- बिहार चुनाव के दूसरे चरण में सीमांचल की 24 सीटें राज्य की सत्ता निर्धारण में निर्णायक भूमिका निभाएंगी.
- किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार जिलों में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत चुनावी नतीजों पर गहरा प्रभाव डालता है.
- AIMIM और जनसुराज पार्टी दोनों महागठबंधन के मुस्लिम-यादव वोट बैंक को कमजोर कर सकती है.
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसर चरण का प्रचार अभियान आज शाम थमने वाला है. दूसरे चरण में बिहार के सीमांचल, मिथिला, अंग क्षेत्र में वोटिंग होनी है. माना जा रहा है कि दूसरे चरण में जो गठबंधन लोगों का विश्वास जीतेगा, उसे ही बिहार की सत्ता मिलेगी. इस बीच सीमांचल के मुस्लिम वोटरों में बिखराव के संकेत मिलने शुरू हो गए है. जिससे बिहार के सत्ता समीकरणों में फेरबदल संभव है. दरअसल 11 नवंबर को होने वाले मतदान में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटें निर्णायक साबित होंगी. यह इलाका राज्य की सत्ता का पारंपरिक रास्ता माना जाता है, क्योंकि यहां की जनसांख्यिकी और वोट पैटर्न हर बार पटना की सत्ता की दिशा तय करते हैं.
सीमांचल का महत्व और जनसांख्यिकी
सीमांचल के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार चार जिले इसकी राजनीतिक पहचान तय करते हैं. माइनॉरिटी कमीशन के आंकड़ों के अनुसार — किशनगंज में मुस्लिम आबादी 67%, कटिहार में 42%, अररिया में 41% और पूर्णिया में 37% है. यही कारण है कि यहां का वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है.

2020 में ओवैसी का प्रदर्शन और नया समीकरण
पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की राजनीति में अप्रत्याशित प्रभाव दिखाया था. पार्टी ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन जैसी सीटों पर जीत दर्ज कर पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई थी. 2025 के चुनाव में ओवैसी एक बार फिर उसी रणनीति के साथ मैदान में हैं, लेकिन इस बार उन्हें चुनौती मिल रही है प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी से, जो सीमांचल में “विकास और शासन सुधार” के मुद्दों पर सक्रिय है.
जनसुराज और AIMIM का प्रभाव
राजनीतिक विश्लेषणों के अनुसार, जनसुराज और AIMIM दोनों का उद्देश्य महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के वोट बैंक को कमजोर करना है. जहां ओवैसी धार्मिक पहचान के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण कर रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर ग्रामीण क्षेत्रों और युवाओं के बीच अपने “गांव-गांव जनसंवाद” अभियान से वैकल्पिक राजनीति की छवि बना रहे हैं.

महागठबंधन और NDA की रणनीति
महागठबंधन की मुख्य चुनौती अपने मुस्लिम-यादव (MY) गठजोड़ को एकजुट बनाए रखना है. वहीं NDA (भाजपा-जदयू) सीमांचल में “विकास बनाम पहचान” की राजनीति पर फोकस कर रही है. भाजपा और जदयू सड़क, शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा जैसे स्थानीय मुद्दों के जरिये अल्पसंख्यक मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं.
चतुष्कोणीय मुकाबले की ओर सीमांचल
2025 में सीमांचल का राजनीतिक परिदृश्य अब त्रिकोणीय नहीं रहा. जनसुराज की एंट्री के साथ मुकाबला चतुष्कोणीय बन गया है — महागठबंधन, NDA, AIMIM और जनसुराज — चारों अपने-अपने आधार मजबूत करने में जुटे हैं. तेजस्वी यादव के लिए चुनौती मुस्लिम-यादव गठजोड़ को बरकरार रखने की है, जबकि नीतीश कुमार विकास एजेंडे को आगे रख रहे हैं.
सीमांचल तय करेगा सत्ता की दिशा
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, सीमांचल की 24 सीटें बिहार की सत्ता का बैरोमीटर हैं. 2020 में यहीं से महागठबंधन सरकार से पीछे रह गया था, और 2025 में भी यही इलाका सत्ता परिवर्तन का निर्णायक कारक बन सकता है.
इस बार की जंग सिर्फ दलों की नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं — पहचान की राजनीति बनाम विकास के एजेंडे — के बीच की मानी जा रही है. आने वाले हफ्तों में तय होगा कि सीमांचल की जनता किस दिशा में रुझान दिखाती है — धार्मिक पहचान या विकास का वादा.
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