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Ravish Kumar Journalism

'Ravish Kumar Journalism' - 23 News Result(s)
  • बिहार के स्कूली छात्रों ने किया कमाल! निकालते हैं अपना ख़ुद का अख़बार, हर ख़बर लिखते हैं

    बिहार के स्कूली छात्रों ने किया कमाल! निकालते हैं अपना ख़ुद का अख़बार, हर ख़बर लिखते हैं

    ट्वीट में प्राप्त जानकारी के अनुसार, ये बच्चे बिहार के बांका जिले के रहने वाले हैं. ये अपना एक अखबरा निकालते हैं. साथ ही साथ रोज छात्र इस अखबार के संपादक भी बनते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये हैंडरिटेन अखबार हैं. इसमें सभी महत्वपूर्ण खबरें लिखी जाती हैं.

  • जज को किसने दी धमकी, क्यों खेल हो गया है जेल...

    जज को किसने दी धमकी, क्यों खेल हो गया है जेल...

    मोहम्मद ज़ुबैर एक ही तरह के दो मामलों में जेल में हैं, उसी तरह के एक मामले में ज़मानत मिल गई है. क्या यह राहत है? सुप्रीम कोर्ट ने जब सीतापुर केस में ज़ुबैर को ज़मानत दी तब चैनलों पर फ्लैश होने लगा कि मोहम्मद को सीतापुर केस में राहत.क्या इस केस में राहत का इस्तेमाल किया जा सकता है ?

  • जेल से जाएगा पत्रकारिता का रास्ता...?

    जेल से जाएगा पत्रकारिता का रास्ता...?

    1989 में हिन्दी के महान साहित्यकार निर्मल वर्मा की एक कहानी प्रकाशित हुई. रात का रिपोर्टर. वक्त मिले तो इस कहानी को पढ़िएगा, आपको आज के उन पत्रकारों की मानसिक हालत दिख जाएगी जो गिनती के दस बीस रह गए हैं और पत्रकारिता कर रहे हैं.

  • कैसे बनती है ख़बर, जो ख़बर नहीं है

    कैसे बनती है ख़बर, जो ख़बर नहीं है

    कई बार टीवी की रिपोर्टिंग में किसी ग़रीब की कहानी उसके आंसुओं के साथ भावुक बना देती है, लेकिन उसमें ग़रीबी के मूल कारणों का ज़िक्र नहीं होता, जिसकी जवाबदेही होनी चाहिए वह सरकार नहीं होती है, उसकी नीतियां नहीं होती हैं. इस तरह से जहां आपकी नज़र होनी चाहिए, वहां से हटाकर रोते हुए ग़रीब पर टिका दी जाती है ताकि उसकी ग़रीबी नीतियों का नतीजा न लगे, उसकी अपनी नाकामी लगे.

  • महंगाई जीने लायक नहीं छोड़ रही, ईमानदार पत्रकारिता मरती जा रही है...

    महंगाई जीने लायक नहीं छोड़ रही, ईमानदार पत्रकारिता मरती जा रही है...

    प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग भारत की सरकार भले न स्वीकार करे कि विश्व गुरु के यहां प्रेस की स्वतंत्रता दुनिया में 150 वें नंबर पर है, लेकिन एस्टोनिया नाम के देश ने खंडन नहीं किया है, जिसे प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग में दुनिया में चौथा स्थान प्राप्त है.

  • खोजी ही नहीं, पूरी पत्रकारिता ग़ायब है, कैमरे में सरकार है, मगर सवाल गायब हैं

    खोजी ही नहीं, पूरी पत्रकारिता ग़ायब है, कैमरे में सरकार है, मगर सवाल गायब हैं

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल में एक भी खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. काशी कवरेज के समय दो दिनों तक लगातार टीवी पर रहते हैं, लेकिन उनके एक सवाल जवाब नहीं होता है. मीडिया में रहने के बाद भी मीडिया के सवालों से इतने दूर. 

