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ब्लॉग राइटर
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प्रियदर्शन की कलम से : अरुण जेटली को गुस्सा क्यों आता है?
यह कुछ ही दिनों के भीतर दूसरी बार है जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दाल और तेल की आसमान छूती क़ीमतों के अपने ज़रूरी मुद्दे पर सफ़ाई देने की जगह बुद्धिजीवियों पर मिथ्या आरोप लगाने में अपनी ऊर्जा जाया की है। लेकिन ये आरोप ख़ुद ही अपनी राजनीतिक सीमाओं की कलई खोलते हैं।
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बात पते की : 'मांझी' बनाने के लिए खुद भी 'मांझी' बनना पड़ता है
वर्ष 1971 के आम चुनावों में कांग्रेस का चुनाव चिह्न 'गाय-बछड़ा' था, मगर फिल्म 'मांझी - द माउंटेनमैन' में इंदिरा गांधी 'हाथ' को मजबूत करने की अपील कर रही हैं। इस तथ्यात्मक चूक के अलावा भी पूरी फिल्म बहुत फिल्मी है।
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बात पते की : व्यापमं के आईने में मध्य वर्ग की सड़ांध
जिस मामले में सैकड़ों लोग गिरफ़्तार हों, इतने ही फ़रार हों, हज़ारों लोग आरोपी बनाए गए हों, और इन सबमें राज्य के राज्यपाल से लेकर कॉलेजों के प्रोफेसर, डॉक्टर, और चपरासी-ड्राइवर तक इल्ज़ामों से घिरे हों, क्या वह बस एक सरकारी तंत्र की विफलता का मामला है?