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This Article is From Aug 09, 2018

फीस बढ़ोतरी में मेडिकल कॉलेजों की मनमानी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 09, 2018 23:04 pm IST
    • Published On अगस्त 09, 2018 23:04 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 09, 2018 23:04 pm IST
भारत की राजनीति आपको थीम और थ्योरी में भटका रही है, भारत का नौजवान रोज़ एक लड़ाई हार रहा है. उस तक सिर्फ नारे पहुंचाए जा रहे हैं मगर उसकी आवाज़ किसी के पास नहीं पहुंच रही है. इंदौर में एक मेडिकल कॉलेज है. इंडेक्स मेडिकल कॉलेज. 10 जून 2018 को स्मृति लहरपुरे ने आत्महत्या कर ली. 8 अगस्त को उसी मेडिकल कॉलेज की एक और छात्रा शिवानी उइके ने आत्महत्या कर ली. दोनों के कारण एक से है. फीस. मनमानी फीस. शिवानी उइके एक अच्छी डाक्टर बन सकती थी मगर फीस की मार ने उसे मार दिया. उसने अपनी सुसाइड नोट में लिखा है कि 'सभी को ठीक करना चाहती हूं पर क्या करूं, मुझे कुछ समझ नहीं आता. सोच रही हूं कि शायद ये करूंगी तो एक का ख़र्चा कम हो जाएगा. मुझे नहीं लगता कि कुछ ग़लत कर रही हूं. मुझे बहुत गिल्टी फील होती है आपसे पैसा मांगने में. नहीं अच्छा लगता है बिल्कुल.'

प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का कुछ पता नहीं होता. एडमिशन के वक्त फीस कुछ और होती है और उसके बाद अचानक कई लाख बढ़ा दी जाती है. ये छात्र छात्राएं नीट की परीक्षा के ज़रिए यहां पहुंचते हैं. इन पर पैसे का दबाव इतना होता है कि कर्ज लेकर फीस भरने की भी एक सीमा होती है. सीट इतनी मुश्किल से मिलती है कि उसे छोड़ने का फैसला भी कम घातक नहीं है. 10 जून को स्मृति लहरपुरे ने भी आत्महत्या कर ली. इसी कॉलेज की हैं स्मृति. पांच साल एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद यहां एमडी करने आई थी. उसके सुसाइड नोट का एक हिस्सा पढ़ रहा हूं जिससे अंदाज़ा हो जाएगा कि कैसे इन कॉलेजों में फीस लेने के लिए छात्रों की गर्दन दबाई जाती है.

'2017 में काउंसलिंग के दौरान मुझे जो फीस बताई गई थी उसके अनुसार ट्यूशन फीस 8 लाख 55 हज़ार और हॉस्टल फीस 2 लाख रुपए थी. इसके बाद जब मैं कॉलेज में ज्वाइन करने आई तो इंडेक्स कॉलेज प्रबंधन ने मुझसे कॉशन मनी और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के नाम पर फिर दो लाख रुपए मांगे. चूंकी मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं इसलिए अतिरिक्त फीस नहीं चुका सकती थी लेकिन नीट परीक्षा के बाद बामुश्किल मिला पीजी करने का ये अवसर हाथ से ना निकल जाए इसलिए मैंने दो लाख का फिर लोन लिया. इसके बाद मैं जैसे ही ज्वॉइन करने पहुंची कॉलेज प्रबंधन ने फिर दो लाख रुपए मांग लिए. इसके बाद रात भर के प्रयास के बाद मैंने अपनी सीट खोने के डर से मैंने व्यवस्था भी की लेकिन कॉलेज ने ट्यूशन फीस 8 लाख 55 हज़ार से 9 लाख 90 हज़ार कर दी और सभी छात्रों से यह फीस जमा करने को बोला. जाहिर है अचानक एक लाख 35 हज़ार की फीसवृद्धि सहन करना हर किसी के लिए मुश्किल था इसलिए हम सभी लोग इसके ख़िलाफ़ जबलपुर हाइकोर्ट चले गए. इसके बाद कॉलेज प्रबंधन ने मुझे व्यक्तिगत तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. इसके अलावा फ़ोन पर भी मुझे यह केस वापस लेने के लिए धमकाया जाने लगा. इसके बाद कोर्ट ने इंडेक्स कॉलेज को निर्धारित फीस लेने का आदेश दिया लेकिन इसके बाद फिर अगले साल 9 लाख 90 हज़ार रुपए मांगने लगे... मैंने कोर्ट के आदेशानुसार 8 लाख 55 हज़ार ही जमा किए..'