  • सूत्रों के अनुसार राजनीतिक पत्रकारिता का अंत हो चुका है

    सूत्रों के अनुसार राजनीतिक पत्रकारिता का अंत हो चुका है

    ख़बरों की दुनिया में सूत्रों को लेकर भूचाल आया हुआ है या तो सूत्र बदल गए हैं या फिर पत्रकार पत्रकार नहीं रहे. सवाल है कि ग़लत जानकारी देने वाले पत्रकार ग़लत जानकारी देने वाले सूत्रों के साथ क्या करते हैं. क्या ग़लत जानकारी देने के बाद भी उन सूत्रों के संपर्क में रहते हैं या नए सूत्र बना लेते हैं जो नए सिरे से ग़लत जानकारी दे सके. एक पाठक और दर्शक के लिए सूत्रों के हवाले से आने वाली ख़बरों और पत्रकारिता के संकट को समझना ज़रूरी हो जाता है ताकि पता रहे कि ख़बरों के लिए जिन ज़रूरी तत्वों पर आप भरोसा करते हैं वह भरोसे के लायक है भी या नहीं.

  • आर्थिक संकट से घिरे देश में विपक्ष और पत्रकारिता की निगरानी करने की खबर भयानक

    आर्थिक संकट से घिरे देश में विपक्ष और पत्रकारिता की निगरानी करने की खबर भयानक

    पेगसस जासूसी कांड में पत्रकारों के अलावा अब विपक्ष के नेताओं के भी नाम आ गए हैं. दि वायर ने रविवार के बाद आज एक और रिपोर्ट छापी है जिसमें इसकी पुष्टि की गई है कि जासूसी के लिए 300 फोन नंबरों की एक सूची बनाई गई थी जिसमें राहुल गांधी के भी दो नंबर शामिल हैं. इसी सूची में राहुल से जुड़े 9 और नंबर डाले गए थे लेकिन राहुल ने नंबर बदल लिया था. राहुल ने वायर से कहा है कि उनके व्हाट्सऐप पर अतीत में संदिग्ध मैसेज आए हैं. जासूसी के लिए ही ऐसा किया जाता है. राहुल ने वायर से कहा है कि “यदि आपकी जानकारी सही है, तो इस स्तर की निगरानी व्यक्तियों की गोपनीयता पर हमले से आगे की बात है. यह हमारे देश की लोकतांत्रिक नींव पर हमला है. इसकी गहन जांच होनी चाहिए और जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उन्हें सजा दी जाए.” राहुल के अलावा उनके सहयोगी अलंकार सवाई, सचिव राव का नाम भी सूची में है. राहुल गांधी के सात गैर राजनीतिक दोस्तों के भी नाम हैं.

  • सिर्फ उम्मीद से पत्रकारिता नहीं चलती है

    सिर्फ उम्मीद से पत्रकारिता नहीं चलती है

    पत्रकारिता बिनाका गीतमाला नहीं है. फरमाइश की चिट्ठी लिख दी और गीत बज गया. गीतमाला चलाने के लिए भी पैसे और लोगों की ज़रूरत तो होती होगी. मैं हर दिन ऐसे मैसेज देखता रहता हूं. आपसे उम्मीद है. लेकिन पत्रकारिता का सिस्टम सिर्फ उम्मीद से नहीं चलता. उसका सिस्टम बनता है पैसे से और पत्रकारिता की प्राथमिकता से. कई बार जिन संस्थानों के पास पैसे होते हैं वहां प्राथमिकता नहीं होती, लेकिन जहां प्राथमिकता होती है वहां पैसे नहीं होते. कोरोना के संकट में यह स्थिति और भयावह हो गई है.

  • बिना इंटरनेट कश्मीर में पत्रकारिता सूनी और डीयू में कैसे जी रहे हैं शिक्षक

    बिना इंटरनेट कश्मीर में पत्रकारिता सूनी और डीयू में कैसे जी रहे हैं शिक्षक

    कश्मीर में आम लोगों के लिए 120 दिनों से इंटरनेट बंद है. पांच अगस्त से इंटरनेट बंद है. कश्मीर टाइम्स की अनुराधा भसीन ने दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि बगैर इंटरनेट के पत्रकार अपना मूल काम नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें छूट मिलनी चाहिए. इस केस को लेकर पहली सुनवाई 16 अगस्त हुई और नवंबर के महीने तक चली. बहस पूरी हो चुकी है और फैसले का इंतज़ार है. मगर बगैर इंटरनेट के कश्मीर के पत्रकार क्या कर रहे हैं. वे कैसे खबरों की बैकग्राउंड चेकिंग के लिए तथ्यों का पता लगा रहे हैं. दुनिया में यह अदभुत प्रयोग हो रहा है. न्यूयार्कर को इसी पर रिसर्च करना चाहिए कि बगैर इंटरनेट के अखबार छप सकते हैं. कश्मीर के न्यूज़ रूम में इंटरनेट बंद है लेकिन सरकार ने पत्रकारों के लिए एक मीडिया सुविधा केंद्र बनाया है.

  • सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा? रवीश कुमार ने दिया ये जवाब

    सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा? रवीश कुमार ने दिया ये जवाब

    मंच से स्पीच देने के बाद सवाल-जवाब सेशन में रवीश कुमार से ऑडियंस में से अनिकेत ने पूछा, ''अगर आप और फिल्मकार अनुराग कश्यप जैसी हस्तियां, जो सवाल पूछती हैं, सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा?'' इस पर रवीश कुमार ने कहा, ''सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार को जवाबदेह नहीं बना रहे हैं, बल्कि सरकार को गैर-जवाबदेह बने रहने में मदद कर रहे हैं. ट्विटर और फेसबुक 'पार्टिसिपेटरी डेमोक्रेसी' का भ्रम पैदा करते हैं, लेकिन वास्तव में ये डेमोक्रेसी को मार रहे हैं.''

  • मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह मेरे माइंडसेट को क्लियर रखता है: रवीश कुमार

    मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह मेरे माइंडसेट को क्लियर रखता है: रवीश कुमार

    उन्होंने कहा, ''मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह आपके माइंडसेट को क्लियर रखता है. मुझे ऐसा दिवंगत पत्रकार प्रभास जोशी ने कहा था. उन्होंने ही मुझे सुझाव दिया था कि रोजाना 2000 शब्द लिखने चाहिए. मुझे लगा कि वह मजाकिया लहजे में कह रहे हैं और मैंने पलटकर उनसे पूछा कि क्या आप ऐसा करते हैं तो उनका जवाब हां में था. उसके बाद से मैं आज भी रोजाना 2000 शब्द से ज्यादा लिखता हूं. कई बार 5000 से ज्यादा बार कई मुद्दों पर लिखता रहता हूं.''

  • UPDATE: NDTV के करोड़ों दर्शकों का शुक्रिया: रैमॉन मैगसेसे अवॉर्ड पर रवीश कुमार

    UPDATE: NDTV के करोड़ों दर्शकों का शुक्रिया: रैमॉन मैगसेसे अवॉर्ड पर रवीश कुमार

    NDTV इंडिया के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार रेमॉन मैगसेसे अवार्ड लेने के लिए फिलीपीन्स की राजधानी मनीला पहुंच चुके हैं. इस अवार्ड की घोषणा 2 अगस्‍त को हुई थी. NDTV के रवीश कुमार को यह सम्मान हिन्दी टीवी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए मिला है. 'रैमॉन मैगसेसे' को एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है. यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है.

  • डराती है रवीश कुमार की पत्रकारिता, उन्हें भी, जो सत्तासीन हैं...

    डराती है रवीश कुमार की पत्रकारिता, उन्हें भी, जो सत्तासीन हैं...

    रवीश ने 19 साल पहले रिपोर्टिंग करना शुरू किया था, और शुरुआत से ही पहचान लिया था कि टेलीविज़न किस्सों का माध्यम है, सो, रवीश ने उन ख़बरों को चुना जो शर्तिया वैसी ही थीं. वैसे किस्से, जिनके चरित्र अपने जैसे लगते थे, जिनकी शुरुआत होती थी, मध्य होता था, अंत होता था. यही खोजी और सच्चाई के पक्षधर के रूप में रवीश की कामयाबी का राज़ है, और यही वजह है मैगसेसे पुरस्कार के रूप में उनकी बड़ी कामयाबी की.

  • पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'

    पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'

    चुनाव आते ही कुछ युवा पत्रकार व्हॉट्सऐप करने लगते हैं कि मुझे चुनाव यात्रा पर ले चलिए. आपसे सीखना है. लड़का और लड़की दोनों. दोनों को मेरा जवाब 'न' है. यह संभव नहीं है. कुछ लोगों ने सीमा पार कर दी है. मना करने पर समझ जाना चाहिए, पर कई लोग नहीं मानते हैं. बार-बार मैसेज करते रहते हैं, इसलिए यहां लिख रहा हूं. यह क्यों संभव नहीं है?

'Ravish Kumar Journalism' - 8 Video Result(s)
'Ravish Kumar Journalism' - 23 News Result(s)
  • बिहार के स्कूली छात्रों ने किया कमाल! निकालते हैं अपना ख़ुद का अख़बार, हर ख़बर लिखते हैं

    बिहार के स्कूली छात्रों ने किया कमाल! निकालते हैं अपना ख़ुद का अख़बार, हर ख़बर लिखते हैं

    ट्वीट में प्राप्त जानकारी के अनुसार, ये बच्चे बिहार के बांका जिले के रहने वाले हैं. ये अपना एक अखबरा निकालते हैं. साथ ही साथ रोज छात्र इस अखबार के संपादक भी बनते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये हैंडरिटेन अखबार हैं. इसमें सभी महत्वपूर्ण खबरें लिखी जाती हैं.

  • जज को किसने दी धमकी, क्यों खेल हो गया है जेल...

    जज को किसने दी धमकी, क्यों खेल हो गया है जेल...

    मोहम्मद ज़ुबैर एक ही तरह के दो मामलों में जेल में हैं, उसी तरह के एक मामले में ज़मानत मिल गई है. क्या यह राहत है? सुप्रीम कोर्ट ने जब सीतापुर केस में ज़ुबैर को ज़मानत दी तब चैनलों पर फ्लैश होने लगा कि मोहम्मद को सीतापुर केस में राहत.क्या इस केस में राहत का इस्तेमाल किया जा सकता है ?

  • जेल से जाएगा पत्रकारिता का रास्ता...?

    जेल से जाएगा पत्रकारिता का रास्ता...?

    1989 में हिन्दी के महान साहित्यकार निर्मल वर्मा की एक कहानी प्रकाशित हुई. रात का रिपोर्टर. वक्त मिले तो इस कहानी को पढ़िएगा, आपको आज के उन पत्रकारों की मानसिक हालत दिख जाएगी जो गिनती के दस बीस रह गए हैं और पत्रकारिता कर रहे हैं.

  • कैसे बनती है ख़बर, जो ख़बर नहीं है

    कैसे बनती है ख़बर, जो ख़बर नहीं है

    कई बार टीवी की रिपोर्टिंग में किसी ग़रीब की कहानी उसके आंसुओं के साथ भावुक बना देती है, लेकिन उसमें ग़रीबी के मूल कारणों का ज़िक्र नहीं होता, जिसकी जवाबदेही होनी चाहिए वह सरकार नहीं होती है, उसकी नीतियां नहीं होती हैं. इस तरह से जहां आपकी नज़र होनी चाहिए, वहां से हटाकर रोते हुए ग़रीब पर टिका दी जाती है ताकि उसकी ग़रीबी नीतियों का नतीजा न लगे, उसकी अपनी नाकामी लगे.

  • महंगाई जीने लायक नहीं छोड़ रही, ईमानदार पत्रकारिता मरती जा रही है...

    महंगाई जीने लायक नहीं छोड़ रही, ईमानदार पत्रकारिता मरती जा रही है...

    प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग भारत की सरकार भले न स्वीकार करे कि विश्व गुरु के यहां प्रेस की स्वतंत्रता दुनिया में 150 वें नंबर पर है, लेकिन एस्टोनिया नाम के देश ने खंडन नहीं किया है, जिसे प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग में दुनिया में चौथा स्थान प्राप्त है.

  • खोजी ही नहीं, पूरी पत्रकारिता ग़ायब है, कैमरे में सरकार है, मगर सवाल गायब हैं

    खोजी ही नहीं, पूरी पत्रकारिता ग़ायब है, कैमरे में सरकार है, मगर सवाल गायब हैं

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल में एक भी खुली प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. काशी कवरेज के समय दो दिनों तक लगातार टीवी पर रहते हैं, लेकिन उनके एक सवाल जवाब नहीं होता है. मीडिया में रहने के बाद भी मीडिया के सवालों से इतने दूर. 

