पंजाब हरियाणा से लड़ रहा है। हरियाणा दिल्ली से लड़ रहा है। पंजाब में अकाली बीजेपी की सकार है। हरियाणा में बीजेपी की सरकार है। हरियाणा के बीजेपी सांसद प्रधानमंत्री के पास जा रहे हैं कि पंजाब को रोकिये जहां उनकी पार्टी और अकाली दल की सरकार है और जो केंद्र में भी मोदी सरकार का हिस्सा है। पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस विपक्ष में है।
पंजाब में कांग्रेस श्रेय ले रही है कि उसके दबाव के कारण ही बादल सरकार को सतलुज यमुना लिंक कनाल के लिए ली गई ज़मीन वापस करनी पड़ रही है। हरियाणा में कांग्रेस पार्टी चुप है वो उस सर्वदलीय बैठक में नहीं गई जो मुख्यमंत्री खट्टर ने बुलाई थी। इस राजनीति को समझना आसान नहीं है इसलिए क्रिकेट न देख रहे हों तो भारत माता की जय कौन बोलेगा वाली बहस भी देखी जा सकती है। क्योंकि राष्ट्रवाद को किसी भी हालत में नहीं समझने का ये सबसे अच्छा नुस्खा है। बाकी स्लेट लेकर बैठ जाइये कि भारत माता की जय के बैनर तले आने वाले राजनीतिक दलों ने पानी को लेकर क्या गेम खेला है।
पंजाब के रोपड़ के पास किसान कनाल भरने लगे हैं ताकि अपनी ज़मीन वापस ले सकें। 80 के दशक में सतलुज यमुना कनाल के लिए पंजाब और हरियाणा में ज़मीन का अधिग्रहण हुआ था। बादल सरकार ने पंजाब विधान सभा में एक प्रस्ताव पास कर पंजाब के हिस्से की अधिग्रहीत ज़मीन लौटा दी है। पंजाब सरकार यह दिखाना चाहती है कि वो पंजाब के पानी की रक्षक है। कांग्रेस कहती है कि उसकी जीत है क्योंकि बादल सरकार के मूल प्रस्ताव में ज़मीन लौटाने की बात नहीं थी। ये प्रावधान उसी के दबाव के कारण आया है। एसवाई कनाल पंजाब में 214 किमी तक है और हरियाणा में 90 किमी। इसका काफी बड़ा हिस्सा बन चुका है मगर पानी का वितरण शुरू नहीं हुआ है। पंजाब ने यह भी नहीं सोचा कि हरियाणा के हिस्से में जो कनाल बनकर खड़ा है उसका क्या होगा। हरियाणा के हिस्से वाले कनाल में पानी तो आता है मगर वो सतलुज का नहीं है। इसका भी अपना एक राजनीतिक पहलू है वो फिर कभी।
यह एक ख़तरनाक राजनीतिक चाल है। पंजाब कह रहा है कि हरियाणा को पानी नहीं देगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री पंजाब के मुख्यमंत्री बादल को फोन कर रहे हैं कि प्लीज़ ऐसा मत कीजिए। हरियाणा विधानसभा में पंजाब विधानसभा के प्रस्ताव के ख़िलाफ प्रस्ताव पास किया गया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पंजाब के एक ऐसे ही पूर्व फैसले का विरोध किया है। मोदी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में मत बदलेगा या नहीं देखते हैं। हरियाणा की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल ने पंजाब विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया है। आप जानते ही हैं कि हरियाणा विधानसभा चुनावों में इंडियन नेशनल लोकदल ने प्रकाश सिंह बादल को अपना स्टार प्रचारक बनाया था। जबकि अकाली दल केंद्र और राज्य में बीजेपी की पार्टनर है। चौटाला और बादल परिवार की दोस्ती के बीच कोई नहीं आ सकता लेकिन इस बार इनेलो ने बादल परिवार के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन ही कर दिया। इस प्रदर्शन में नाटकीयता कितनी है और सच्चाई कितना इसका थर्मामीटर मेरे पास नहीं है। आप ही लोग वोट देते हैं आपको पता ही होगा।