स्मृति और शिवानी दोनों बैतूल ज़िले की थीं. दोनों सुसाइड नोट में फीस के सितम का ज़िक्र करती हैं. दोनों मामलों में पुलिस जांच करेगी. स्मृति लहरपुरे के सुसाइड नोट में कॉलेज प्रबंधक सुरेश भदोरिया और केके ख़ान पर मजबूर करने का आरोप है मगर दोनों इस वक्त बेल पर हैं. शिवानी के पिताजी सब इंस्पेक्टर हैं. शिवानी डेंटल की पढ़ाई पढ़ रही थी. उसकी बहन भी एमबीबीएस की पढ़ाई पढ़ रही है. कोई नेता नहीं बोलेगा कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में फीस के नाम पर लूट कब बंद होगी.

भारतीय रेल के दावे के अनुसार 9 अगस्त से दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन परीक्षा शुरू हो चुकी है. 60,000 पदों के लिए 47 लाख 56 हज़ार छात्र परीक्षा दे रहे हैं. इनमें से 8 लाख छात्रों के सेंटर 500 किमी से दूर हैं. पता नहीं दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा में आपकी कितनी दिलचस्पी है, रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भी दोपहर के समय ट्वीट कर परीक्षार्थियों को बधाई दी है. इस परीक्षा के लिए छात्र 1500 से 2000 किमी की यात्रा तय कर सेंटर पर पहुंचे हैं. हमने प्राइम टाइम में दिखाया था कि रेलवे ने बिहार और यूपी से छह स्पेशल ट्रेन चलाई हैं. दानापुर से आरा के बीच हमारे सहयोगी हबीब अली ने यात्रा भी की और उनसे बातचीत की. उसे देखते हुए हमारे सहयोगी परिमल और मोहम्मद मुर्सलिन रात भर दिल्ली के आनंद विहार स्टेशन पर जागते रहे. दो स्पेशल ट्रेनों के इंतज़ार में. जब ये दोनों ट्रेनें आईं तो पता चला कि दोनों से कोई 100 यात्री भी नहीं उतरे होंगे.

सुबह 10 बजे से परीक्षा है और दिल्ली पहुंचे हैं सुबह पांच बजे या रात के दो बजे. ऊपर से सेंटर भी खोजना है और दिल्ली के जाम से भी बचना है. बि‍ना नहाए धोए, ब्रश किए हुए सीधे परीक्षा केंद्र. देरी से पहुंचने के कारण कई छात्रों की परीक्षा भी छूट गई है. रेलमंत्री ने ट्वीट किया है कि पहले दिन रिकॉर्ड 73.8 प्रतिशत उपस्थित रहे. करीब 26 प्रतिशत छात्र नहीं आ सके. क्या दूर सेंटर देने के कारण नहीं आ सके. अगर परीक्षा न दे पाने वालों का यही औसत आखिर तक जारी रहा तो हो सकता है कि परीक्षा न देने वाले छात्रों की संख्या 12 लाख तक पहुंच सकती है. एक दुखद ख़बर भी है बिहार के कैमूर ज़िले का कृष्ण कुमार ट्रेन से गिर कर मर गया. उसके साथ यात्रा कर रहे राकेश कुमार ने हमें बताया कि 'कृष्णा का भी सेंटर छत्तीसगढ़ के दुर्ग में पड़ा था. वाराणसी स्टेशन पर कुछ ख़रीदने के लिए उतर गया मगर भीड़ के कारण चढ़ नहीं सका. गेट पर 15 मिनट तक लटका रहा और फिर गिर गया. सुबह किसी ने ट्रैक पर गिरा हुआ देखा. राकेश को जब पता चला तो उसने टीटी और आरपीएफ को फोन किया मगर कोई जवाब नहीं मिला. अच्छा होता कि रेल मंत्री पीयूष गोयल कृष्णा कुमार के घर जाते और रेल मंत्रालय से बीस लाख का मुआवज़ा भी दिलवाते. यह सीधे रेलवे की ज़िम्मेदारी बनती है.

