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बिहार में चुनाव से पहले वादों की भरमार, महिला-युवा पर फोकस, जनता का सवाल- भरोसेमंद कौन?

बिहार की जनता के सामने इस बार चुनौती है कि वह किसके वादों को भरोसेमंद मानती है और किसे महज चुनावी जुमला समझती है. बिहार का मतदाता परिपक्व है और हमेशा सोच-समझकर निर्णय करता है.

बिहार में चुनाव से पहले वादों की भरमार, महिला-युवा पर फोकस, जनता का सवाल- भरोसेमंद कौन?
  • बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विकसित बिहार 2040 का नारा देते हुए रोजगार और महिला सुरक्षा पर जोर दिया है.
  • जनता दल यूनाइटेड ने सुशासन, महिला सशक्तीकरण और शराबबंदी को अपनी प्रमुख उपलब्धियां बताया है.
  • राष्ट्रीय जनता दल ने बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाकर दस लाख सरकारी नौकरियों के वादे किए हैं.
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है. इस बार मुकाबला केवल राजनीतिक दलों के गठजोड़ तक सीमित नहीं है, बल्कि वादों और घोषणाओं की राजनीति भी चुनावी हवा को और गर्म कर रही है. राष्ट्रीय दल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) जहां विकास, रोजगार और महिला सुरक्षा पर अपने सपने बेच रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस, युवाओं की बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और गरीबों की आर्थिक मदद को चुनावी केंद्र बना रहे हैं.

बीजेपी ने दिया 'विकसित बिहार 2040' का नारा

बीजेपी ने इस चुनाव में “विकसित बिहार 2040” का नारा दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी नेतृत्व का मानना है कि बिहार को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा से जोड़कर ही राज्य को आगे बढ़ाया जा सकता है. पार्टी ने पांच साल में 20 लाख नए रोजगार सृजित करने का ऐलान किया है. इसमें निजी निवेश, उद्योग स्थापना और स्टार्टअप प्रोत्साहन को प्राथमिकता दी जाएगी. वहीं महिलाओं को लुभाने के लिए हर जिले में महिला थाना, महिला अदालत और फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का वादा किया गया है.

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स्वास्थ्य के क्षेत्र में भाजपा ने मातृ-शिशु स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या दोगुनी करने और हर जिले में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल खोलने की योजना की घोषणा की है. वहीं वोटरों को गांव-गांव तक बिजली, पक्की सड़क और तेज़ इंटरनेट कनेक्टिविटी का भी भरोसा दिया गया है. किसानों को कोई भी राजनीतिक दल नाराज नहीं कर सकता. इसलिए उनके लिए आधुनिक तकनीक, सिंचाई सुविधाओं और फसल बीमा योजना का वादा किया गया है. बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है, राज्य की तस्वीर बदलने वाले दीर्घकालिक विकास और महिलाओं के वोट बैंक को साधने की.

जेडीयू का ‘सुशासन' और महिला सशक्तीकरण का मॉडल

वहीं ⁠जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू अपने पुराने ‘सुशासन' और महिला सशक्तीकरण के मॉडल पर कायम है. महिलाओं के लिए योजनाएं: पंचायतों की तरह ही अब सरकारी नौकरियों और ठेकों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का वादा. “साइकिल योजना” और “पोशाक योजना” को और व्यापक बनाने का ऐलान, वहीं स्वयं सहायता समूह (SHGs) के ज़रिए ग्रामीण महिलाओं को छोटे उद्योगों से जोड़ने और सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराने की घोषणा.

साथ ही इस योजना में महिलाओं को दस हज़ार की एक मुश्त राशि काफ़ी लुभाने वाली घोषणा मानी जा रही है और लोगों का ऐसा मानना है कि ये घोषणा चुनावी नतीजों को पलटने की ताक़त रखता है.

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शराबबंदी को अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं नीतीश

नीतीश कुमार शराबबंदी को अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं और इसे और सख्ती से लागू करने का संकल्प दोहराया गया है. वहीं युवाओं के लिए कौशल विकास केंद्र, आईटीआई और पॉलिटेक्निक संस्थानों के विस्तार के वायदे किए गए हैं. जेडीयू का साफ़ संदेश है कि उसने पहले महिलाओं, शिक्षा और सामाजिक सुधार में काम किया है, और भविष्य में भी उसी दिशा में मजबूती से आगे बढ़ेगी.

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प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) इस बार बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा बना रही है. पार्टी ने 10 लाख नौकरियों की घोषणा की है और कहा है कि सरकार बनने के 1 महीने के भीतर 10 लाख स्थायी सरकारी नौकरियों की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. वहीं स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में, सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को आधुनिक बनाने और शिक्षकों व डॉक्टरों की भर्ती बढ़ाने का वादा किया गया है.

