पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सभी आठ विधानसभा सीटें जीतना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है (पीएम मोदी-फाइल फोटो).
खास बातें
- पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में पार्टी की साख बचाने की चुनौती
- आठ में से तीन सीटों को बचाने और बाकी जीतने के लिए जद्दोजहद
- टिकट न मिलने से असंतुष्ट नेताओं को जोड़कर रखने की भी चुनौती
वाराणसी: उत्तर प्रदेश के चुनावी महासमर में बनारस सभी पार्टियों के लिए खास बन गया है. सीटों के बंटवारे को लेकर ऐसा मंथन हो रहा है कि मानो यहां की सीटें अगर जीत लीं तो उत्तर प्रदेश को जीत लेने जैसा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. लिहाजा यहां की हार और जीत देश के फलक पर पार्टी की राजनीति पर गहरा असर डाल सकती है, क्योंकि एक तरफ जहां बनारस की सीटों पर बीजेपी के विजय रथ को रोककर विपक्षी यह दावा ठोकने लगेंगे कि पीएम अपना ही गढ़ नहीं बचा सके तो देश में क्या जीतेंगे... वहीं बीजेपी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका जवाब देना भारी पड़ेगा.
सूत्र बताते थे कि बनारस की आठों सीटों पर दावेदारी का निर्णय पीएम की देखरेख में होगा. वाराणसी संसदीय क्षेत्र पर अगर नजर डालें तो यहां की आठ विधानसभा सीटों में से तीन सीटों शहर उत्तरी, शहर दक्षिणी और कैंट सीट पर भाजपा का कब्जा है. रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा सीट पर समाजवादी का कब्जा है. पिंडरा सीट पर कांग्रेस विजयी हुई थी तो अजगरा और शिवपुर सीट बसपा के पास है. इसमें शिवपुर से बीएसपी के विधायक उदयलाल मोर्या हाल ही में बीजेपी में शामिल हो गए लिहाजा अब बीजेपी के पास चार सीटें मानी जा सकती हैं. भाजपा इन चारों सीटों पर तो अपना कब्जा चाहती ही है साथ ही वह बाकी बची चार सीटों पर भी अपना परचम लहराना चाहती है. हालांकि कई चुनावों से भाजपा शहर की तीन सीटों के अलावा कभी भी अपना पांव नहीं फैला पाई है. इसके बावजूद वह इस चुनाव पर सभी सीटों को जीतना चाहती है. भाजपा की उम्मीदें इसलिए भी हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सभी विधानसभा सीटों पर अच्छी बढ़त ली थी. बीजेपी उन्हीं वोटों को सहेजकर रखने की फिराक में है. इस कारण प्रत्याशियों के चयन में गंभीर मंथन हो रहा है.
सपा-कांग्रेस के गठबंधन के बदले समीकरण में यह मंथन इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि कांग्रेस पिंडरा की अपनी जीती सीट के अलावा कैंट और दक्षिणी विधानसभा सीट पर दूसरे नंबर पर थी. उसके प्रत्याशी ने 45 हजार वोट पाए थे, लिहाजा सपा से गठबंधन के बाद इन सीटों पर कांग्रेस बहुत मजबूत नजर आ रही है. ऐसे में बनारस की सीट पर भाजपा की जीत नाक का सवाल बन गई है.
भाजपा ने वाराणसी की आठ सीटों में से पांच सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. उसने अपनी परम्परागत सीट शहर दक्षिणी और कैंट से अपने सिटिंग विधायकों का टिकट बदल दिया है. दक्षिणी में जहां संगठन के एक कार्यकर्ता को टिकट दिया तो वहीं कैंट में वर्तमान विधायक के बेटे को टिकट दिया गया. उत्तरी विधानसभा सीट पर वर्तमान विधायक को ही टिकट मिला. जबकि एक सीट भासपा के खाते में गई. बाकी की सीट भी अपना दल और भासपा गठबंधन को जा सकती है. यहां पर उनकी अपनी बिरादरी के लोग ज्यादा हैं. कुल मिला कर कहने का मतलब यह कि लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी को जिताने के लिए भाजपा ने जिन एक-एक वोट को सहेजकर कारवां को आगे बढ़ाया था. इस मुहिम में से कुछ ऐसे नेता भी थे जो दूसरी पार्टी से आए थे. उनमें कई टिकट भी चाहते थे. उन्हें टिकट नहीं मिला. लिहाजा ऐसे लोगों को कैसे सहेजा जाए यह एक बड़ी चुनौती है.