर नहीं थोप सकते हैं. पुतिन ने यह भी कहा कि आप धर्म को संस्कृति के स्पेस से बाहर नहीं कर सकते हैं. पुतिन बार-बार ज़ोर देकर कहते हैं कि पारंपरिक मूल्य कहीं ज्यादा स्थायी हैं और लाखों लोगों के लिए महत्व रखते हैं. मेरी राय में लिबरल आइडिया की जगह नहीं बचती है. जब पुतिन से फाइनेंशियल टाइम्स के पत्रकार ने पूछा कि क्या धर्म अब जनता के लिए अफीम नहीं रहा तो पुतिन का जवाब है कि नहीं. धर्म लोगों के लिए अफीम नहीं है.

आम तौर पर देखा जाता है कि ट्रंप और पुतिन के बीच घोर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है लेकिन इस इंटरव्यू में पुतिन ने कहा कि वे ट्रंप के कई तरीकों को पसंद नहीं करते हैं मगर ट्रंप एक काबिल नेता हैं और उन्हें पता है कि उनका वोटर उनसे क्या चाहता है. अमेरिका के मिडिल क्लास को ग्लोबलाइजेशन से लाभ नहीं मिला. ट्रंप को यह बात समझ आ गई और उन्होंने चुनाव अभियान में इसका इस्तेमाल किया. क्या कभी किसी ने सोचा कि ग्लोबल दौर में किसे लाभ मिला. किसे सबसे अधिक लाभ मिला. चीन में गरीब लोगों को लाभ मिला लेकिन अमेरिका में क्या हुआ. अमेरिका की बड़ी कंपनियों को ग्लोबलाइज़ेशन का लाभ मिला. ज़ाहिर है मिडिल क्लास को लाभ नहीं मिला. ट्रंप की जीत के कारणों को यहां से देखना चाहिए. लिबरल आइडिया की बात करने वाले कुछ कर नहीं रहे हैं. वे कहते हैं कि सब ठीक है, जैसा है वैसा ही रहे. लिबरल एसी दफ्तरों में बैठे हैं लेकिन जो टेक्सास और फ्लोरिडा में दिक्कतों का सामना कर रहा हैं वे खुश नहीं हैं. क्या किसी ने उनके बारे में सोचा है. तो क्या हम मान लें कि इस दौर में आलिगार्क यानी उद्योगपतियों का वह समूह नहीं रहा जो सत्ता के पीछे मुनाफे का खेल करता है. क्या पुतिन की इस बात पर भरोसा कर लेना चाहिए कि पुराने एलिट की जगह नया एलिट नहीं आया है, जो पर्दे के पीछे सत्ता के सहारे पैसे का नया साम्राज्य बना रहा है. ठीक है कि राष्ट्रवाद का दौर है, दक्षिणपंथ का दौर है, उदारवाद का दौर नहीं रहा, लेकिन इसके क्या प्रमाण हैं कि एलिट खत्म हो गए हैं. तो फिर क्या वो सारे आंकड़े झूठे हैं कि सिर्फ एक फीसदी लोगों के पास दुनिया की आधी से अधिक संपत्ति है. क्या इस मामले में पुतिन, ट्रंप या मोदी के आने से कोई बड़ा बदलाव आ गया है. हमने पुतिन के इस इंटरव्यू पर प्रकाश के रे से बात की जो अंतरराष्ट्रीय मामलों को लगातार फॉलो करते रहते हैं.

