महंगाई (Inflation) के इस भयंकर दौर में महंगाई की बात इस तरह से हो रही है जैसे यह प्रतिशत में ही सताती है. आंकड़ों में ही नज़र आती है. किसी के घर का चूल्हा कैसे बुझता है और थाली से भोजन कैसे कम हो जाता है, इसकी चर्चा कहीं नहीं है और न कोई तस्वीर नज़र आती है.महंगाई के कारण कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे गए हैं, इसका भी अंदाज़ा नहीं है. अगर मीडिया में छाई तस्वीरों के हिसाब से देखें तो लाउडस्पीकर, पथराव की तस्वीरें हैं तो दूसरी तरफ विदेश में नेताओं से गले मिलते प्रधानमंत्री की तस्वीरें हैं. इसका ज़िक्र इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि आज के अखबारों में महंगाई का ज़िक्र ख़ूब है, रिज़र्व बैंक के गवर्नर का ज़िक्र है, लेकिन महंगाई की कोई तस्वीर नहीं है. ख़बरों में ज़्यादातर प्रधानमंत्री ही नज़र आते हैं. उनके दौरे का ही दौर है. तस्वीरों का ही ज्यादा विश्लेषण है. पुराने समझौतों और नए समझौतों से क्या बदलाव आ रहा है, उसके विश्लेषण बहुत कम है या न के बराबर है. ऐसे में पत्रकार पवन जयसवाल का जाना याद दिलाता है कि पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए. क्यों होनी चाहिए.
आवाज़ कमाल साहब की है जो अब हमारे बीच नहीं हैं और कमाल ख़ान जिस पत्रकार की रिपोर्ट पर रिपोर्ट कर रहे हैं, वह पत्रकार पवन जयसवाल हैं, जिनका आज वाराणसी में निधन हो गया. 38 साल के पवन को कैंसर था.23 अगस्त 2019 को पवन जायसवाल की एक रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई थी. रिपोर्ट यह थी कि जमालपुर स्थित हिनौता ग्रामसभा के सीयूर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को खाने के लिए नमक और रोटी दी जा रही थी. इस रिपोर्ट के बाद ज़िला प्रशासन ने पवन जायसवाल पर मुकदमा कर दिया था. एडिटर गिल्ड व प्रेस क्लब ने भी पवन पर एफआईआर का विरोध किया था. इंद्रेश पांडे ने बताया कि नमक-रोटी खबर बनाने के बाद से ही पवन की जिंदगी में मुसीबत बढ़ गयी.पहले मुकदमे में दौड़-धूप के कारण दुकान का काम बंद हुआ तो अब वह पिछले 8 महीनों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे.
मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ से मिर्ज़ापुर को जानने वाले लोगों में कुछ तो होंगे ही जिन्होंने मिर्ज़ापुर के पवन जयसवाल की यह रिपोर्ट पढ़ी होगी या इसके बारे में सुना होगा. पवन जन संदेश टाइम्स के लिए काम करते थे. FIR ऐसी थी कि निचली अदालत ने ही ख़ारिज कर दिया. उसके बाद से पवन फ्रीलांस के तौर पर काम करते रहे. 25 दिनों से वाराणसी के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे, लेकिन कैंसर उन पर हावी हो गया. जब पवन के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था तब कई पत्रकारों ने आवाज़ उठाई थी कि पवन को फंसाया जा रहा है.हमारे ही सहयोगी आलोक पांडे ने पवन का एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें पवन कह रहे थे कि उन्होंने जो देखा वही रिपोर्ट किया.
