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This Article is From Dec 31, 2018

पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 02, 2019 13:20 pm IST
    • Published On दिसंबर 31, 2018 12:04 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 02, 2019 13:20 pm IST

चुनाव आते ही कुछ युवा पत्रकार व्हॉट्सऐप करने लगते हैं कि मुझे चुनाव यात्रा पर ले चलिए. आपसे सीखना है. लड़का और लड़की दोनों. दोनों को मेरा जवाब 'न' है. यह संभव नहीं है. कुछ लोगों ने सीमा पार कर दी है. मना करने पर समझ जाना चाहिए, पर कई लोग नहीं मानते हैं. बार-बार मैसेज करते रहते हैं, इसलिए यहां लिख रहा हूं. यह क्यों संभव नहीं है? पहला कारण यह है कि कितने लोगों को साथ ले जा सकता हूं? हम लोग व्यवस्था से चलते हैं. उसका अपना एक सीमित बजट होता है. गाड़ी में वैसे ही जगह नहीं होती है. क्या मैं बस लेकर चलूं कि लोगों को सिखाना है? फिर तो जहां जाऊंगा, वहीं भगदड़ मच जाएगी. अपनी स्टोरी का हिसाब देना होता है, पहला और आख़िरी फ़ोकस उसे पूरा करने का होता है. इसी को डेडलाइन कहते हैं. हाय-हैलो करने की फ़ुर्सत नहीं होती है, इसलिए मुझे पता है, यह संभव नहीं है. जब मैं रिपोर्टिंग पर होता हूं, तो अपनी कहानी के अलावा कुछ नहीं सूझता.

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दूसरा, कारण यह है कि हम डॉक्टर नहीं है कि ऑपरेशन टेबल पर मरीज़ को लिटाकर वहां आंत और दांत बताने लगें. अपनी स्टोरी पूरी करने की फ़िक्र में ही भागते रहते हैं. जो साथ में होगा, वह वही देखेगा कि यहां रुका. कहां बात किया. इसे देखकर कोई क्या सीखेगा? वैसे भी पूरी प्रक्रिया आप 'Prime Time' में देख सकते हैं. बहुत कम एडिटिंग होती है, इसलिए आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मैंने क्या किया होगा.

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तीसरी बात, नौकरी मांगने में कोई बुराई नहीं है. मैं इससे परेशान नहीं होता हूं. मैं भी जब नौकरी खोजता था, तो 10 लोगों को फ़ोन करता था. मीडिया में नौकरी की प्रक्रिया की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए ऐसा करना पड़ता है. लेकिन आपको एक बात समझनी होगी. मैं नौकरी और इंटर्नशिप को लेकर बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं. इसका कारण यह है कि मैं न्यूज़ रूम के ढांचे का हिस्सा नहीं हूं. जो लोग यह काम करते हैं, वही किसी की भूमिका और ज़रूरत को बेहतर समझते हैं. ट्रेनिंग कराने का गुण उनमें बेहतर होता है, इसलिए मैं कभी भी इंटर्नशिप और नौकरी के मामले में 'हां' में जवाब नहीं देता, क्योंकि मैं 'हां' नहीं कर सकता.

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चौथी बात है कि आप क्या करें? मैं चाहूंगा कि आप सबको काम करने का मौक़ा मिले. मैंने किसी से नहीं कहा कि आपके साथ रहकर सीख लूंगा. मुझे सही में लगता है कि यह बहानेबाज़ी है. हम लोग इतने कम वक़्त में जीते हैं कि वाक़ई किसी से बात करने का वक़्त नहीं होता, सिखाना तो दूर की बात है. क्यों खुद को धोखा देना चाहते हैं? आप क्या करेंगे, आपको तय करना है. मैं जो भी करता हूं, वह सारा का सारा पब्लिक में होता है. कोई गुप्त रहस्य नहीं है.

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मोटा-मोटी आपको पता ही होता है कि एक पत्रकार बनने के लिए क्या करना होता है. फिर भी इसका जवाब बहुत आसान है. रोज़ 2,000 शब्द लिखें और जैसा कि पत्रकार प्रकाश के रे कहते हैं कि रोज़ 100 पेज किसी किताब का पढ़ें. मैं खुद जो पढ़ता हूं, वह पोस्ट कर देता हूं. तो अलग से मेरी कोई सीक्रेट रीडिंग लिस्ट नहीं है. कई लोग किताबों के बारे में लिखते हैं. यह भी कोई गुप्त सूचना नहीं है. कहीं भी जाएं, कुछ लिखने की तलाश में रहें. लोगों से बात करें और रिसर्च करें. आप लिखते रहिए. लिखते-लिखते हो जाएगा. जब तक नौकरी नहीं है, तब तक सोशल मीडिया पर लिखें. लिखना तो पड़ेगा. यह रोज़ का अभ्यास है. आप एक दिन में कुछ नहीं होते. और होना क्या होता है, मुझे समझ नहीं आता. एक झटके में नौकरी चली जाती है और लोग भूल जाते हैं. इसलिए पत्रकार पहले ख़ुद के लिए बनें. जानने की यात्रा पर ईमानदारी से निकल पड़िए, सब अच्छा होगा. डंडी मारेंगे तो धोखा हो जाएगा.

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कुल मिलाकर, ख़ुद को बनाने के लिए किसी एक फैक्टरी की तलाश न करें. अलग-अलग मैदानों में ख़ुद को फैला दें. असली बात आप लोगों को मौक़ा मिलने की है. वे काफ़ी कम हैं. जहां मिल भी जाए और वहां पत्रकारिता न होती हो, तो मैं क्या कर सकता हूं. इतना तो बोला और लिखा. वह भी नौकरी में रहते हुए बोला और अपने प्रोग्राम में भी बोला. आप सभी के लिए दुआ ही कर सकता हूं. फिर इस लाइन को छोड़ दें. नहीं छोड़ सकते, तो तैयारी करते रहें. वह सुबह कभी तो आएगी.

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मैं भी कई लोगों से सीखता हूं. आप भी कई लोगों से सीखें. नए-नए विषयों को समझने वाले युवा रिसर्च स्कॉलर से दोस्ती करें. उनके सामने विनम्र रहें और पूछें. ऐसे बेहतरीन छात्रों की तलाश करें. मैं अपने से आधी उम्र के लोगों से ज़्यादा दोस्ती रखता हूं. उनसे छात्र की तरह सीखता हूं. उन्हें कोई दिक्कत नहीं आती है. जैसे मैं बिज़नेस की ख़बरों से दूर रहता था. दो साल बिज़नेस के अख़बारों को पढ़ा. उनकी चतुराइयों को भी समझा. उन्हीं की सूचनाओं को समझना शुरू किया. जो समझा, उसका हिन्दी में अनुवाद कर फ़ेसबुक पेज पर पोस्ट किया. यह इसलिए कि अगर आप पत्रकार हैं, तो जो भी जानते हैं (ऑफ़ रिकार्ड की शर्तों का आदर करते हुए), उसे साझा करें. प्रतिक्रियाओं को पढ़ा कीजिए. कई लोग आगे आकर कमियां भी बता देते हैं. मेरे पास कोई जड़ी-बूटी नहीं है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
 

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