अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान (Taliban) लगातार उस पर जुबानी हमले कर रहा है. तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तानी मीडिया को दिए ऐसे ही एक इंटरव्यू में अमेरिका और उसकी खुफिया एजेंसी का मजाक उड़ाया है. मुजाहिद ने कहा, अमेरिका और अफगान फौज को लग रहा था कि वो जिंदा नहीं हैं, जबकि मैं उनकी नाक के नीचे काबुल में ही रह रहा था. तालिबान का प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद (Taliban's spokesman Zabiullah Mujahid) करीब एक दशक के बाद पहली बार मीडिया के सामने आया था.
काबुल पर पिछले महीने तालिबान के कब्जे के बाद मुजाहिद ने यह सार्वजनिक तौर पर पहली प्रेस कान्फ्रेंस की थी. मुजाहिद ने कहा कि जब काबुल पर अमेरिका और अफगानी सेना का कब्जा था तो वह वहीं रह रहा था और वे उसे कोई भूत-प्रेत जैसा शख्स समझते थे. मुजाहिद कई सालों तक भूमिगत रहते हुए तालिबान के संदेशों को दुनिया तक पहुंचाता रहा है. तालिबान प्रवक्ता ने माना कि वो उत्तर पश्चिम पाकिस्तान की हक्कानिया मदरसे में पढ़ा हुआ है, जिसे पूरी दुनिया में तालिबान यूनिवर्सिटी या यूनिवर्सिटी ऑफ जिहाद के नाम से जाना जाता है.
43 साल के मुजाहिद का कहना है कि अमेरिकी फौजों ने छापेमारी कर कई बार उसे पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन बाद में वो ये मानने लगे कि जबीउल्लाह नाम का कोई ऐसा शख्स मौजूद ही नहीं है. अमेरिका और अफगान फौज का यही भ्रम उसका मददगार बना औऱ वो अफगानिस्तान में बेरोकटेक घूमता रहा. मुजाहिद ने दावा किया कि वो उन जगहों पर भी पहुंचने में कामयाब रहा, जहां तालिबान ने निर्णायक जंग में पहली बार हल्ला बोला था और उनकी बातों को दुनिया तक पहुंचाता रहा.
दुश्मनों के लिए यह बेहद चौंकाने वाला रहा. उसका कहना था कि अमेरिकी सेना को लगता था कि या तो जबीउल्लाह है ही नहीं या फिर वो कई अलग-अलग नामों और चेहरे पेश कर सामने आता है. मुजाहिद का कहना है कि अमेरिकी सैनिक स्थानीय लोगों को घूस देते थे ताकि वे उसके बारे में जानकारी पा सकें, लेकिन उसने कभी अफगानिस्तान से भागने के बारे में नहीं सोचा.
मुजाहिद अफगानिस्तान के पक्तिया प्रांत के गरदेज जिले में 1978 में पैदा हुआ था. उसने हक्कानिया मदरसे से इस्लामिक न्यायिक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की है. तालिबान की कार्यवाहक सरकार के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, ऊर्जा मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर और दूरसंचार मंत्री नजीबुल्लाह हक्कानी, सभी वैश्विक तौर पर घोषित आतंकियों की सूची में शामिल हैं. ये सभी हक्कानी मदरसे से पढ़े हुए हैं. इस मदरसे को पाकिस्तान सरकार से लगातार मदद मिलती रही है.
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