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This Article is From Mar 08, 2022

Ukraine : UN का 'रक्षा की जिम्मेदारी' का सिद्धांत 'R2P एक खोखला वादा'?

Russia Ukraine War: "2005 में R2P की पुष्टि के बाद से, संयुक्त राष्ट्र (UN) अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, यमन, सोमालिया, म्यांमार और अन्य जगहों पर अत्याचारों को रोकने में विफल रहा है. अब यह यूक्रेन में नागरिकों की रक्षा करने में विफल हो रहा है."

Ukraine : UN का 'रक्षा की जिम्मेदारी' का सिद्धांत 'R2P एक खोखला वादा'?
Ukraine पर Russia के हमले के बाद उठे UN की ज़िम्मेदारी पर सवाल (File Photo)

यूक्रेन (Ukraine) के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) हर दिन मदद की गुहार लगाते हैं. वह अपने लोगों को रूसी आक्रमण से बचाने के लिए सैन्य सहायता की भीख माँगते हैं. हर दिन, विश्व नेता यह कहने के लिए नए तरीके खोज लेते हैं कि वे सैन्य रूप से हस्तक्षेप नहीं करेंगे. बात सिर्फ शब्दों और मानवीय सहायता तक थमी हुई है. तो, संयुक्त राष्ट्र के बहुप्रचारित ‘‘रक्षा की जिम्मेदारी'' - या ‘‘R2P'' - सिद्धांत का क्या हुआ? आबादी को नरसंहार, युद्ध अपराधों और जातीय हमलों से बचाने के लिए बल प्रयोग करने की इच्छा.  अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन पहले ही रूसी युद्ध अपराधों की ‘‘बहुत विश्वसनीय'' रिपोर्ट का दावा कर चुके हैं. यूक्रेन पर आक्रमण R2P के एक खोखला वादा होने की हकीकत दिखाता है जो हमेशा से ऐसा ही रहा है.

सुरक्षा की जिम्मेदारी क्या है?

यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ के प्रोफेसर पीटर ली के हवाले से द कन्वरसेशन ने लिखा है,"मारियुपोल से इरपिन तक, यूक्रेनी नागरिकों पर रूसी तोपखाने के हमलों ने उन्हें नरक की आग में झौंक रखा है."

सुरक्षा की जिम्मेदारी की पुष्टि 2005 के संयुक्त राष्ट्र विश्व शिखर सम्मेलन में की गई थी. विश्व के नेता नागरिकों को उस तरह के अत्याचारों से बचाने के लिए सहमत हुए जो इस समय यूक्रेन में सामने आ रहे हैं. उस समय इसे ‘‘एक उभरती हुई अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकार मानदंड''कहा गया था.

संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान ने घोषणा की थी कि दुनिया ने ‘‘जनसंहार, युद्ध अपराधों, जातीय सफाई और मानवता के खिलाफ अपराधों से आबादी की रक्षा के लिए सामूहिक जिम्मेदारी ली है''. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में एक नया युग स्पष्ट रूप से आ गया था.

1990 के दशक में रवांडा और सेरेब्रेनिका में हुए अत्याचारों की प्रतिक्रिया के रूप में सुरक्षा की जिम्मेदारी का यह सिद्धांत उभरा। इसके उद्देश्य मानवीय, सुविचारित और आशावादी थे. 1999 में, टोनी ब्लेयर ने समय की नजाकत को समझ लिया, जब उन्होंने घोषणा की: ‘‘अब हम सभी अंतर्राष्ट्रीयवादी हैं."

ब्लेयर ने मानवीय आधार पर नागरिकों की रक्षा के लिए सैन्य हस्तक्षेप के लिए पांच सिद्धांतों का सुझाव दिया: --- मामला साबित होना चाहिए--- सभी राजनयिक विकल्प समाप्त हो चुके हों --- समझदार और विवेकपूर्ण सैन्य अभियान होने चाहिए --- यह एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है--- क्या हमारे राष्ट्रीय हित शामिल हैं? वर्ष 2000 में, कोसोवो, बोस्निया, सोमालिया और रवांडा की घटनाओं से प्रेरित होकर, कनाडा सरकार ने आगे कदम बढ़ाया.

इसने हस्तक्षेप और राज्य संप्रभुता पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग (आईसीआईएसएस) की स्थापना की. इसने तथाकथित ‘‘मानवीय हस्तक्षेप के अधिकार'' का उल्लेख किया. यानी दूसरे राज्यों में जोखिम में पड़े लोगों की सुरक्षा के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करने का अधिकार.

R2P के साथ समस्या

2005 में R2P की पुष्टि के बाद से, संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, यमन, सोमालिया, म्यांमार और अन्य जगहों पर अत्याचारों को रोकने में विफल रहा है. अब यह यूक्रेन में नागरिकों की रक्षा करने में विफल हो रहा है.

समस्या यह है कि R2P को विफल होने के लिए लागू किया गया था. इसकी वजह सिद्धांत के केंद्र में एक अनसुलझा भू-राजनीतिक तनाव है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं: अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस। यह पांचों संयुक्त राष्ट्र की सैन्य अथवा आर2पी कार्रवाई को वीटो कर सकते हैं. हर कोई अपने सहयोगियों और अपने हितों की रक्षा करता है, इसलिए यह अब तक कारगर नहीं हो पाया है.

2005 में सभी आशावादी बातों के बावजूद, 2009 तक आर2पी को लागू करने में बहुत कम प्रगति हुई थी.

तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र और सदस्य राज्य ‘‘अपनी सबसे मौलिक रोकथाम और सुरक्षा जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थे''.

2018 तक, सीरिया में आठ साल से लड़ाई चल रही थी, और संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि संघर्ष में 400,000 लोग मारे गए, 56 लाख शरणार्थी और 66 लाख आंतरिक रूप से विस्थापित हुए.

फिर भी रूस और चीन ने आर2पी लागू करने से इनकार कर दिया. रूस और चीन ने सीरिया और युद्ध अपराधों के अपराधियों को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में संदर्भित करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों को भी वीटो कर दिया.

यदि मानव पीड़ा के ऐसे स्तर संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत आर2पी- आधारित सैन्य हस्तक्षेप को प्रेरित नहीं कर सकते, तो कौन कर पाएंगे?

आर2पी की राजनीतिक सीमाएँ पहुँच चुकी हैं. मानवीय आधार पर सैन्य हस्तक्षेप की संभावना, व्यवहार में, पहले से ही इतिहास की किताबों में बंद हो चुकी है.

हताश यूक्रेनियन को झूठी आशा देना बंद करना अधिक ईमानदार होगा. हमें स्वीकार करना चाहिए कि आर2पी एक सैद्धांतिक विचार था जिसका समय कभी नहीं आया.

यह भी देखें:- Sumy में कटी बिजली, Blackout में भारतीय छात्र  

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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