न्यूज़ टेलिविजन में लिबरलिज़्म के बारे में बताना मुश्किल होगा. इसका अपना एक लंबा इतिहास है. फिर भी बानी बेदी ने हमारे लिए थोड़ी मदद की है ताकि हम भी जान सकें कि राजनीति में यह क्या धारा है. मोटे तौर पर लिबरलिज़्म व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संभावनाएं पैदा करता है. ऑक्सफोर्ड ने लिबरलिज़्म के बारे में एक परिचय पत्र छापा है जिसे माइकल फ्रीडन ने लिखा है. इसके अनुसार 200 साल पहले स्पेन में निजी स्वतंत्रता को लेकर एक राजनीतिक दल बना था जिसका नाम था लिबराल. मगर इसका विचार यूरोप के अलग-अलग देशों में विकसित होता है और इसका स्वरूप भी अलग है. आमतौर पर इसे क्लासिक, सोशल और नियो लिबरलिज़्म में बांटा जाता है. ब्रिटेन में लिबरलिज़्म को लेफ्ट ऑफ सेंटर माना जाता है. मतलब झुकाव लेफ्ट की तरफ हो. फ्रांस और जर्मनी में राइट ऑफ सेंटर को उदारवाद माना जाता है. यानी जिसमें दक्षिणपंथ की तरफ झुकाव हो. स्केंडेनेवियन देशों में लिबरल को एलिट तबका माना जाता है. पूर्वी यूरोप में जहां कम्युनिस्ट तानाशाही का दौर चला वहां स्टेट कंट्रोल के बरक्स उदारवाद को देखा जाता है.

जिन मुल्कों का समाज घोर धार्मिक होता है वहां तो लिबरल यानी उदारवाद को ईश्वर की मान्यता के खिलाफ भी देखा गया है. पश्चिम के लोकतंत्र में उदारवादी मूल्यों की बात होती रही लेकिन कभी भी यह किसी भी देश में आदर्श रूप में नहीं रहा. जहां उदारवाद रहा वहां भी तानाशाही या राज्य के नियंत्रण के तत्व थे. जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो अमेरिकी विद्वान फुकोयामा ने कहा था कि यह लिबरलिज़्म की जीत है. आज रूस के राष्ट्रपति कह रहे हैं कि लिबरलिज़्म का अंत हो चुका है. जी-20 में जो बातें कही जा रही हैं उन पर गौर किया जाना चाहिए.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुलाकात और बातें हुईं. मुलाकात से पहले ट्रंप ने भारत को लेकर बयान दिया था कि भारत ने 28 अमेरिकी उत्पादों पर आयात कर बढ़ाया है, जो काफी है, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है, भारत को तुरंत ही हटा लेना चाहिए. दोनों के बीच 5जी, ईरान, और रक्षा सौदों को लेकर बातचीत हुई. अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाया है जिसके कारण अब भारत वहां से कच्चे तेल का आयात नहीं कर सकता है. कुछ समय के लिए रियायत थी मगर 2 मई के बाद अमरीका ने वह छूट हटा ली. दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की तारीफ का, एक-दूसरे के प्रति आभार जताया. ट्रंप ने कहा भारत और अमेरिका दो अच्छे दोस्त बन गए हैं. दोनों कभी इतने करीब नहीं थे. ट्रंप ने कहा कि भारत के साथ कई बड़ी चीज़ें करने वाला है जिसकी घोषणा जल्दी होगी.

जी-20 में ही मार्जिन पर यानी अलग से ब्रिक्स नेताओं की बैठक हुई. ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स में आते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने तीन चुनौतियों को रेखांकित किया. आतंकवाद पर वे पहले भी बात करते रहते हैं. हर मंच से आतंकवाद पर नए सिरे से विचार की ज़रूरत पर बल दिया है. उन्होंने मुख्य बात यह कही कि ब्रिक्स के देश एकतरफा फैसले कर लेते हैं जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता है. बेहतर है कि सभी नियमों को तय करें और उसी पर चलें.

