
- बिहार के महागठबंधन में 13 सीटों पर सहयोगी पार्टियों के बीच आमने-सामने मुकाबले की स्थिति बन गई है.
- कांग्रेस और आरजेडी के बीच 6 सीटों पर टकराव में यादव-मुस्लिम वोट बंटने से एनडीए को फायदा होने की संभावना है.
- आरजेडी और सीपीआई के बीच भी कई सीटों पर मुकाबला है जिससे महागठबंधन के पुराने वोट बैंक पर प्रभाव पड़ेगा.
वर्तमान स्थिति में बिहार में महागठबंधन में 13 सीटों में ‘ फ्रेंडली फाइट' की स्थिति हुई है यानी उन सीटों पर गठबंधन के दो सहयोगी आमने-सामने हैं. अभी तक की स्थिति में छह सीटों में कांग्रेस बनाम आरजेडी, 4 पर कांग्रेस बनाम सीपीआई, 2 पर आरजेडी बनाम वीआईपी और एक सीट कांग्रेस बनाम आईआईपी आमने-सामने होंगी. इन मुकाबलों का असर सिर्फ उन सीटों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि ये टक्कर महागठबंधन की बाकी सीटों पर उसके परिणाम पर सीधा असर डाल सकती है. साथ ही एनडीए को भी इससे फायदा हो सकता है.
इन 6 सीटों पर मिलेगी NDA को बढ़त?
सबसे पहले नजर डालते हैं कांग्रेस बनाम आरजेडी वाली उन 6 सीटों पर. इसमें प्रमुख है कहलगांव की सीट जहां आरजेडी के प्रवीण कुशवाहा और कांग्रेस से रजनीश भारती मैदान में हैं. कुशवाहा जातिगत आधार में मजबूत हो सकते हैं पर रजनीश की मौजूदगी यादव/मुस्लिम-समर्थन को बांट देगी. अगर स्थानीय मुद्दे कमजोर रहे तो एनडीए को फायदा हो सकता है. वहीं सुल्तानगंज में आरजेडी के चंदन सिन्हा और कांग्रेस के ललन यादव आमने-सामने हैं. यहां यादव/मुस्लिम और पिछड़ा समीकरण निर्णायक है. कांग्रेस ने यादव उम्मीदवार नहीं उतारकर समस्या खड़ी कर ली है. ललन यादव का नामकरण संभवतः गैरयादव वोट आकर्षित करने की कोशिश है, पर यादव वोट आरजेडी की तरफ टिके रह सकते हैं.
वहीं दूसरी ओर नरकटियागंज में कांग्रेस के शाश्वत केदार पांडे और आरजेडी के दीपक यादव आमने-सामने हैं. यहां इसके चलते वोट बंटने की प्रबल आशंका है. अगर कांग्रेस का पारंपरिक वोट बेस मजबूत है तो यह क्लोज फाइट होगी नहीं तो एनडीए या निर्दलीय फायदा उठा सकते हैं. वैशाली में कांग्रेस के इंजीनियर संजीव सिंह और आरजेडी के अजय कुशवाहा आमने-सामने हैं. वैशाली का मिश्रित सामाजिक ताना-बाना (कुशवाहा, यादव, भूमिहार) इसे कठिन बना देता है. आरजेडी-कांग्रेस दोनों के होने से तीसरा विकल्प इसका सीधा फायदा उठा सकता है.
अगर बात सिकंदरा की करें तो यहां कांग्रेस के विनोद चौधरी और आरजेडी के उदय नारायण चौधरी (पूर्व विधानसभा अध्यक्ष) आपस में लड़ रहे हैं. यहां उदय नारायण का असर पारंपरिक और स्थानीय संगठन में बड़ा है. वहीं विनोद चौधरी ने हाल में ही कांग्रेस में राहुल गांधी से अपनी नजदीकी दर्शाई थी. कांग्रेस के लिए इस सीट की रक्षा कठिन होगी, खासकर अगर वाम/अन्य प्रतिद्वंद्वियों का खेल भी सक्रिय हो.
क्या महागठबंधन के बीच होगी सुलह?