  • सूत्रों के अनुसार राजनीतिक पत्रकारिता का अंत हो चुका है

    सूत्रों के अनुसार राजनीतिक पत्रकारिता का अंत हो चुका है

    ख़बरों की दुनिया में सूत्रों को लेकर भूचाल आया हुआ है या तो सूत्र बदल गए हैं या फिर पत्रकार पत्रकार नहीं रहे. सवाल है कि ग़लत जानकारी देने वाले पत्रकार ग़लत जानकारी देने वाले सूत्रों के साथ क्या करते हैं. क्या ग़लत जानकारी देने के बाद भी उन सूत्रों के संपर्क में रहते हैं या नए सूत्र बना लेते हैं जो नए सिरे से ग़लत जानकारी दे सके. एक पाठक और दर्शक के लिए सूत्रों के हवाले से आने वाली ख़बरों और पत्रकारिता के संकट को समझना ज़रूरी हो जाता है ताकि पता रहे कि ख़बरों के लिए जिन ज़रूरी तत्वों पर आप भरोसा करते हैं वह भरोसे के लायक है भी या नहीं.

  • आर्थिक संकट से घिरे देश में विपक्ष और पत्रकारिता की निगरानी करने की खबर भयानक

    आर्थिक संकट से घिरे देश में विपक्ष और पत्रकारिता की निगरानी करने की खबर भयानक

    पेगसस जासूसी कांड में पत्रकारों के अलावा अब विपक्ष के नेताओं के भी नाम आ गए हैं. दि वायर ने रविवार के बाद आज एक और रिपोर्ट छापी है जिसमें इसकी पुष्टि की गई है कि जासूसी के लिए 300 फोन नंबरों की एक सूची बनाई गई थी जिसमें राहुल गांधी के भी दो नंबर शामिल हैं. इसी सूची में राहुल से जुड़े 9 और नंबर डाले गए थे लेकिन राहुल ने नंबर बदल लिया था. राहुल ने वायर से कहा है कि उनके व्हाट्सऐप पर अतीत में संदिग्ध मैसेज आए हैं. जासूसी के लिए ही ऐसा किया जाता है. राहुल ने वायर से कहा है कि “यदि आपकी जानकारी सही है, तो इस स्तर की निगरानी व्यक्तियों की गोपनीयता पर हमले से आगे की बात है. यह हमारे देश की लोकतांत्रिक नींव पर हमला है. इसकी गहन जांच होनी चाहिए और जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उन्हें सजा दी जाए.” राहुल के अलावा उनके सहयोगी अलंकार सवाई, सचिव राव का नाम भी सूची में है. राहुल गांधी के सात गैर राजनीतिक दोस्तों के भी नाम हैं.

  • सिर्फ उम्मीद से पत्रकारिता नहीं चलती है

    सिर्फ उम्मीद से पत्रकारिता नहीं चलती है

    पत्रकारिता बिनाका गीतमाला नहीं है. फरमाइश की चिट्ठी लिख दी और गीत बज गया. गीतमाला चलाने के लिए भी पैसे और लोगों की ज़रूरत तो होती होगी. मैं हर दिन ऐसे मैसेज देखता रहता हूं. आपसे उम्मीद है. लेकिन पत्रकारिता का सिस्टम सिर्फ उम्मीद से नहीं चलता. उसका सिस्टम बनता है पैसे से और पत्रकारिता की प्राथमिकता से. कई बार जिन संस्थानों के पास पैसे होते हैं वहां प्राथमिकता नहीं होती, लेकिन जहां प्राथमिकता होती है वहां पैसे नहीं होते. कोरोना के संकट में यह स्थिति और भयावह हो गई है.

  • बिना इंटरनेट कश्मीर में पत्रकारिता सूनी और डीयू में कैसे जी रहे हैं शिक्षक

    बिना इंटरनेट कश्मीर में पत्रकारिता सूनी और डीयू में कैसे जी रहे हैं शिक्षक

    कश्मीर में आम लोगों के लिए 120 दिनों से इंटरनेट बंद है. पांच अगस्त से इंटरनेट बंद है. कश्मीर टाइम्स की अनुराधा भसीन ने दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि बगैर इंटरनेट के पत्रकार अपना मूल काम नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें छूट मिलनी चाहिए. इस केस को लेकर पहली सुनवाई 16 अगस्त हुई और नवंबर के महीने तक चली. बहस पूरी हो चुकी है और फैसले का इंतज़ार है. मगर बगैर इंटरनेट के कश्मीर के पत्रकार क्या कर रहे हैं. वे कैसे खबरों की बैकग्राउंड चेकिंग के लिए तथ्यों का पता लगा रहे हैं. दुनिया में यह अदभुत प्रयोग हो रहा है. न्यूयार्कर को इसी पर रिसर्च करना चाहिए कि बगैर इंटरनेट के अखबार छप सकते हैं. कश्मीर के न्यूज़ रूम में इंटरनेट बंद है लेकिन सरकार ने पत्रकारों के लिए एक मीडिया सुविधा केंद्र बनाया है.

  • सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा? रवीश कुमार ने दिया ये जवाब

    सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा? रवीश कुमार ने दिया ये जवाब

    मंच से स्पीच देने के बाद सवाल-जवाब सेशन में रवीश कुमार से ऑडियंस में से अनिकेत ने पूछा, ''अगर आप और फिल्मकार अनुराग कश्यप जैसी हस्तियां, जो सवाल पूछती हैं, सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर देंगी, तो सवाल कौन पूछेगा?'' इस पर रवीश कुमार ने कहा, ''सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार को जवाबदेह नहीं बना रहे हैं, बल्कि सरकार को गैर-जवाबदेह बने रहने में मदद कर रहे हैं. ट्विटर और फेसबुक 'पार्टिसिपेटरी डेमोक्रेसी' का भ्रम पैदा करते हैं, लेकिन वास्तव में ये डेमोक्रेसी को मार रहे हैं.''

  • मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह मेरे माइंडसेट को क्लियर रखता है: रवीश कुमार

    मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह मेरे माइंडसेट को क्लियर रखता है: रवीश कुमार

    उन्होंने कहा, ''मैं रोजाना 2000 से 5000 शब्द लिखता हूं क्योंकि यह आपके माइंडसेट को क्लियर रखता है. मुझे ऐसा दिवंगत पत्रकार प्रभास जोशी ने कहा था. उन्होंने ही मुझे सुझाव दिया था कि रोजाना 2000 शब्द लिखने चाहिए. मुझे लगा कि वह मजाकिया लहजे में कह रहे हैं और मैंने पलटकर उनसे पूछा कि क्या आप ऐसा करते हैं तो उनका जवाब हां में था. उसके बाद से मैं आज भी रोजाना 2000 शब्द से ज्यादा लिखता हूं. कई बार 5000 से ज्यादा बार कई मुद्दों पर लिखता रहता हूं.''

  • UPDATE: NDTV के करोड़ों दर्शकों का शुक्रिया: रैमॉन मैगसेसे अवॉर्ड पर रवीश कुमार

    UPDATE: NDTV के करोड़ों दर्शकों का शुक्रिया: रैमॉन मैगसेसे अवॉर्ड पर रवीश कुमार

    NDTV इंडिया के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार रेमॉन मैगसेसे अवार्ड लेने के लिए फिलीपीन्स की राजधानी मनीला पहुंच चुके हैं. इस अवार्ड की घोषणा 2 अगस्‍त को हुई थी. NDTV के रवीश कुमार को यह सम्मान हिन्दी टीवी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए मिला है. 'रैमॉन मैगसेसे' को एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है. यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है.

  • डराती है रवीश कुमार की पत्रकारिता, उन्हें भी, जो सत्तासीन हैं...

    डराती है रवीश कुमार की पत्रकारिता, उन्हें भी, जो सत्तासीन हैं...

    रवीश ने 19 साल पहले रिपोर्टिंग करना शुरू किया था, और शुरुआत से ही पहचान लिया था कि टेलीविज़न किस्सों का माध्यम है, सो, रवीश ने उन ख़बरों को चुना जो शर्तिया वैसी ही थीं. वैसे किस्से, जिनके चरित्र अपने जैसे लगते थे, जिनकी शुरुआत होती थी, मध्य होता था, अंत होता था. यही खोजी और सच्चाई के पक्षधर के रूप में रवीश की कामयाबी का राज़ है, और यही वजह है मैगसेसे पुरस्कार के रूप में उनकी बड़ी कामयाबी की.

  • पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'

    पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'

    चुनाव आते ही कुछ युवा पत्रकार व्हॉट्सऐप करने लगते हैं कि मुझे चुनाव यात्रा पर ले चलिए. आपसे सीखना है. लड़का और लड़की दोनों. दोनों को मेरा जवाब 'न' है. यह संभव नहीं है. कुछ लोगों ने सीमा पार कर दी है. मना करने पर समझ जाना चाहिए, पर कई लोग नहीं मानते हैं. बार-बार मैसेज करते रहते हैं, इसलिए यहां लिख रहा हूं. यह क्यों संभव नहीं है?

'Ravish Kumar Journalism' - 8 Video Result(s)