राजद का पूरा फोकस सामाजिक न्याय पर है. जातीय जनगणना के आधार पर पिछड़े वर्गों, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए नई योजनाओं की घोषणा और आरक्षण के सीमा को बढ़ाने की बात भी पार्टी कर रही है.

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युवाओं को लुभाने की कोशिश में आरजेडी

आरजेडी ने किसानों को मुफ्त बिजली और फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करने का वादा किया है. वहीं युवा और खेल को बढ़ावा देने और खेल अकादमियों और युवा छात्रवृत्ति योजनाओं की शुरुआत की घोषणा कर पार्टी युवाओं को लुभाने की कोशिश में है. तेजस्वी यादव ने युवाओं और किसानों दोनों को यह संदेश दिया है कि उनकी सरकार “रोज़गार और न्याय” पर फोकस करेगी.

कांग्रेस का महिलाओं और गरीबों को सीधे आर्थिक लाभ देने पर ज़ोर

इधर कांग्रेस ने बिहार चुनाव में महिलाओं और गरीबों को सीधे आर्थिक लाभ देने पर ज़ोर दिया है. महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता के तौर पर हर गरीब महिला को ₹2000 मासिक सहायता देने का वादा, शिक्षा और नौकरियों में महिलाओं को 33% आरक्षण, फास्ट-ट्रैक कोर्ट और महिला हेल्पलाइन को मज़बूत करने की बात करके कांग्रेस की महिलाओं को पूरे तौर पर लुभाने की कोशिश की है. किसानों के कर्ज़ माफ करने और मुफ्त स्वास्थ्य बीमा योजना की घोषणा भी पार्टी ने की है, क्योंकि ये घोषणा कई और प्रदेशों में कांग्रेस के लिए काम कर गई है.

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कांग्रेस ने स्वास्थ्य और शिक्षा में सरकारी स्कूलों में मुफ्त कोचिंग, लैपटॉप योजना और कॉलेजों की संख्या बढ़ाने का ऐलान किया है. मुख्य तौर पर कांग्रेस का फोकस गरीब वर्ग और महिलाओं पर है, जिससे उसे ग्रामीण इलाकों और शहरी मध्यम वर्ग में पैठ बनाने की उम्मीद है.

हालांकि अगर जनता पर इन घोषणाओं के असर की बात करें तो युवा वर्ग मानता है कि बेरोज़गारी बिहार की सबसे बड़ी समस्या है. राजद का 10 लाख नौकरियों का ऐलान युवाओं को सीधा आकर्षित कर रहा है. वहीं बीजेपी का 20 लाख रोजगार और जेडीयू का कौशल विकास भी युवाओं को संदेश दे रहा है.

गरीब महिलाओं को लुभा सकता है कांग्रेस का ₹2000 भत्ता का वादा

महिलाओं के बीच जेडीयू का प्रभाव पहले से रहा है, लेकिन बीजेपी ने सुरक्षा और स्टार्टअप योजनाओं से और मजबूती दी है. कांग्रेस का ₹2000 भत्ता गरीब महिलाओं को लुभा सकता है. वहीं जीविका दीदी को लोन देने और खाते में सीधा पैसा देने की घोषणा से जेडीयू ने मोटे तौर पर यहां बाज़ी मार ली है.

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राजद और कांग्रेस किसानों को मुफ्त बिजली, MSP और कर्ज़माफी जैसी योजनाओं से साधने की कोशिश कर रहे हैं. बीजेपी और जेडीयू उन्हें तकनीकी सुविधाओं और बीमा योजनाओं पर भरोसा दिला रहे हैं. गरीब और अल्पसंख्यक को कांग्रेस और राजद सीधे आर्थिक मदद और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर इन तबकों को प्रभावित करना चाहते हैं.

कौन भरोसेमंद, किसका वादा जुमला जनता करेगी तय

बिहार चुनाव 2025 में वादों और घोषणाओं की बाढ़ आ चुकी है. राष्ट्रीय दल दीर्घकालिक विकास, बुनियादी ढांचा और सुरक्षा पर भरोसा जता रहे हैं, जबकि विपक्ष युवाओं की नौकरी, किसानों को राहत और महिलाओं की आर्थिक मदद पर केंद्रित है. जनता के सामने अब यह चुनौती है कि वह किसके वादों को भरोसेमंद मानती है और किसे महज़ चुनावी जुमला समझती है. बिहार का मतदाता परिपक्व है और हमेशा सोच-समझकर निर्णय करता है. यह चुनाव तय करेगा कि 2025 में बिहार की सत्ता किसके हाथों में जाती है, विकास के लंबे वादों के भरोसे या तत्काल राहत और न्याय की राजनीति के आधार पर.

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