मूर्तियां भले सजीव दिखें पर ये मूर्तियां कभी बोलती नहीं हैं. लेकिन जब बात सियासत की हो तो मूर्तियां भी बोलने लगती हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में दशकों से मूर्तियों की अनसुनी आवाज ना सिर्फ अपनी विचारधारा के प्रचार प्रसार का जरिया रही हैं बल्कि इनसे समय-समय पर वोट बैंक भी मजबूत हुआ है. कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा और भाजपा सबने अपनी अपनी विचारधारा के हिसाब से मूर्तियां लगाईं.
मूर्तियों से विचारधारा का प्रचार प्रसार
मूर्तियां किसी भी शहर की शोभा तो बढ़ाती ही हैं, साथ ही इनसे विचारधारा का प्रचार प्रसार भी होता है, जातियों का गौरव भी बढ़ाया जाता है तो कई बार ये वोट बैंक को साथ लाने का जरिया भी बनती रही हैं. पार्कों में, स्मारकों में, प्रेरणा स्थलों में, चौराहों पर, बाद स्टेशन से लेकर रेलवे स्टेशन और कई बार स्कूल कॉलेज में ये मूर्तियां लगाई जाती हैं. कभी सरकारी खर्च पर तो कभी सामाजिक खर्च से इन मूर्तियों को लगाया जाता रहा है.
लखनऊ के वसंत कुंज इलाके में 230 करोड़ रुपयों की लागत से 65 एकड़ जमीन पर राष्ट्र प्रेरणा स्थल का निर्माण किया गया है. गोमती नदी के किनारे जिस जगह ये प्रेरणा स्थल तैयार किया गया है, वहां कभी कूड़े का पहाड़ दिखाई दिया करता था. इस प्रेरणा स्थल में लगीं डॉ श्यामा प्रसाद, पंडित दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की कांस्य से बनीं 65-65 फीट की मूर्तियां लगाई गई हैं.
उत्तर प्रदेश में पार्क, प्रेरणा स्थल और स्मारक प्रतीकों की राजनीति के केंद्रबिंदु में रहते हैं. कांग्रेस ने महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के अलावा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी समेत अपनी विचारधारा के नेताओं को मूर्तियां लगवाईं तो वहीं सपा ने राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और जनेश्वर मिश्र जैसे समाजवादी नेताओं की मूर्तियां लगवाईं. बीजेपी ने भी अटल बिहारी वाजपेयी और दीन दयाल उपाध्याय की मूर्तियां लखनऊ में स्थापित कराई हैं.
बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो लखनऊ से लेकर नोएडा तक बीएसपी ने कई स्मारक बनाए. दोनों शहरों में अंबेडकर पार्क कई वजहों से विवादों में भी रहा. लखनऊ में लगभग 700 करोड़ की लागत से बने अंबेडकर पार्क में करीब 40 करोड़ रुपए बड़े हाथियों की मूर्तियों पर लगा दिए गए. छोटी बड़ी मिलाकर 3000 हाथी की मूर्तियां लगाई गईं. महापुरुषों के अलावा खुद मायावती ने अपनी मूर्तियां लगवाईं, जिसको लेकर राजनैतिक विवाद जारी रहा.
बीएसपी प्रमुख मायावती ने लगवाईं मूर्तियां
मूर्तियां स्थापित कराने के मामले में बीएसपी प्रमुख मायावती के आसपास भी कोई नहीं है. साल 2012 में जब अखिलेश यादव सीएम बनें तो उन्होंने पिछले बीएसपी सरकार पर 40 हज़ार करोड़ के मूर्ति घोटाले का आरोप लगाया था. तब ये कहा गया कि बीएसपी सरकार में छह हजार करोड़ रुपए मूर्तियों के निर्माण में लगाए गए. इसमें कांशीराम प्रेरणा स्थल समेत अन्य स्मारकों की लागत शामिल है.
समाजवादी पार्टी ने भी लखनऊ के गोमती नगर में एशिया का सबसे बड़ा पार्क जनेश्वर मिश्रा पार्क बनवाया था. जनेश्वर मिश्रा की मूर्ति 25 फीट ऊंची और लगभग 19 टन वजनी है. जनेश्वर मिश्रा पार्क को बनवाने की लागत करीब 300 करोड़ रुपए आई थी. इसी तरह गोमती नगर में ही डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क का भी निर्माण कराया गया था. हालांकि अखिलेश यादव मायावती जितनी मूर्तियां तो नहीं लगाया सके लेकिन अब वो कई मूर्तियों के वादे कर चुके हैं.
अखिलेश यादव ने किया वादा
अखिलेश यादव ने बीते कुछ समय में कई महापुरुषों की जयंती या पुण्यतिथि के मौकों पर अपनी सरकार आने पर उनकी मूर्तियां लगवाने का वादा किया है. इसमें बीएसपी संस्थापक कांशीराम, महाराणा प्रताप, भगवान विश्वकर्मा, महाराज सुहेलदेव से लेकर पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया की मूर्तियां शामिल हैं. साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा के ब्राह्मण नेताओं ने परशुराम मंदिर बनवाकर उसमें भगवान परशुराम की मूर्ति लगवाईं. दावा है कि भविष्य में परशुराम की 108 फीट की मूर्ति स्थापित कराई जाएगी.
भारतीय जनता पार्टी भी मूर्तियां की इस प्रतीकात्मक राजनीति में पीछे नहीं है. लखनऊ के चारबाग स्टेशन से हजरतगंज के रास्ते में दीन दयाल उपाध्याय की मूर्ति हो या फिर उदा देवी पासी की या फिर अब राष्ट्र प्रेरणा स्थल में लगाई गईं विशालकाय मूर्तियों से बीजेपी ने भी अपनी विचारधारा को भविष्य के लिए संजोने के पर्याप्त जतन कर लिए हैं. जिस इमारत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का दफ्तर है, उस लोक भवन में भी अटल बिहारी वाजपेयी की 25 फीट की मूर्ति लगाई गई है.
मूर्तियां को अराजक तत्वों ने बनाया निशाना
हाल के दिनों में संविधान को केंद्र में रखकर की गई राजनीति के दौर में कई जगहों पर संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की मूर्तियां को अराजक तत्वों ने निशाना बना दिया. कई जगहों पर इसको लेकर माहौल भी गर्म हुआ और हिंसा तक हो गई. इसी वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि पूरे प्रदेश में जहां-जहां अंबेडकर की मूर्तियां लगी हैं, वहां इन मूर्तियों को बाउंड्री बनाकर घेरा जाएगा ताकि कोई इनको नुकसान ना पहुंचा सके.
देखा जाए तो कोई राजनैतिक दल मूर्ति के प्रतीकों की राजनीति में पीछे नहीं है. इसमें कोई शक नहीं कि ये मूर्तियां महापुरुषों के योगदानों को आने वाली पीढ़ियों को सुखद संदेश देने का काम करती हैं लेकिन ये भी सच है कि हर बदलती सरकार के साथ प्रदेश के गली मुहल्लों चौराहों से लेकर बड़े बड़े पार्कों में बनने वाली ये मूर्तियां समय-समय पर राजनैतिक विवादों और बयानबाजियों में भी आती रही हैं और आती रहेंगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं