इसमें संदेह नहीं कि व्यापमं घोटाला मध्य प्रदेश के जर्जर और भ्रष्ट हो चुके सरकारी तंत्र की कोख से निकला है और इसकी वजह से उन बहुत सारे नौजवानों का भविष्य अंधेरे में डूबा है, जो अपनी मेहनत और ईमानदारी पर भरोसा करके नाकाम इम्तिहान देते रहे होंगे। लेकिन व्यापमं इतना भर नहीं है।
वह भारत के खाते-पीते मिडिल क्लास के भीतर की सड़ांध का आईना भी है- ऊपर से ख़ूब चमकता-दमकता, मेहनत और प्रतिभा की बात करता यह मध्यवर्ग धीरे-धीरे पैसे को सबसे बड़ी चीज़ मानने लगा है और इसके लिए हर तरह के धत्तकरम करने को तैयार है।
वह अपने नालायक बच्चों को घूस देने की कला सिखाता है और उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर बनाकर उनकी सारी उम्र इस घूस की वापसी के लिए सुनिश्चित कराता है। इस मिडिल क्लास के लिए अच्छी पोस्टिंग का मतलब गांव-देहात की वह पोस्टिंग नहीं है, जहां उसकी ज़्यादा ज़रूरत है, बल्कि बड़े शहरों और आर्थिक केंद्रों की वह मलाईदार पोस्टिंग है, जहां सबसे ज़्यादा रिश्वतखोरी की गुंजाइश है।
पैसे खाने-खिलाने में उसे कोई नैतिक दुविधा नहीं होती, वह अन्याय करता भी है और सहता भी है। वह ख़ुद को देशभक्त बताता है, लेकिन अक्सर उसकी हरकतें देश को कमज़ोर करने वाली साबित होती हैं, वह ख़ुद को ईमानदार बताता है, लेकिन ईमानदारी के हर इम्तिहान में फेल होता है।
वरना व्यापमं में वो क़ाबिल और पढ़ने-लिखने वाले लड़के शामिल नहीं होते, जो अपने बूते इम्तिहान पास कर सकते थे, लेकिन रुपयों की ख़ातिर दूसरे नाक़ाबिल लोगों को पास कराने में लगे रहे। दरअसल, यह पाखंड इतना आम और सार्वजनिक है कि अब इससे जुड़े लोग शर्मिंदा तक नहीं होते।
उल्टे अगर उन्हें सजा हो जाए, बुढ़ापे में जेल हो जाए, उनका सार्वजनिक अपमान हो जाए, तो दूसरों को उनसे सहानुभूति होने लगती है। भारत में मीडिया में दिखाई पड़ने वाले घोटाले उस महाघोटाले के मुकाबले में कुछ नहीं हैं, जो भारतीय समाज में कई स्तरों पर चल रहा है।
व्यापमं ने बस नए सिरे से यह मौका सुलभ कराया है कि हम इस सड़ांध को पहचानें और इसके विरुद्ध वाकई अपने भीतर कोई प्रतिरोध पैदा करें।