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This Article is From Nov 01, 2023

Explainer: मिडिल ईस्ट में नफरत की आग लगा रहा ईरान? समझें कैसे लड़ रहा प्रॉक्सी वॉर

ईरान ने कई साल से प्रॉक्सी का एक नेटवर्क बनाया है, जो प्रमुख मिलिशिया ग्रुप बन चुका है. इनमें से कुछ मिलिशिया राजनीतिक दलों के रूप में भी तब्दील हो चुके हैं, जो अपने संबंधित देशों की सरकारों को चुनौती देते हैं.

Explainer: मिडिल ईस्ट में नफरत की आग लगा रहा ईरान? समझें कैसे लड़ रहा प्रॉक्सी वॉर
हमास की ओर से 7 अक्टूबर को इजरायल पर 20 मिनट के अंदर करीब 5 हजार रॉकेट दागे गए.
नई दिल्ली:

इजरायल और फिलिस्तीनी संगठन हमास (Israel Palestine Conflict) के जंग के बीच ईरान का नाम बार-बार सामने आ रहा है. यह तय है कि हमास (Hamas) को ईरान से फंडिंग, हथियार, ट्रेनिंग और दूसरी तरह की मदद मिलती है. कई इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट में इसके सबूत भी दिए गए हैं. 1979 की इस्लामी क्रांति (Islamic Revolution)के बाद से ईरान की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में तेजी से बदलाव आया. देश ने प्रॉक्सी नेटवर्क (Proxy Groups) के साथ मिडिल ईस्ट (Middle East) में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक सचेत कोशिश की है.

कुद्स फोर्स (The Quds Force) इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) की पांच ब्रांच में एक है. ये खुफिया और सीक्रेट मिशन में माहिर है. कुद्स फोर्स प्रॉक्सी ग्रुप के मुख्य बिंदु के रूप में काम करती है. ये उन्हें ईरान के रिजनल एजेंडे को मजबूत करने के लिए हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराती है. इसे 'प्रतिरोध की धुरी (Axis of Resistance) के रूप में प्रोजेक्ट किया जाता रहा है. ईरान ने कई साल से प्रॉक्सी का एक नेटवर्क बनाया है, जो प्रमुख मिलिशिया ग्रुप बन चुका है. इनमें से कुछ मिलिशिया राजनीतिक दलों के रूप में भी तब्दील हो चुके हैं, जो अपने संबंधित देशों की सरकारों को चुनौती देते हैं.

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पहले दशक में ईरानी क्रांति का प्रभाव क्षेत्र इराक, लेबनान और खाड़ी अमीरात में शिया समूहों तक ही सीमित था. यह बहुसंख्यक सुन्नी आबादी वाले देशों में अपनी पहुंच बनाने में नाकाम रहा. और न ही इसके कट्टरपंथी विचारों ने इस्लामी आतंकवादी समूहों को लुभाया.

अमेरिका ने 1984 के बाद से अपने छह अलग-अलग राष्ट्रपतियों के कार्यकाल के दौरान मिडिल ईस्ट में ईरान के मिलिशिया प्रॉक्सी नेटवर्क पर कई तरह के बैन लगाए. ऐसा मिलिशिया प्रॉक्सी नेटवर्क के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करने के मकसद से किया गया था. इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 2017 और 2021 के बीच दंडात्मक आर्थिक उपायों के दायरों को और बढ़ाया.

हालांकि, ईरान के मिलिशिया ग्रुप पर लगाए गए बैन कभी भी पूरी तरह से सफल नहीं हुए. 2020 में अमेरिकी विदेश विभाग ने अनुमान लगाया कि ईरान लेबनान स्थित हिजबुल्लाह संगठन को हर साल 700 मिलियन डॉलर की फंडिंग करता है. इससे पहले, ईरान ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी संगठन हमास और इस्लामिक जिहाद समेत फिलिस्तीनी ग्रुप को सालाना 100 मिलियन डॉलर की फंडिंग की.

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आइए जानते हैं ईरान के ये मिलिशिया ग्रुप क्या हैं और कहां से ऑपरेट होते हैं:-

यमन (Yemen)
इजरायल से लगभग 2500 किलोमीटर दूर सना में बैठे यमन के हूती विद्रोही (Houthis) इजरायल-हमास जंग में एंट्री करने वाली लेटेस्ट बाहरी ताकत है. यमन के विद्रोही समूह ने मंगलवार को दावा किया कि उन्होंने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइलें दागी हैं.

