
- पीएम मोदी ने बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी संघ लिमिटेड की शुरुआत ₹105 करोड़ की राशि के साथ की है.
- जीविका योजना ग्रामीण महिलाओं को रोजगार, आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
- योजना का मकसद महिलाओं को कर्ज़ लेने, निवेश करने और अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सक्षम बनाना है.
चुनावों में कम ही ऐसे मौके आते हैं जब मुद्दा सिर्फ वोट नहीं बल्कि वोटरों की गरिमा होता है. एक ऐसा ही मौका तब आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नए कोऑपरेटिव - बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी संघ लिमिटेड (BRJNSSSL) का उद्घाटन किया. यह एक ऐसा कदम है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में एक क्रांति के रूप में देखा जा रहा है. ₹105 करोड़ की राशि कोऑपरेटिव के खाते में ट्रांसफर की गई है. नीतीश के ऐलान के मुताबिक जीविका दीदियों को रोजगार के लिए एकमुश्त 10,000 दिए जाएंगे. ये उन महिलाओं के लिए है, जिन्हें हमेशा खेतों में काम करने वाली या कम मजदूरी पाने वाली के रूप में देखा गया है.
यह उद्घाटन भले ही डिजिटल था, लेकिन मोदी का मकसद इसे व्यक्तिगत और भावनात्मक बनाना था. यह BRJNSSSL cooperative, जो पहले से चल रहे जीविका (Jeevika) कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है, सिर्फ बचत करना नहीं सिखाता, इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं में को रोजगार देने वाली बनाना है, उनमें आत्मविश्वास लाना है. ताकि वे आसानी से कर्ज़ ले सकें, निवेश कर सकें, अपना काम शुरू कर सकें, कर्ज़ चुका सकें और समाज में अपनी जगह बना सकें.
बिहार में, सशक्तिकरण को अक्सर पिछड़ेपन के रूप में देखा गया है - कम साक्षरता, आवागमन की कमी और पलायन की गहरी छाया. लेकिन जीविका की कहानी में, हमें उन महिलाओं की झलक मिलती है जो एक साथ बैठकर, नोटबुक लेकर, पैसे जमा करके आत्मनिर्भर बन रही हैं.
'जीविका' बदल सकती है बिहार का गेम?
यह राजनीतिक सवाल अपनी जगह ज़रूरी है. बिहार में नवंबर 2025 में चुनाव होने हैं, और सभी पार्टियां जानती हैं कि चुनाव सिर्फ रैलियों और घोषणापत्रों से नहीं जीते जाते, बल्कि वे रसोई में, मां-बेटियों की फुसफुसाहटों में और पैसे के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाने की छोटी-सी गरिमा में जीते जाते हैं. 2023 में मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना और महाराष्ट्र की लाडकी बहीन योजना ने चुनावों के नतीजे बदल दिए थे. अब सवाल यह है कि क्या बिहार का NDA भी यही जादू कर पाएगा? क्या मोदी का नेशनल विजन और नीतीश कुमार का लोकल अनुभव एक साथ मिलेगा तो एक गेम चेंजर बन पाएगा?
मोदी का नेशनल विजन और नीतीश कुमार का लोकल अनुभव
दांव बहुत स्पष्ट है. मोदी इस पहल को बड़ा स्केल देते हैं, इसे प्रतीकों से भी जोड़ देते हैं, जबकि नीतीश के पास पहले से ही लाखों घरों तक पहुंच चुके जीविका का नेटवर्क है. इन दोनों के सहयोग से महिला सशक्तिकरण सिर्फ़ जुमला न रहकर एक राजनीतिक लहर बन सकता है. ग्रामीण महिलाएं, जो हमेशा राजनीति को मर्दों का क्षेत्र मानती रही हैं, जहां जातियों की लड़ाई और नेताओं की दल-बदल होती है, उनके लिए यह एक ऐसी पहल है जो उनसे सीधे बात करती है - यहां बात महिलाओं की सुरक्षा की नहीं है, बल्कि साझेदारी की है.
लेकिन बिहार की राजनीति इतनी सीधी नहीं है. पैसे तो गिने जा सकते हैं, लेकिन सशक्तिकरण को मापना मुश्किल है. ₹105 करोड़ की ये राशि भले ही रोजगार के बीज बोए, लेकिन ये बीज वोटों में बदलेंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि महिलाएं सिर्फ लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि अपना भविष्य तय करने वाली नागरिकों के रूप में खुद को देख पाती हैं.
इस योजना की हाईटेक शुरुआत हुई, क्योंकि ये ऑनलाइन हुआ लेकिन इसका सरोकार गांवों में रहने वाले लो टेक महिलाओं से हैं. और इसी विरोधाभास में भारतीय राजनीति की कहानी छिपी है. अगर यह विरोधाभास मिलकर सफल होता है, तो यह सिर्फ़ चुनावों को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि ये बिहार की महिलाओं को किसी और की कहानी का किरदार नहीं बनाएगा बल्कि वो खुद अपनी कहानी लिख पाएंगी.
राज्यों में महिला केंद्रित योजनाएं
योजना | MP-लाडली बहना | महाराष्ट्र-लाडकी बहिन | बिहार-जीविका+मोदी कोऑपरेटिव |
लक्ष्य | 21-60 की महिलाएं | 21-65 साल की महिलाएं आमदनी 2.5 लाख तक | स्वयं सहायता ग्रुप की ग्रामीण महिलाएं |
लाभ | ₹1,250/माह डीबीटी हर महीने | ₹1,500/माह | 105 करोड़ का फंड |
लाभार्थी | 1.25 करोड़ महिलाएं | 1 करोड़ महिलाएं | 1.4 करोड़ महिलाएं |
नतीजा | 2023 में बीजेपी जीती | महायुति की लोकप्रियता बढ़ी | NDA के लिए संभावित गेम चेंजर |
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