हमें तो यही समझ आया कि बादल पंजाब में किसानों के हितैषी बन रहे हैं और चौटाला और खट्टर हरियाणा में अपने किसानों के हितैषी बन रहे हैं। पानी तो हरियाणा को पहले ही नहीं मिल रहा था लेकिन कनाल को भर कर अकाली बीजेपी सरकार किसानों का समर्थन पा लेगी। अगर इसका संबंध सिर्फ चुनावी राजनीति से है तो पंजाब के रणनीतिकार जानते होंगे कि कितना ख़तरनाक खेल खेला गया है। पंजाब में विस्तार का प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी की भी इस मसले पर राय है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब के पास इतना पानी नहीं बचा है कि वो दूसरे राज्यों को पानी दे। आम आदमी पार्टी के नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील एच एस फुल्का का कहना है कि जब समझौता हुआ था तब 17.17 मिलियन एकड़ फीट पानी था। अब इसकी मात्रा कम होकर 14.37 मिलियन एकड़ फीट रह गई है। इसलिए नए आंकड़ों के संदर्भ में पानी का बंटवारा होना चाहिए। दूसरे राज्यों को वादे के हिसाब से पानी मिल रहा है लेकिन पंजाब को पानी नहीं मिल रहा है।
हरियाणा का कहना है कि उसे उसके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के बयान पर हरियाणा के नेताओं ने कहा कि वो दिल्ली को पानी नहीं दें तो क्या होगा। हरियाणा विधानसभा ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के इस बयान के ख़िलाफ़ प्रस्ताव भी पास किया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो आसानी से समझ नहीं आता कि कौन किधर है। अब आते हैं कांग्रेस के रोल पर। जिस तरह से इस बार अकाली बीजेपी सरकार ने किया है वैसा ही कुछ 2004 में कैंप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने किया था।
तब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट के हिसाब से पंजाब के पानी को लेकर हुए पुराने समझौते रद्द हो जाते हैं यानी पंजाब अपना पानी किसी को नहीं देगा। तबकी केंद्र सरकार इस एक्ट के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। मौजूदा फैसले का कांग्रेस भी समर्थन कर रही है। उसके विधायक भी सतलुज यमुना कनाल को भरने की बात कर रहे हैं। अमरिंदर सिंह लिंक कनाल के किनारे किनारे पदयात्रा भी करने वाले हैं।
पंजाब में पानी का संकट है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है इससे भी कोई इंकार नहीं कर सकता। अनाजों के दाम नहीं मिल रहे हैं। फसलो की बर्बादी के बाद सही से मुआवज़े नहीं मिल रहे हैं, इससे भी कोई इंकार नहीं कर सकता। हरियाणा में भी हालत ख़राब है। उसके पास भी पानी नहीं है। हरियाणा के किसानों की हालत भी पंजाब से कोई बेहतर नहीं है। पानी की राजनीति मनमाने तरीके से होगी तो इसका रूप कुछ भी हो सकता है। हरियाणा अपने हाईवे से पंजाब की सप्लाई रोक दे। पंजाब हिमाचल के सेब को हरियाणा तक नहीं पहुंचने दे। मतलब पंजाब के चुनाव में भावुकता पैदा करने के लिए हमारी राजनीति क्या क्या पैदा कर सकती है इसे समझने की ज़रूरत है।
1978 में सतलुज यमुना लिंक कनाल के लिए ज़मीन अधिग्रहण का नोटिफिकेशन प्रकाश सिंह बादल ने ही पास किया था। बाद में बादल कहने लगे कि उनकी कोई भूमिका नहीं थी। नौकरशाहों ने अपने आप से इसका काम शुरू कर दिया था। मगर जब 1985 में कनाल बनना शुरू हुआ तब भी अकाली दल की ही सरकार थी। इसके लिए पंजाब ने मुआवज़े के तौर पर हरियाणा सरकार से पैसे भी लिए थे। वही पैसा यानी 191 करोड़ 75 लाख का चेक बनाकर पंजाब सरकार ने हरियाणा सरकार को वापस कर दिया। हरियाणा सरकार को भी बुरा लगा तो उसने वो चेक लौटा दिया। हकीकत ये है कि यह कनाल लावारिस पड़ा हुआ है। इसमें पानी के प्रवाह को लेकर कभी गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं।