फारस की खाड़ी के दो राज्य सऊदी अरब और बहरीन लंबे समय से ईरान पर उनकी शिया आबादी के बीच विद्रोह भड़काकर क्षेत्र में कलह पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं. दोनों देशों में असहमति को क्रूरता से दबाया गया है. हालांकि, ईरान यमन में ऐसा करने में कामयाब रहा. ईरान ने रिवोल्यूशनरी गार्ड्स, आर्म्ड फोर्स और हूती शिया आंदोलन के जरिए यमन के गृहयुद्ध में हिंसा की आग लगाई. ये अपने आप में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ एक लंबा प्रॉक्सी वॉर है.

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हूती आंदोलन काफी हद तक हिजबुल्लाह पर आधारित था. ये 1990 के दशक में शुरू हुआ और 2014 के बाद इसे मोमेंटम हासिल की. हूती ​​समूह का नेतृत्व हूती जनजाति करती है. मौजूदा समय में इसका नेतृत्व अब्दुल-मलिक बदरुलदीन अल-हूती कर रहे हैं.

लेबनान (Lebanon)
1980 के दशक की शुरुआत में हिजबुल्लाह मिडिल ईस्ट में ईरान का पहला प्रॉक्सी ग्रुप बनकर उभरा. इस ग्रुप को रिवोल्यूशनरी गार्ड्स से सैन्य सुविधाएं और फंडिंग मिलती है. हिजबुल्लाह तेहरान के शिया इस्लामवादी आदर्शों को मानता है. ये ज्यादातर लेबनानी शिया मुसलमानों की ही भर्ती करता है.

हिजबुल्लाह का गठन 1982 में लेबनान पर आक्रमण करने वाली इजरायली सेना से लड़ने के लिए किया गया था. इसने नियमित रूप से लेबनान में अमेरिकी कर्मियों और उसके एंबेसी के खिलाफ आत्मघाती हमले किए. सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के अनुसार, 2020 तक कम से कम 130000 रॉकेट और मिसाइलों के साथ हिजबुल्लाह दुनिया का सबसे भारी हथियारों से लैस गैर-राज्य संगठन बन गया है.

हिजबुल्लाह, फिलिस्तीनी संगठन हमास और इस्लामिक जिहाद समेत क्षेत्र में अन्य ईरान समर्थित ग्रुप के साथ गहरे और घनिष्ठ रिश्ते रखता है. 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर कुछ मिनटों में 5 हजार से ज्यादा रॉकेट हमले किए. इसके बाद से इजरायली सेना जवाबी कार्रवाई कर रही है. वहीं, हिजबुल्लाह फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता से लड़ाई में शामिल हो गया है. उसने अमेरिका और इजरायल को धमकी भी दे दी है.

सीरिया (Syria)
सीरिया की असद फैमिली (Assad family) एक शिया समूह है. ये सत्ता में बने रहने के लिए लंबे समय से ईरान के साथ अपने गठबंधन पर निर्भर रही है. गठबंधन 2011 से विशेष रूप से फायदेमंद रहा है, जब राष्ट्रपति बशर अल-असद को सरकार विरोधी विद्रोह और सुन्नी चरमपंथियों के साथ गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा था.

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2011 में सीरिया में अराजकता फैलने के बाद ईरान पर इजरायल ने अल-असद की सेना को लगभग 80,000 लड़ाकू कर्मी उपलब्ध कराने का आरोप लगाया गया था. वहीं, रूस ने हवाई मदद मुहैया कराई थी. वहीं, 2014 में, रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने ज़ैनबियॉन ब्रिगेड बनाई. ये एक पाकिस्तानी शिया मिलिशिया ग्रुप थी, जो ईरान के साथ-साथ पाकिस्तान के आदिवासी इलाकों में रहने वाले पाकिस्तानियों को लेकर बनी थी. इसने विद्रोही मिलिशिया के खिलाफ अल-असद की सेना के साथ लड़ाई लड़ी थी.

फातेमियाउन डिवीजन अफगान हजारा सेनानियों का एक ग्रुप है, जो 1980 के दशक में गठित किया हुआ था. 1990 के दशक में इसका अस्तित्व खत्म हो गया. 2012 में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने इसे फिर से रिवाइव किया. 2014 के बाद से ईरान ने सीरिया के सरकार से लड़ने के लिए फातेमियाउन डिवीजन को वहा तैनात किया है.

