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यूपी उपचुनाव की ऐसी सीट का समीकरण जहां बीते 57 सालों से कोई स्थानीय नेता चुनाव नहीं जीता

UP By Election: यूपी उपचुनाव 2024 में मुकाबला बेहद रोचक है और लड़ाई भीषण है. ये मनोबल की लड़ाई है. कोई भी पक्ष कमतर साबित नहीं होना चाहता. जानिए मीरापुर सीट का समीकरण...

यूपी उपचुनाव की ऐसी सीट का समीकरण जहां बीते 57 सालों से कोई स्थानीय नेता चुनाव नहीं जीता
UP By Election: मीरापुर सीट पर रालोद और सपा के बीच मुकाबला देखा जा रहा है.

यूपी उपचुनाव (UP By Election) में एक ऐसी सीट है, जहां बीते 57 सालों से कोई स्थानीय नेता चुनाव नहीं जीत सका है. लोग बाहर से आए, चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा चले गए. यह ऐसी सीट है, जहां कभी जाट-मुस्लिम का समीकरण काम करता है तो कभी दलित-मुस्लिम का समीकरण. अक्षय वृक्ष, शुकदेव मंदिर और गंगा घाट पहचान है इस मीरापुर विधानसभा सीट (Meerapur Assembly Seat) की. यहां के लोगों को ढाई साल के लिए अपना विधायक चुनना है. मुजफ्फरनगर ज़िले की मीरापुर सीट इस वक़्त सियासी अखाड़ा बन चुकी है.

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सियासी अखाड़ा इसलिए क्योंकि मीरापुर की लड़ाई ही कुछ ऐसी है. यहां मुकाबला आरएलडी (RLD) बनाम सपा (SP) बनाम बसपा (BSP) बनाम आसपा (ASP) बनाम एआईएमआईएम (AIMIM) है. 2022 के चुनाव में मीरापुर सीट को आरएलडी के चंदन चौहान ने जीत ली थी. इसलिए बीजेपी ने आरएलडी को गठबंधन में ये सीट दे दी, लेकिन पिछली बार और इस बार में फ़र्क़ ये है कि पिछली बार आरएलडी का गठबंधन सपा के साथ था और इस बार बीजेपी के साथ है.

मीरापुर का समीकरण

मीरापुर में मुस्लिम, जाट और दलित वोटर जीत-हार तय करते रहे हैं. इस बार आरएलडी ने जहां हिंदू उम्मीदवार मैदान में उतारा है, वहीं प्रमुख विपक्षी दलों के उम्मीदवार मुस्लिम बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. आरएलडी से मिथिलेश पाल प्रत्याशी हैं तो सुम्बुल राणा सपा प्रत्याशी हैं. बसपा ने शाह नज़र को प्रत्याशी बनाया है. मीरापुर सीट का चुनावी माहौल जानने के लिए यहां के जातीय और धार्मिक आंकड़े समझना ज़रूरी है. मीरापुर में कुल वोटरों की संख्या 3 लाख 25 हज़ार है.⁠इनमें से 1 लाख 30 हज़ार के करीब मुस्लिम वोटर हैं. ⁠दलित वोटर करीब 50 हज़ार हैं. ⁠जाट मतदाताओं की संख्या क़रीब 35 हज़ार है.⁠पाल वोटर 20 हज़ार हैं.⁠सैनी 20 हज़ार हैं. गुर्जर लगभग 18 हज़ार हैं.दूसरी बिरादरियों के वोटरों की संख्या लगभग 50 हज़ार मानी जाती है.कभी दलित-मुस्लिम तो कभी जाट-मुस्लिम का समीकरण जिताऊ साबित होता है.

रालोद-सपा का रण

माना जा रहा है कि मीरापुर में लड़ाई दो महिलाओं के बीच है. बीजेपी की सहयोगी आरएलडी ने पूर्व विधायक मिथिलेश पाल को मैदान में उतारा है. वहीं सपा ने पूर्व सांसद क़ादिर राणा की बहू और बसपा के वरिष्ठ नेता मुनकाद अली की बेटी सुम्बुल राणा पर भरोसा जताया है. 2022 के चुनाव में जाट-मुस्लिम समीकरण ने आरएलडी को जिताया था, लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ अलग हैं. मीरापुर सीट वर्चस्व साबित करने की सीट हो गई है. अगर आरएलडी जीती तो इलाक़े में वो अपना प्रभाव साबित कर लेगी, लेकिन अगर सपा जीत गई तो आरएलडी की पिछली जीत के बाद बढ़े प्रभाव पर पानी फिर सकता है. अगर कोई तीसरा जीता तो ये साफ़ हो जाएगा कि मीरापुर हर चुनाव में नए समीकरण से ही अपना विधायक चुनकर सदन भेजता है.

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