ज्यादातर लोगों के लिए टैक्स रिटर्न फाइलिंग की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है. अब बाकी बचे कामको पूरा करने का समय है. ये टैक्स रिटर्न के असेसमेंट से जुड़ी किसी जरूरत से संबंधित है. इससे पहले बड़ी संख्या में टैक्सपेयर्स को पता चला है कि उनका असेसमेंट पूरा हो चुका है. उनमें से बहुत से लोगों को रिफंड लेना है. और वहां ध्यान देने की जरूरत है.
रिफंड की सूचना
इनकम टैक्स विभाग असेसमेंट ऑर्डर भेजता है, जिसमें सब्मिट की गई इनकम की सभी डिटेल्स मौजूद होती हैं. इसके साथ जिस टैक्स का भुगतान किया गया है और किसी अतिरिक्त टैक्स या बकाया रिफंड की डिटेल रहती है. अगर रिफंड को क्लेम कर लिया गया है और समान आंकड़े पर असेसमेंट आया है, तो टैक्सपेयर को ये उनके बैंक अकाउंट में मिल जाना चाहिए.
बहुत से लोगों के लिए दिक्कत यहीं से शुरू होती है. और वो दो बड़ी चीजों का सामना करते हैं. पहला, अगर रिफंड बिल्कुल नहीं आता है. और दूसरा, अगर रिफंड इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 245 के तहत किसी अन्य डिमांड के खिलाफ एडजस्ट किया जाता है. इन दोनों स्थितियों से निपटना अहम है, ताकि पैसा मिल जाए.
बैंक अकाउंट की डिटेल्स
ऐसे बहुत से मामले हैं, जहां इनकम टैक्स रिटर्न में दिए गए या बताए गए बैंक अकाउंट से जुड़ी मुश्किल होती है. इसकी वजह से रिफंड फंस जाता है और टैक्सपेयर को नहीं मिलता है. एक सामान्य चीज ये है कि रिफंड हासिल करने के लिए बताया गया अकाउंट बंद हो चुका है. ऐसा संभव है कि बताए गए अकाउंट में पिछले साल पैसा आया था, लेकिन अब वो मौजूद नहीं है तो पैसा नहीं आ सकता है.
दूसरी चीज ये हो सकती है कि जिस बैंक अकाउंट में रिफंड आना है, वो वेरिफाइड नहीं है. इससे निपटने का तरीका ये है कि आप चेक कर लें कि बैंक अकाउंट की डिटेल्स सही हैं. अगर बैंक अकाउंट नंबर गलत है, तो उसे अपडेट करना होगा और फिर अकाउंट को वेरिफाई करना होगा. ये सब इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग की वेबसाइट पर लॉग इन करके किया जा सकता है. एक बार ये हो जाने पर, रिफंड को बैंक अकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाएगा.
डिमांड के आधार पर एडजस्टमेंट
इनकम टैक्स विभाग उस रिफंड को भी सेट ऑफ कर सकता है, जो किसी डिमांड के अगेंस्ट है. और जो इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 245 के तहत बकाया है. अगर ये किया जाता है, तो फिर टैक्सपेयर को कुछ नहीं या केवल आंशिक भुगतान मिलेगा, जो पिछले साल के लिए बकाया राशि पर निर्भर होगा.
टैक्सपेयर को सबसे पहले पिछले साल में डिमांड की राशि को चेक करना चाहिए, ये देखने के लिए कि वो वास्तव में सही है. क्योंकि बहुत बार कोई बकाया मामला हो सकता है. अगर पिछली डिमांड के बारे में डिटेल्स सही नहीं है, तो आपको एक रिस्पॉन्स सब्मिट करना होगा कि आप डिमांड से सहमत नहीं है. और इसका कारण भी देना होगा. अगर ये किया जाता है, टैक्स विभाग आपके ऐतराज पर विचार करेगा और आपको सही रिफंड मिल सकता है.
सूचनाओं को कभी नजरअंदाज न करें
एक चीज जो कभी नहीं करनी चाहिए, वो है कि टैक्स विभाग से नोटिफिकेशन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. टैक्सपेयर को ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द जवाब देना चाहिए. उन्हें 15 दिन के अंदर ये करना चाहिए. अगर इसे नजरअंदाज किया जाता है, तो ये समझा जाएगा कि टैक्सपेयर को कोई दिक्कत नहीं है और रिफंड सेटऑफ कर दिया जाएगा. अगर डिमांड रिफंड से ज्यादा है, तो अतिरिक्त राशि का भी भुगतान करना होगा. इसलिए, टैक्सपेयर को ये सुनिश्चित करना होगा कि वो ऐसी डिटेल का जवाब दें और स्थिति साफ करें.
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