फाइल फोटो
बीजिंग:
भारत के साथ ब्रह्मपुत्र नदी का जल बांटने को लेकर एक तंत्र का विचार देने वाली अपनी आधिकारिक मीडिया की खबरों को कम तवज्जो देते हुए चीन ने सोमवार को कहा कि नदी प्रवाह के आंकड़े को साझा करने के लिए बीजिंग और नई दिल्ली के बीच प्रभावी सहयोग है और यह इसे जारी रखना चाहता है.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जेंग शुआंग ने यहां बताया, ‘दोनों देशों की सीमाओं के अंदर बहने वाली नदियों पर चीन और भारत के पास उपयुक्त सहयोग तंत्र है.’ उन्होंने सरकारी समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक आलेख को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यह तंत्र अभी सुगमता से काम कर रहा है और प्रभावी है. चीन इस पर भारत के साथ सहयोग जारी रखने का इच्छुक है.’
दरअसल, समाचार पत्र में कहा गया है कि चीन जल साझेदारी के लिए भारत और बांग्लादेश की भागीदारी वाले एक बहुपक्षीय सहयोग तंत्र में शामिल होने को तैयार है. आलेख में कहा गया है कि चीन जल बंटवारे के लिए भारत और बांग्लादेश के साथ बहुपक्षीय सहयोग चाहता है. यह प्रस्ताव काफी मायने रखना है क्योंकि नदियों के जल बंटवारे को लेकर चीन की भारत के साथ कोई संधि नहीं है.
इसमें कहा गया है, ‘भारतीय लोगों के गुस्से को समझना आसान है क्योंकि उन्होंने हाल ही में ऐसी खबरें पढ़ी हैं जिनमें कहा गया है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का जल रोक दिया है. कई देशों से होकर गुजरने वाली यह नदी दक्षिण पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम और बाद में बांग्लादेश से होकर बहती है. यह नदी इन क्षेत्रों के लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है.
आलेख में कहा गया है, ‘दरअसल भारत को इस प्रकार की परियोजनाओं पर इतनी अधिक तवज्जो देने की आवश्यकता नहीं है. इन परियोजनाओं का मकसद जल संसाधनों का उचित उपयोग एवं मुनासिब विकास में मदद करना है.’
इसमें कहा गया है कि चिंता की बात यह है कि कुछ स्थानीय भारतीय मीडिया प्रतिष्ठान जल रोके जाने को भारत के पाकिस्तान के साथ हालिया जल विवाद से जोड़कर यह गलत धारणा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि चीन ‘पाकिस्तान को मौन सहयोग देने के लिए दोनों दक्षिण एशियाई देशों के बीच तथाकथित जल युद्ध’ में शामिल होना चाहता है, जबकि हकीकत यह है कि ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी पर बांध परियोजना का निर्माण जून 2014 में शुरू हो गया था.’
इसमें कहा गया है कि यह बात समझी जा सकती है कि भारत नदी के प्रवाह के नीचे की ओर स्थित देश के तौर पर ब्रह्मपुत्र पर चीन के जल दोहन को लेकर संवेदनशील है. इस बात की संभावना नहीं है कि चीन एक संभावित हथियार के रूप में नदी के जल का इस्तेमाल करेगा.’ इसने इस बात का जिक्र किया है कि चीन कई देशों में बहने वाली लांसांग मीकांग नदी सहित कई नदियों का उद्गम स्रोत है. लांसांग मीकांग चीन, म्यामांर, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम से होकर बहती है. इसने कहा, ‘यदि चीन ने राजनीतिक कारणों को लेकर ब्रह्मपुत्र को बाधित कर दिया तो ऐसा कदम पांच दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के बीच दहशत पैदा करेगा और उनके साथ चीन के संबंधों को नुकसान पहुंचाएगा.
इसने कहा, ‘हमारा मानना है कि जब ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले तीन बड़े देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की बात आएगी तब चीन इस तंत्र से अनुभव हासिल करना चाहेगा. चीन और भारत के बीच जल विवाद का यह सर्वाधिक प्रभावी हल होगा.’ एक अक्टूबर को चीन ने अपने सर्वाधिक खर्चीले बांध के निर्माण को लेकर तिब्बत में शियाबुकु नदी का जल रोकने की घोषणा की थी.
शियाबुकु नदी पर लालहो परियोजना पर 74 करोड़ डॉलर का निवेश शामिल है. बाद में बांध के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए चीन ने कहा था कि परियोजना के जलाशय की क्षमता यारलुंग जांगबो (ब्रह्मपुत्र) के सालाना औसत प्रवाह के 0.02 प्रतिशत से भी कम ही है.
दोनों देशों में बहने वाली नदियों पर चीन और भारत के बीच फिलहाल विशेषज्ञ स्तर का तंत्र है जिसके तहत बीजिंग नदी प्रवाह पर आंकड़े मुहैया करता है. एक नये तंत्र का विचार देते हुए ‘ग्लोबल टाइम्स’ के आलेख में भारत पर विभिन्न रूप में ब्रह्मपुत्र नदी का दोहन करने की कोशिश बढ़ाने का आरोप लगाया गया. इसने कहा कि कुछ कोशिशें बांग्लादेश के हितों को नुकसान पहुंचा सकती थी लेकिन बांग्लादेश के पास सौदेबाजी की ताकत का अभाव होने के चलते लोगों का कम ध्यान आकृष्ट हो पाया. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत पर बहुत अधिक निर्भर है.