इसके अलावा रूस, चीन और भारत के प्रमुखों के बीच अलग से भी एक बैठक हुई. तीनों के भाषण में अमेरिका का जिक्र तक नहीं आया. तीनों मुल्कों ने आपसी संबंधों पर ज़ोर दिया. तेल को लेकर भारत और सऊदी अरब के बीच बातचीत हुई है. सऊदी अरब ने आश्वासन दिया है कि कोशिश जारी रहेगी कि तेल की कीमतों में स्थिरता बनी रहे. आतंक पर खास तौर से ज़ोर दिया गया. लेकिन यह देखा जाना चाहिए कि भारत की अपील पर जी-20 क्या रुख अपनाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद पर ग्लोबल कांफ्रेंस बुलाने का सुझाव दिया है. क्या जी-20 आतंकवाद पर ग्लोबल कांफ्रेंस की बात पर सहमत होगा. सवाल है कि जब दो साल पहले नवंबर 2018 में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में जी-20 की बैठक हुई थी, वहां जो घोषणापत्र जारी हुआ था, उस पर क्या प्रगति हुई है. दुनिया के देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने के वादे के साथ उस बैठक का नतीजा यह है कि आज दुनिया के उन्हीं देशों के बीच व्यापारिक युद्ध पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है. इस संदर्भ में जी-20 का मूल्यांकन करना चाहिए न कि वहां खींचे जाने वाले फोटो से. फोटो में बीस प्रमुख नेता हमेशा ही अच्छे लगेंगे. अमेरिका और चीन एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं, अमेरिका ईरान से भिड़ा हुआ है जिसका नुकसान भारत को भी हो रहा है. चीन कहता है कि वह जी-20 की बैठक में हांगकांग में हुए प्रोटेस्ट की चर्चा नहीं होने देगा. दुनिया के कई देश हांगकांग में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर चिन्तित हैं.

क्लाइमेट चेंज का विषय ग्लोबल मंच का ड्राइंग कंपटीशन हो गया है जैसे स्कूलों में बच्चे पर्यावरण संकट पर सूरज और गेंदे का फूल बनाते हैं और उसे बचाते हैं. उसी तरह यहां क्लाइमेट चेंज पर बातचीत होती है. क्या वाकई जी-20 में इस पर होने वाली चिन्ता से किसी ठोस नतीजे की उम्मीद की जा सकती है. इसी बैठक में ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोलसेनारो आए हैं जिनके यहां जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. इस रफ्तार से कि एक साल में दस लाख फुटबाल मैदान के बराबर जंगल गायब हो जा रहे हैं. भारत में बुलेट ट्रेन के लिए 54000 मैंग्रोव पेड़ काटे जा रहे हैं.

भारत में गर्मी का कहर है. पानी का संकट भयंकर स्तर पर जा पहुंचा है. नीति आयोग कह रहा है कि अगले साल तक 21 बड़े शहर में पानी का भयंकर संकट होने वाला है. अभी यूरोप से आ रही खबरों पर गौर कीजिए. फ्रांस के कारपेंत्रा शहर में तापमान 44.3 डिग्री सेल्सियस चला गया. जब से इतिहास में तापमान रिकार्ड किया जा रहा है यह फ्रांस का अधिकतम तापमान है. फ्रांस के तापमान के बढ़ने को लेकर चार इलाकों में ऑरेंज एलर्ट जारी कर दिया है. 2003 में फ्रांस में अधिकतम तापमान 44.1 डिग्री सेल्सियम तापमान चला गया था तब बड़ी संख्या में लोग गर्मी से मारे गए थे. गर्मी के कारण इटली के 16 शहरों में इमरजेंसी अलर्ट घोषित किया गया है. क्लाइमेट चेंज की बात पर सहमति की उम्मीद कैसे कर सकते हैं जब जी-20 के एक देश क्लाइमेट चेंज को मार्क्सवादी प्रोपेगैंडा मानते हैं. खुद ट्रंप इसे नकारते रहे हैं. तो इस बैठक का जिसे इतना महत्व दिया जा रहा है उसका हासिल क्या है. इसकी रिपोर्ट क्या आप जनता और पाठकों तक पहुंचेगी या फिर इसकी भव्यता ही खबर बन कर रह जाएगी.

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