सुशील कुमार महापात्रा भी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के परीक्षा सेंटर गए. वहां आए ऐसे कई छात्रों से मुलाकात हुई जो थके हारे सेंटर तक किसी तरह पहुंचे थे. 12 घंटे से खाए नहीं थे. ऑनलाइन जूता खरीदना हो तो आप ऑर्डर कीजिए, 2000 किमी से जूता आपके घर आ जाएगा, मगर ऑनलाइन परीक्षा देने के लिए 2000 किमी चल कर जाना पड़ रहा है. ऑनलाइन की यह परिभाषा बिल्कुल नई है और समझ से परे है.

छात्रों को स्पेशल ट्रेन का पता ही नहीं चला और वो पर्याप्त भी नहीं थी. ये छात्र ग़रीब घरों के हैं. किसी के पिता खेती करते हैं. किसी के पिता एटीएम में गार्ड हैं. इम्तहान में क्या सवाल आएगा उससे ज्यादा सोच रहे हैं कि आने जाने में कितना खर्च हो जाएगा.

ग्रेटर नोएडा के इस सेंटर पर यूपी के गोरखपुर और संत कबीर नगर से सबसे अधिक छात्र आए थे. आगरा से भी छात्र यहां थे. कुछ छात्र गुजरात से भी आए थे. कोई सड़क के किनारे लेटा हुआ था क्योंकि इनकी ट्रेन इम्तहान से कुछ घंटे पहले ही पहुंची थी. स्पेशल ट्रेन के बारे में इन्हें कोई जानकारी नहीं थी. सेंटर के आस पास इन छात्रों के लिए कोई सुविधा नहीं थी. जहां छात्र 35 रुपया देकर पैसेंजर ट्रेन से आए मगर दादरी स्टेशन से नॉलेज पार्क पहुंचने के लिए ऑटो वाले को 200 देने पड़े. अगर पैसे नहीं देते तो परीक्षा छूट जाती. सुशील ने सेंटर पर जितने भी लोगों से बात की, ज्यादातर ने बताया कि वे अपने पैसे से ही टिकट लेकर आए थे. एक छात्र ऐसा भी मिला जिसके मां बाप मज़दूरी करते हैं. एक छात्र ने बोला कि उसके पास जाने के पैसे नहीं हैं. उसने घर में पैसे डालने के लिए बोला है ताकि वापस जा सके. कोई फोन पर ही स्क्रीन शॉट लेकर आया था, पढ़ रहा था. आखिरी वक्त में सड़क किनारे बैठे ये छात्र अपनी किताबों को पलट रहे थे. सबके चेहरे और शरीर पर थकान तैर रही थी. इसके बाद भी यह लड़का भीड़ से अलग होकर रटने में लगा हुआ है. यह किस जगह बैठा है यह मत देखिए, इसकी लगन देखिए कि नौकरी के लिए वह कितनी मेहनत कर रहा है. उसकी मेहनत की ईमानदारी में कोई कमी नहीं है. इस जगह पर मोबाइल रखने के लिए भी एक दुकान खुल गई थी. छात्रों के होश इसी में उड़े रहे कि कैसे किसी कच्चे कागज के बदले अपना फोन छोड़कर भीतर जाएं. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था.

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