इसने कहा कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले देशों के बीच एक सहयोग तंत्र स्थापित करने के प्रति भारत की इच्छा नहीं हो सकती है क्योंकि ऐसे किसी तंत्र से भारत को इस तरह के कदम उठाने से रोके जाने की संभावना है जिससे बांग्लादेश के हितों को नुकसान होता हो.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जेंग शुआंग ने यहां बताया, ‘दोनों देशों की सीमाओं के अंदर बहने वाली नदियों पर चीन और भारत के पास उपयुक्त सहयोग तंत्र है.’ उन्होंने सरकारी समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक आलेख को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यह तंत्र अभी सुगमता से काम कर रहा है और प्रभावी है. चीन इस पर भारत के साथ सहयोग जारी रखने का इच्छुक है.’
दरअसल, समाचार पत्र में कहा गया है कि चीन जल साझेदारी के लिए भारत और बांग्लादेश की भागीदारी वाले एक बहुपक्षीय सहयोग तंत्र में शामिल होने को तैयार है. आलेख में कहा गया है कि चीन जल बंटवारे के लिए भारत और बांग्लादेश के साथ बहुपक्षीय सहयोग चाहता है. यह प्रस्ताव काफी मायने रखना है क्योंकि नदियों के जल बंटवारे को लेकर चीन की भारत के साथ कोई संधि नहीं है.
इसमें कहा गया है, ‘भारतीय लोगों के गुस्से को समझना आसान है क्योंकि उन्होंने हाल ही में ऐसी खबरें पढ़ी हैं जिनमें कहा गया है कि चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का जल रोक दिया है. कई देशों से होकर गुजरने वाली यह नदी दक्षिण पश्चिम चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम और बाद में बांग्लादेश से होकर बहती है. यह नदी इन क्षेत्रों के लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है.
आलेख में कहा गया है, ‘दरअसल भारत को इस प्रकार की परियोजनाओं पर इतनी अधिक तवज्जो देने की आवश्यकता नहीं है. इन परियोजनाओं का मकसद जल संसाधनों का उचित उपयोग एवं मुनासिब विकास में मदद करना है.’
इसमें कहा गया है कि चिंता की बात यह है कि कुछ स्थानीय भारतीय मीडिया प्रतिष्ठान जल रोके जाने को भारत के पाकिस्तान के साथ हालिया जल विवाद से जोड़कर यह गलत धारणा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं कि चीन ‘पाकिस्तान को मौन सहयोग देने के लिए दोनों दक्षिण एशियाई देशों के बीच तथाकथित जल युद्ध’ में शामिल होना चाहता है, जबकि हकीकत यह है कि ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी पर बांध परियोजना का निर्माण जून 2014 में शुरू हो गया था.’
इसमें कहा गया है कि यह बात समझी जा सकती है कि भारत नदी के प्रवाह के नीचे की ओर स्थित देश के तौर पर ब्रह्मपुत्र पर चीन के जल दोहन को लेकर संवेदनशील है. इस बात की संभावना नहीं है कि चीन एक संभावित हथियार के रूप में नदी के जल का इस्तेमाल करेगा.’ इसने इस बात का जिक्र किया है कि चीन कई देशों में बहने वाली लांसांग मीकांग नदी सहित कई नदियों का उद्गम स्रोत है. लांसांग मीकांग चीन, म्यामांर, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम से होकर बहती है. इसने कहा, ‘यदि चीन ने राजनीतिक कारणों को लेकर ब्रह्मपुत्र को बाधित कर दिया तो ऐसा कदम पांच दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के बीच दहशत पैदा करेगा और उनके साथ चीन के संबंधों को नुकसान पहुंचाएगा.
इसने कहा, ‘हमारा मानना है कि जब ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले तीन बड़े देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की बात आएगी तब चीन इस तंत्र से अनुभव हासिल करना चाहेगा. चीन और भारत के बीच जल विवाद का यह सर्वाधिक प्रभावी हल होगा.’ एक अक्टूबर को चीन ने अपने सर्वाधिक खर्चीले बांध के निर्माण को लेकर तिब्बत में शियाबुकु नदी का जल रोकने की घोषणा की थी.
शियाबुकु नदी पर लालहो परियोजना पर 74 करोड़ डॉलर का निवेश शामिल है. बाद में बांध के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए चीन ने कहा था कि परियोजना के जलाशय की क्षमता यारलुंग जांगबो (ब्रह्मपुत्र) के सालाना औसत प्रवाह के 0.02 प्रतिशत से भी कम ही है.
दोनों देशों में बहने वाली नदियों पर चीन और भारत के बीच फिलहाल विशेषज्ञ स्तर का तंत्र है जिसके तहत बीजिंग नदी प्रवाह पर आंकड़े मुहैया करता है. एक नये तंत्र का विचार देते हुए ‘ग्लोबल टाइम्स’ के आलेख में भारत पर विभिन्न रूप में ब्रह्मपुत्र नदी का दोहन करने की कोशिश बढ़ाने का आरोप लगाया गया. इसने कहा कि कुछ कोशिशें बांग्लादेश के हितों को नुकसान पहुंचा सकती थी लेकिन बांग्लादेश के पास सौदेबाजी की ताकत का अभाव होने के चलते लोगों का कम ध्यान आकृष्ट हो पाया. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत पर बहुत अधिक निर्भर है.
इसने कहा कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह वाले देशों के बीच एक सहयोग तंत्र स्थापित करने के प्रति भारत की इच्छा नहीं हो सकती है क्योंकि ऐसे किसी तंत्र से भारत को इस तरह के कदम उठाने से रोके जाने की संभावना है जिससे बांग्लादेश के हितों को नुकसान होता हो.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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