राज्यसभा सांसद और पूर्व आईएएस अधिकारी एम एस गिल ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है। उन्होंने पानी के बंटवारे के इतिहास को थोड़ा समझाया है कि कैसे पंजाब के साथ पानी को लेकर नाइंसाफी होती रही और उसे अंधेरे में रखकर उसके पानी का फैसला केंद्र करता रहा है। एम एस गिल के अनुसार प्रेस भी पंजाब को इस मामले में नकारात्मक रूप से पेश करता रहा है। गिल ने लिखा है कि 1955 में एक प्रशासनिक आदेश के ज़रिये केंद्र ने पंजाब के पानी का बड़ा हिस्सा राजस्थान को दे दिया जिसका पंजाब के पानी पर कोई अधिकार नहीं था। पंजाब के पास 7.2 एमएएफ पानी ही बचा है। जिसे हरियाणा हिमाचल और पंजाब के बीच बांट दिया गया।
संयुक्त पंजाब में यमुना नदी भी आती थी लेकिन यमुना का पानी पंजाब को कभी नहीं मिला। जबकि उसे बिना बताये यमुना के पानी को हरियाणा यूपी और राजस्थान के बीच बांट दिया गया।
लेकिन राजस्थान के साथ तो कभी लड़ाई की ख़बर नहीं आती। पंजाब हरियाणा के बीच ही जल को लेकर मल्ल युद्ध क्यों चलता रहता है। गिल ने एक और बात लिखी है कि जब उन्होंने राज्यसभा में बोलना शुरू किया तो किसी सदस्य को अंदाज़ा नहीं था कि ये मसला क्या है। बाद में कई सदस्य उनके पास गए कि ज़रा बताइये कि है क्या ये मामला।
सतलुज यमुना लिंक नहर के मुद्दे पर हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। हरियाणा सरकार ने कहा है कि नहर के लिए सुप्रीम कोर्ट तत्काल प्रभाव से कोर्ट रिसीवर नियुक्त करे। ये रिसीवर केंद्र या कोई और एजेंसी का हो सकता है। रिसीवर ज़मीन और कागज़ातों आदि को अपने कब्ज़े में ले ले। इस मामले में नए हालात पैदा हो गए हैं, सुप्रीम कोर्ट जल्द आदेश जारी करे। क्योंकि पंजाब ने पहले ही ज़मीन वापस करने के लिए बिल पास कर दिया और नोटिफ़िकेशन के लिए भेजा है। एक्ट लागू होने से पहले ही इस दौरान वहां लिंक नहर को पाटने का काम भी शुरू कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों ने सुनने के बाद यथास्थिति बनाए रखने का फैसला दिया है।
अकाली दल ने कहा है कि पंजाब के पानी पर हरियाणा का कोई हक नहीं है। यही बात अगर हर राज्य कहने लगे तो आज देश में क्या स्थिति होगी। सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर इस मसले से बचा नहीं जा सकता। इसका राजनीतिक समाधान तुरंत निकालना ही होगा। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और केंद्र में बीजेपी और अकाली की ही सरकार है। फिर ये राजनीतिक हालात क्यों हैं और वो भी चुनाव के नज़दीक आने पर। क्या ये सब जानबूझ कर हो रहा है या वाकई इससे पंजाब के किसानों का भला होने वाला है। हरियाणा पंजाब के गर्वनर कप्तान सिंह सोलंकी ही हैं। क्या वे विधानसभा के इस कानून को मंज़ूरी देने से इंकार कर सकते हैं।
This Article is From Mar 17, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा भिड़े
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 17, 2016 21:30 pm IST
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Published On मार्च 17, 2016 21:24 pm IST
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Last Updated On मार्च 17, 2016 21:30 pm IST
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