आज कल इस देश में बात-बात में गर्व करने की सनक चढ़ी हुई है, इसलिए पवन जायसवाल की खबर बताई ताकि जब आप विदेश जाएं और NRI अंकलों से मिलें तो बता सकें कि भारत में पवन जायसवाल नाम के पत्रकार भी होते हैं जो सीमित कमाई के बाद भी जनता की खबरें करते हैं, नौकरी से निकाल दिए जाते हैं, और कैंसर के इलाज में उनके परिवार का काफी कुछ बिक जाता है. तमाम हमलों के बाद भी पवन अपनी रिपोर्ट पर कायम रहे जब पवन जायसवाल का इलाज चल रहा था तब कई पत्रकारों ने उनकी मदद की. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी एक लाख रुपये की मदद की . बहुत लोगों ने मदद की फिर भी पूरी न हो सकी. पवन का परिवार कर्ज़ में डूब गया है. पवन के दो बच्चे हैं, पत्नी हैं, मां हैं. मां और पत्नी के ज़ेवर तक बिक गए हैं. अहरौरा गांव के लोगों को अपने पत्रकार पर गर्व है.
प्रेस की स्वतंत्रता (Press Freedom in India) की रैकिंग भारत की सरकार भले न स्वीकार करे कि विश्व गुरु के यहां प्रेस की स्वतंत्रता दुनिया में 150 वें नंबर पर है, लेकिन एस्टोनिया नाम के देश ने खंडन नहीं किया है, जिसे प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग में दुनिया में चौथा स्थान प्राप्त है. पिछली बार एस्टोनिया 15 वें स्थान पर था लेकिन इस बार पूरी दुनिया में चौथे स्थान पर आ गया है. एस्टोनिया में 1857 से एक अख़बार चल रहा है जिसका नाम पोस्टाईमीज़ है. मतलब पोस्टमैन. एक और अखबार है- जिसका नाम तरबिजा है मतलब आधिकारिक जर्नल. यह अखबार 1901 से चल रहा है.
एस्टोनिया के अख़बार का ज़िक्र हुआ है तो एक घटना का भी करना चाहिए जिससे अंदाज़ा मिले कि वहां क्या हो रहा है. मिसाल के तौर पर इस खबर की बात कर सकते हैं. एस्टोनिया की एक अदालत ने वहां के अखबार एस्ती एक्सप्रेस के दो पत्रकारों पर जुर्माना लगा दिया. एक हज़ार यूरो का. पत्रकार ने वहां के सबसे बड़े बैंक के पूर्व अधिकारी की पड़ताल की जिस पर मनी लौंड्रिंग का शक था. कोर्ट ने माना कि ख़बर में जो तथ्य दिए गए थे वे सही हैं, लेकिन राष्ट्रहित में नहीं छापा जाना चाहिए था. भारत में इस तरह के कई हित निकाल लाए जाते हैं. खबरों को सेंसर करने के लिए. तो एस्टोनिया के कोर्ट के आदेश के बाद भी अखबार ने लिखा कि अदालत तय नहीं करेगी कि मीडिया किस मुद्दे को जनता के सामने लाए. अखबार अपनी बात पर अड़ा रहा कि उनकी रिपोर्ट सही है.
अखबार ने कहा कि कोर्ट कैसे तय कर सकता है कि मीडिया क्या छापे और क्या नहीं छापे. इससे पता चलता है कि वहां का मीडिया कितना स्वतंत्र है औऱ अपनी स्वतंत्रता के लिए कितना निर्भीक है. कोर्ट के आदेश के बाद भी अखबार ने इस पर लेख लिखा और अपने प्रेस होने का अहसास कराया.इससे पता चलता है कि वहां का मीडिया अदालत के सामने भी रीढ़ सीधी कर सकता है. होम लोन कितना बढ़ेगा. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सैकत नियोगी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस किसी ने 50 लाख का लोन बीस साल के लिए लिया है और ब्याज दर 7 प्रतिशत से नीचे है उसे EMI 38,765, देनी पड़ती है जो बढ़कर 39,974 हो जाएगी. महीने में 1209 रुपये ज़्यादा देने होंगे.