नवादा के वारसलीगंज में कांग्रेस के सतीश कुमार और आरजेडी की अनीता कुमारी (अशोक महतो की पत्नी) आमने-सामने हैं. वारसलीगंज में बाहुबली और प्रभावशाली परिवारों की मौजूदगी निर्णायक है. अनीता का टिकट स्थानीय प्रभाव कायम रखने की रणनीति है. कांग्रेस ने शुरुआती सूची में न होने के बावजूद सिंबल दिया, जो स्थानीय समझौते के कारण लिया गया फैसला हो सकता है. इन 6 सीटों पर महागठबंधन के वोट बंटने से एनडीए को सीधा फायदा होने की आशंका सबसे ज्यादा है, खासकर उन जगहों पर जहां यादव और मुस्लिम का मेल आरजेडी के पक्ष में परंपरा रही है. कांग्रेस-आरजेडी को तत्काल सुलह या स्थानीय समझौते की जरूरत है.
पुराने वोट बैंक पर होगा असर!
अब बात उन सीटों की जहां आरजेडी और सीपीआई आमने-सामने हैं. वैशाली के राजापाकर में कांग्रेस से प्रतिमा कुमारी हैं और सीपीआई के मोहित पासवान हैं. यहां पासवान परिवार के प्रभाव और वाम की जमीन गठबंधन की वोट-शक्ति को काट सकती है. सबसे दिलचस्प है बेगूसराय के बछवारा सीट की कहानी. यहां से कांग्रेस के शिव प्रकाश गरीबदास, सीपीआई के अवधेश राय एक दूसरे के खिलाफ हैं. बिहार के इस चुनाव में फ्रेंडली फाइट की शुरुआत इसी सीट से हुई. यहां दलित/पिछड़ा वोट निर्णायक हैं, सीपीआई के होने से परंपरागत कांग्रेस वोट प्रभावित होंगे. बिहार शरीफ में कांग्रेस के आमिर खान मैदान में हैं और उनके सामने हैं सीपीआई के शिव कुमार यादव. शहरी/नगरीय मुद्दे और धार्मिक समीकरणों के साथ यहां वाम का असर सीमित लेकिन निर्णायक हो सकता है.
रोहतास के करगहर में कांग्रेस के संतोष मिश्रा से सीधे मैदान में टक्कर ले रहे हैं सीपीआई के महेंद्र गुप्ता. यहां भी वाम-प्रभाव वाले मतदाता कांग्रेस के खिलाफ जा सकते हैं जो कांग्रेस को सीधा नुकसान करेगी. इसके अलावा दो सीटों पर आरजेडी और वीआईपी भी सीधे-सीधे मैदान में हैं. बाबू बरही सीट ऐसी है जिसमें वीआईपी से बिंदु गुलाब यादव मैदान में हैं तो आरजेडी से अरुण कुशवाहा हैं. वीआईपी के स्थानीय संगठन और साहनी के निशाद/पिछड़े वोटों पर पकड़ आरजेडी के लिए चुनौती है. कैमूर से चैनपुर में भी कमोवेश ऐसा ही मामला है. यहां वीआईपी के बालगोविंद बिंद के सामने आरजेडी के बृजकिशोर बिंद हैं. बिंद जातीय समीकरण में वीआईपी का कब्जा आरजेडी के वोट शेयर में सेंध लगा सकता है.
महागठबंधन की जीत पर असर
एक सीट ऐसी भी है जहां इस गठबंधन की सबसे छोटी पार्टी, IIP कांग्रेस के सामने है. बेलदौर से कांग्रेस उम्मीदवार है मिथिलेश निषाद. वहीं IIP ने अनीशा चौहान को उनके सामने उतार दिया है. निषाद समुदाय के अंदर मत विभाजन नतीजों पर असर डाल सकता है. आईआईपी जैसी छोटी पार्टियों का असर लोकल स्तर पर निर्णायक रह सकता है. इस समस्या को सुलझाने के लिए दो दिन का समय है. इसमें हाईकमान को तुरंत हस्तक्षेप कर स्थानीय समझौते करने होंगे. जहां संभव हो, कॉमन उम्मीदवार पर सहमति दे, नहीं तो न्यूनतम नुकसान वाले उम्मीदवार को समर्थन दें. ये टक्कर महागठबंधन की अखंडता और जीत-क्षमता का सीधा प्रभावित करेगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं