
- बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य और आरजेडी की स्थिति प्रमुख भूमिका निभाएंगे
- नीतीश कुमार ने साल दो हजार में पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला था, लेकिन उनका कार्यकाल केवल सात दिन का था
- समता पार्टी की स्थापना नीतिश ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ की थी, जो लालू प्रसाद यादव के खिलाफ थी
बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान में अभी भले कुछ दिन का समय बचा हो लेकिन राजनीतिक पार्टियां अभी से ही सियासी समीकरण साधने लगी हैं. इस बार का चुनाव कई वजहों से खास होने वाला है. यह चुनाव जहां एक तरफ सीएम नीतीश का राजनीतिक भविष्य तय करेगा वहीं दूसरी तरफ ये भी साफ करेगा कि आखिर बिहार आरजेडी की राजनीतिक कद क्या है. बात जब नीतीश कुमार की हुई है तो आपको बता दें कि ये चुनाव उनके लिए अबतक के चुनावों से सबसे अलग है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि नीतीश कुमार का नाम भारतीय राजनीति में सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नेताओं में शामिल है. ऐसे में इस चुनाव का परिणाम उनके राजनीतिक सफर की दिशा को तय करने वाला होगा.
आपको बता दें कि नीतीश कुमार इस बार के चुनाव में भी सीएम पद के प्रबल दावेदारों में से एक हैं. बात अगर उनके राजनीतिक करियर की करें तो उसमें साल 2000 बेहद अहम पड़ाव रहा है. ये पहला मौका था जब वो पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन उनका कार्यकाल महज सात दिन का ही रहा था.
यह वो दौर था जब नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर 1994 में समता पार्टी का गठन किया. उस समय बिहार में लालू प्रसाद यादव का बोलबाला था, और नीतीश कुमार उनकी कार्यशैली और सरकार से असहमत थे.
समता पार्टी की शुरुआत और शुरुआती चुनौतियां
समता पार्टी ने अपना पहला बड़ा चुनाव 1995 में लड़ा। यह चुनाव लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले जनता दल के खिलाफ था. हालांकि, पार्टी को इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली और वह सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई, जबकि लालू प्रसाद यादव की सरकार फिर से बन गई.
इसके बाद, साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनावों में समता पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस गठबंधन ने मिलकर 122 सीटें जीतीं, जिसमें समता पार्टी की 34 सीटें और बीजेपी की 67 सीटें शामिल थीं. जनता दल (सेक्युलर) और जनता दल (यू) के उम्मीदवार भी इस गठबंधन का हिस्सा थे, जिन्होंने कुल 21 सीटें जीतीं. बाद में ये पार्टियाँ जनता दल (यूनाइटेड) में विलय हो गईं.
इस चुनाव में, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) 124 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि, 324 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 163 था, जिसे न तो NDA और न ही RJD छू पाई. इस राजनीतिक गतिरोध के बीच, केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने बिहार में सरकार बनाने का जोखिम भरा दांव चला. उस समय नीतीश कुमार, जो समता पार्टी के नेता थे और केंद्र में कृषि मंत्री का पद संभाल रहे थे, को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया.
3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन उनका यह कार्यकाल बहुत छोटा रहा, क्योंकि उन्हें सदन में बहुमत साबित करना था. NDA गठबंधन के पास निर्दलीय विधायकों को मिलाकर भी बहुमत से करीब 21 विधायक कम थे. दूसरी ओर, लालू प्रसाद यादव की RJD सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बहुमत साबित करने का दावा कर रही थी. जब नीतीश कुमार को यह एहसास हुआ कि वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे, तो उन्होंने 10 मार्च 2000 को, यानी शपथ लेने से महज सात दिन बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
इस्तीफे की वजह और उसके बाद का घटनाक्रम
नीतीश कुमार के इस्तीफे की मुख्य वजह यही थी कि उनके पास सरकार चलाने के लिए पर्याप्त विधायक नहीं थे. विश्वास मत हासिल करने की स्थिति न होने पर उन्होंने पद छोड़ना ही उचित समझा. उनके इस्तीफे के बाद, RJD ने राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनाई, जो अगले पांच साल तक चली.
यह जानना दिलचस्प है कि साल 2000 के चुनावों में लालू प्रसाद यादव खुद मुख्यमंत्री क्यों नहीं बने. इसका कारण चारा घोटाला था, जिसमें कानूनी पचड़े और गिरफ्तारी की संभावना को देखते हुए उन्होंने जुलाई 1997 में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया थ. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया, जो उस समय एक हाउस वाइफ थी. 1997 के बाद से वही मुख्यमंत्री थीं और 2000 के चुनाव के समय भी चारा घोटाले का मामला उन पर चल रहा था.
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