EXPLAINER : इजरायल के पीएम नेतन्याहू का आखिर क्या है गाजा प्लान ? 

1948 में जब इज़रायल बना उससे पहले के युद्ध के दौरान मौजूदा इज़राइल के इलाक़े से क़रीब 7 लाख फिलिस्तीनियों को घरबार छोड़ कर भागना पड़ा. फिलिस्तीन में इसे नकबा या तबाही के रुप में जाना जाता है.

खास बातें

  • इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध के बीच आम नागरिकों की मौतें ज्यादा
  • इजरायल ने हमास को खत्म करने की कही है बात
  • हमास के पास अभी भी हैं बंधक
नई दिल्ली:

इज़रायल-हमास युद्ध के बीच एक ऐसे दस्तावेज़ के लीक होने की ख़बर आई है जिसे लेकर भारी विवाद खड़ा हो गया है. इस दस्तावेज़ के मुताबिक़ इज़रायल की योजना ग़ाज़ा के लोगों को मिस्र के इलाक़े सिनाई में भेजने की है. इस प्रस्तावित योजना को इज़रायल की सेना ने तैयार किया है. बता दें कि विकीलिक्स ने इस दस्तावेज़ के साथ अपने एक्स हैंडल पर लिखा है कि हमास के हमले के एक हफ़्ते बाद इज़रायल की मिनिस्ट्री ऑफ़ इटेलिजेंस ने 10 पन्नों का एक गुप्त दस्तावेज़ तैयार किया है.

फिलिस्तीनियों को मिस्र भेजने की है योजना

ज़ाहिर है कि ऐसी योजना बिना पीएम नेतन्याहू की सहमति के तैयार नहीं हो सकती. इस योजना में ग़ाज़ा की फ़िलिस्तीनी आबादी को मिस्र के सिनाई में भेजने की बात की गई है. इस योजना को बताते हुए लिखा गया है कि ज़मीनी अभियान शुरू करने से पहले इज़रायल की रणनीति पहले उत्तरी ग़ाज़ा के लोगों को दक्षिणी ग़ाज़ा जाने का निर्देश देने की है. जो उसने किया भी.

हेब्रू की एक वेबसाइट पर आए दस्तावेज

इसके बाद उत्तरी ग़ाज़ा से ऑपरेशन शुरू कर दक्षिणी ग़ाज़ा की ओर बढ़ने की है. सैन्य ऑपरेशन के दौरान दक्षिणी ग़ाज़ा से लगने वाले मिस्र के राफ़ा क्रासिंग प्वाइंट को खाली रखने की है. ताकि लोग आसानी से उधर जा सकें. मिस्र के सिनाई के उत्तरी इलाक़े में तंबुओं के बस्तियां और शहर बसाए जाएं ताकि फिलस्तीनी आबादी को वहां रका जा सके. ये दस्तावेज़ सबसे पहले हेब्रू की एक वेबसाइट मेकोमिट पर आई. इस वेबसाइट के मुताबिक़ इस दस्तावेज़ पर इज़राइल की मिनिस्ट्री ऑफ़ इटेलिजेंस की तरफ़ से सत्यापन है.  

पीएम नेतन्याहू के दफ्तर ने किया खारिज

हालांकि, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दफ़्तर ने इस दस्तावेज़ को काल्पनिक अभ्यास और एक कांसेप्ट पेपर बता कर इसे खारिज़ करने की कोशिश की है. लेकिन इस दस्तावेज़ के सामने आने के बाद फिलिस्तीन सरकार और मिस्र की सरकार दोनों इसकी कड़ी आलोचना की है. मिस्र को लगता है कि इज़रायल की योजना ग़ाज़ा की समस्या को मिस्र की समस्या बनाने की है. इतनी बड़ी आबादी को मिस्र में विस्थापित होने से मिस्र में दिक्कत पैदा होगी. 

फिलिस्तीन को लगता है कि इस तरह की योजना के ज़रिए इज़राइल की मंशा पूरे ग़ाज़ा पर कब्ज़े की है वो भी पूरी फिलस्तीन आबादी को ग़ाज़ा से बाहर निकालना चाहता है. फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रवक्ता नाबिल अबू रूदैनेह का कहना है कि हम इस तरह फिलस्तियों को कहीं भी भेजे जाने के ख़िलाफ़ हैं. अगर ऐसी कोशिश होती है तो इसे नहीं होने दिया जाएगा. जो 1948 में हुआ उसे नहीं दोहराने दिया जाएगा. 

गाजा के अधिकतर निवासी अब फिलिस्तीनि शरणार्थी

1948 में जब इज़रायल बना उससे पहले के युद्ध के दौरान मौजूदा इज़राइल के इलाक़े से क़रीब 7 लाख फिलिस्तीनियों को घरबार छोड़ कर भागना पड़ा. फिलिस्तीन में इसे नकबा या तबाही के रुप में जाना जाता है. जो अब इज़राइल का क्षेत्र है उस इलाक़े से फिलस्तीनी अपने घरों में ताला लगा कर उस उम्मीद में भागे कि शांति होगी तो लौट आएंगे लेकिन आज तक नहीं लौट पाए. इज़रायल ने उन्हें लौटने नहीं दिया. उन फिलस्तिनियों की आबादी अब कर 60 लाख है और वे वेस्ट बैंक के अलावा लेबनान, सीरिया और जार्डन के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. ग़ाज़ा के अधिकतर निवासी भी फिलिस्तीनी शरणार्थी हैं जो मौजूदा इज़रायल के सीमावर्ती इलाक़े के भाग कर ग़ाज़ा पहुंचे थे.

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इस बीच ये भी आशंका जताई जा रही है कि इज़रायल की सेना उत्तरी ग़ाज़ा और दक्षिणी ग़ाज़ा को बांट कर पूरी फिलस्तीनी आबादी को दक्षिणी ग़ाज़ा में सिमटा देना चाहता है, क्योंकि उत्तरी ग़ाज़ा हमास का केन्द्र है और उसे पूरी तरह ख़त्म करने के लिए वे यहां अपना लंबा ऑपरेशन तो चलाए ही, उस पर आम लोगों की जान लेने का आरोप भी न लगे. वैसे भी उत्तरी ग़ाज़ा की 11 लाख की आबादी में से क़रीब 8 लाख को वह दक्षिणी ग़ाज़ा जाने को मजबूर कर चुका है. अगर पीएम नेतन्याहू की सिनाई योजना पर सही में अमल होता है तो इससे अरब देशों के गुस्से को रोकना मुश्किल होगा.