इराक (Iraq)
2003 में इराक पर अमेरिकी आक्रमण के बाद ईरान ने अपने दुश्मन पर अपना प्रभाव बढ़ाया और मिलिशिया की स्थापना की. इस मिलिशिया ग्रुप ने महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत हासिल की और आर्थिक फायदा भी उठाया.

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इसके बाद साल 2007 में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कातिब हिजबुल्लाह नाम से एक शिया मिलिशिया बनाया. अमेरिका ने 2009 में कताइब हिजबुल्लाह को ‘विदेशी आतंकवादी संगठन' घोषित किया. इराक में अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के खिलाफ हिंसा के लिए इसके महासचिव अबू महदी अल मुहंदिस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए थे.

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2014 में कातिब हिजबुल्लाह, इस्लामिक स्टेट (IS) के लड़ाकों से लड़ने के लिए इराक के पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज (PMF) में शामिल हो गया. हालांकि, इसके बाद भी इसने तेहरान में नेतृत्व के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे.

2007 से 2011 तक और 2018 से 2020 तक ईरान के समर्थन से कातिब हिजबुल्लाह ने इराक में अमेरिकी सेना और उसके सहयोगियों पर सिलसिलेवार हमले किए. 2019 के रॉकेट हमले में किरकुक में एक आर्मी बेस पर अमेरिकी नागरिक ठेकेदार की मौत हो गई. जबकि 4 अमेरिकी सैनिक घायल हो गए.

2006 में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और हिजबुल्लाह ने शिया मिलिशिया असैब अहल अल हक की स्थापना की. इसके लड़ाकों को ट्रेनिंग भी दी. जब अमेरिका ने 2006 और 2011 के बीच इराक से अपनी सेना वापस बुला ली, तो इस ग्रुप ने अमेरिका और उसके सहयोगियों पर 6000 से ज्यादा हमले किए. लगभग 20000 लड़ाकों के साथ असैब अहल अल हक इस क्षेत्र में सबसे बड़े ईरान समर्थित मिलिशिया ग्रुप में शामिल है.

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इसी तरह, रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने इराक में हरकत हिजबुल्लाह अल नुजाबा, बद्र संगठन और कताइब सैय्यद अल शुहादा जैसे अन्य शिया समूहों को हथियार मुहैया कराए और फंडिंग की.

गाजा (Gaza)
फिलिस्तीनी क्षेत्रों में ईरान दशकों से इजरायल के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर लड़ रहा है. माना जाता है कि इजरायल पर हमले करने वाले हमास को तेहरान ने फंडिंग की थी. हमास ने 1990 के दशक में तेहरान में अपना एक ऑफिस भी खोला था.

2012 में सीरिया में अल-असद शासन का समर्थन करने से इनकार करने के बाद ईरान और हमास के बीच संबंधों में खटास आ गई. इसके कारण इराक ने हमास को दी जाने वाली फंडिंग में अस्थायी रूप से कटौती कर दी. हालांकि, 2017 में ईरान ने हमास के लिए फिर से पहले जैसी फंडिंग शुरू कर दी है.

इसके साथ ही फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) ने ईरानी क्रांति से प्रेरणा ली. अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक, यह ईरान ही है, जो इस्लामिक जिहाद की फंडिंग करता है. अमेरिकी विदेश विभाग ने 2020 में कहा कि ईरान फिलिस्तीनी समूहों को सालाना 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा की फंडिंग करता है.

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सऊदी अरब (Saudi Arabia)
1987 में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने सऊदी अरब में शिया आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह अल हेजाज़ की स्थापना की. ये मिडिल ईस्ट में ईरान के प्राथमिक राजनीतिक समर्थकों में से एक था. अमेरिका ने 1996 के खोबर टॉवर पर हुए घातक बम विस्फोट के लिए इसके चार नेताओं पर बैन लगा दिया था. इस हमले में 19 अमेरिकी वायु सेना कर्मी मारे गए. 350 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे.

अमेरिकी न्याय विभाग ने ईरान को पीड़ितों के परिवारों को 254 मिलियन डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया था.

बहरीन (Bahrain)
बहरीन का अल अश्तर ब्रिगेड मिलिशिया ग्रुप को भी ईरान से फंडिंग मिलती है. 2014 में हुए भीषण हमले में अल अश्तर ब्रिगेड का हाथ था. इसमें दो पुलिस अधिकारी मारे गए थे.

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