- उत्तराखंड सरकार ने बाहरी राज्यों से आने वाले निजी और वाणिज्यिक वाहनों पर ग्रीन सेस लगाने का निर्णय लिया है.
- ग्रीन सेस की वसूली फास्टैग और ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन कैमरों के माध्यम से राज्य की सीमाओं पर की जाएगी.
- कार और निजी चार पहिया वाहनों से रोजाना 80 रुपये, भारी वाहनों से 120 से 700 रुपये तक ग्रीन सेस वसूला जाएगा.
उत्तराखंड में अब अपनी गाड़ी से जाना महंगा होने वाला है. राज्य सरकार ने बाहरी राज्यों से आने वाली गाड़ियों पर ग्रीन सेस (Green Cess) लगाने का फैसला किया है. यह नियम पर्यावरण संरक्षण, हवा की गुणवत्ता को सुधारने और सड़क सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से लागू किया है. पहले यह सेस मुख्य रूप से कमर्शियल वाहनों पर था, लेकिन अब निजी वाहनों (जैसे कार, जीप) पर भी लागू होगा.
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सेस कब से लागू होगा?
सेस दिसंबर 2025 से लागू होगा. राज्य सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है.
सेस कैसे वसूला जाएगा?
फास्टैग के माध्यम से: राज्य की सीमाओं पर लगे 15-16 ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) कैमरों से वाहनों की पहचान होगी. जैसे ही बाहरी वाहन उत्तराखंड में प्रवेश करेगा, फास्टैग से सेस की राशि ऑटोमैटिक कट जाएगी.
मान्यता अवधि: एक बार कटा हुआ सेस 24 घंटे के लिए मान्य होगा. अगर वाहन 24 घंटे के अंदर दोबारा राज्य में प्रवेश करता है, तो दोबारा सेस नहीं लगेगा.
कितना सेस देना होगा?
डिलीवरी वैन: 250 रुपये
भारी वाहन: 120 रुपये
बस:140 रुपये
ट्रक: 140-700 रुपये (आकार के अनुसार)
कौन से वाहनों पर सेस में छूट रहेगी ?
- दोपहिया वाहन (बाइक, स्कूटर)
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV), CNG, हाइड्रोजन, सोलर या बैटरी वाहन
- सरकारी गाड़ियां, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड
सरकार को होगा कितना फायदा?
सरकार का अनुमानित राजस्व 100-150 करोड़ रुपये हर साल मिलेगा.
सरकार इन पैसों का क्या करेगी?
हवा की गुणवत्ता पर नज़र , सड़कों की साफ़ सफ़ाई ,ग्रीन होने का विकास , स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम और सिटी ट्रैफिक सिस्टम में सुधार होगा.
क्या किसी और प्रदेश में लिया जाता है ग्रीन सेस?
बता दें कि उत्तराखंड सरकार ने यह कदम हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उठाया है, जहां पहले से ही ऐसा सेस लागू है. उत्तराखंड में इसे साल 2024 में लाया गया था, लेकिन लागू करने में देरी हुई.
उत्तराखंड में ग्रीन सेस की जरूरत क्यों पड़ी?
- उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, जहां हर साल लाखों पर्यटक अपनी गाड़ियों से आते हैं, खासकर चारधाम यात्रा, हिल स्टेशनों (नैनीताल, मसूरी) और अन्य पर्यटन स्थलों पर. इससे वाहनों का दबाव बढ़ता है, जिससे वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में काफ़ी बढ़ौतरी होती है, जिसको कम करना जरूरी है.
- बाहरी वाहनों की भारी संख्या से सड़कों पर भीड़भाड़ और नुक़सान होता है, खासकर संकरी पहाड़ी सड़कों पर. यह सेस सड़क रखरखाव, स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम और शहरी परिवहन सुधार के लिए धन जुटाने में मदद करेगा.
- सरकार का अनुमान है कि ग्रीन सेस से सालाना 100-150 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा. यह धनराशि राज्य के पर्यावरण और बुनियादी ढांचा सुधार के लिए काफ़ी काम आयेगा.
- उत्तराखंड सरकार यह फैसला हिमाचल प्रदेश जैसे दूसरे पहाड़ी राज्यों के मॉडल से प्रेरित है, जहां ऐसा सेस पहले से लागू है और सफल रहा है.
- भारी संख्या में पर्यटक वाहन न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि स्थानीय संसाधनों पर भी दबाव डालते हैं. ग्रीन सेस से पर्यटकों की भीड़ को कुछ हद तक नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है.
- सेस वसूली के लिए ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) और फास्टैग सिस्टम का उपयोग होगा. यह न केवल पारदर्शिता बढ़ाएगा, बल्कि राज्य में डिजिटल और स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन को भी बढ़ावा देगा.
- उत्तराखंड सरकार पर्यटन और विकास को बढ़ावा देना चाहती है. ग्रीन सेस जैसे उपायों से पर्यटकों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है.
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