इसी खबर को दिव्य भास्कर ने दूसरे तरीके से देखा है. दिव्य भास्कर ने तो अच्छे दिन को उल्टा लिख दिया है.लिखा है कि 1 करोड़ 30 लाख गुजरातियों ने 7 लाख 23 हज़ार करोड़ का लोन लिया हुआ है. ब्याज दर बढ़ने से सालाना 3600 करोड़ का भार बढ़ेगा. इतनी मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं थी बल्कि अभी भी महंगाई की कहानी सस्ती की खुशफहमी में बदली जा सकती है. सोचिए कि अगर हाउसिंग सोसायटी और रिश्तेदारों के व्हाट्सएप ग्रुप में यह जानकारी वायरल करा दी जाए कि महंगाई तो पूरी दुनिया में है, और भारत से कहीं ज़्यादा है, तो मारे खुशी के लोग झूमने लगेंगे. उन्हें महंगाई पर गर्व होने लगेगा कि पूरी दुनिया की तुलना में तो भारत में मुद्रा स्फीति काफी कम है. इसलिए बताना ज़रूरी है कि टर्की में अप्रैल में महंगाई दर 69.9 प्रतिशत है.
अर्जेंटीना में मुद्रास्फीति 55.1 प्रतिशत हो गई है. रूस में 16.7 प्रतिशत है. यूरोज़ोन में मुद्रास्फीति ऐतिहासिक स्तर पर है. यहां मुद्रास्फीति की दर 7.5 प्रतिशत है आस्ट्रेलिया में 2010 के बाद ब्याज दर में बढ़ोत्तरी की गई है. एक साल पहले अमरीका मे मुद्रा स्फीति 2.6 प्रतिशत थी लेकिन इस साल मार्च में 8.5 प्रतिशत हो गई. फ्रांस में 1985 के बाद मुद्रास्फीति सबसे अधिक हो गई है. 4.8 प्रतिशत है.
भारत के लोग पहले से ही महंगाई का सामना कर रहे हैं और अच्छे तरीके से कर रहे हैं. हज़ार दो हज़ार EMI बढ़ने से उनके बजट पर बुरा असर तो पड़ेगा लेकिन क्या जनता ने पिछले साल ही 100 रुपये लीटर पेट्रोल भरा कर महंगाई का समर्थन नहीं किया था. अब तो हमने दुनिया भर का डेटा भी दे दिया कि हर देश में महंगाई का संकट है. यह सोच कर लोग सह भी लेंगे. भारतीय रिज़र्व बैंक के फैसले को लेकर कई लेख छपे हैं. इसमें एक लेख एंडी मुखर्जी का है. जिनका कहना है कि फरवरी में रिज़र्व बैंक ने एक अनुमान दिया कि मार्च 2023 तक महंगाई 4.5 प्रतिशत रहेगी. मतलब ज़्यादा नहीं होगी.
उनका कहना था कि ये हाल था रिज़र्व बैंक का जबकि प्राइवेट संस्थाएं भी महंगाई के 6 प्रतिशत तक जाने की बात कर रही थीं. अब तो कई जगहों पर छपा है कि अप्रैल में महंगाई की दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक हो सकती है. दो साल से महंगाई बढ़ रही है लेकिन आप वित्त मंत्री के पुराने बयानों को उठाकर देखिए, वे कह रही हैं कि महंगाई नियंत्रण में हैं. रिज़र्व बैंक के फैसले के बाद शायद कहना मुश्किल हो जाए. 21 अप्रैल का बयान है वित्त मंत्री का, इसे सुनिए फिर याद कीजिए कि सरकार ने आम आदमी को महंगाई से राहत देने के लिए क्या किया है.
ऐसा नहीं है कि लोग नहीं समझते कि महंगाई क्यों है, शायद वे यह भी जानते हैं कि इस पर बात ही रही है, कम तो होती नहीं, फिर भी इस दौर में हम इस बात से अनजान हैं कि महंगाई ने उनके जीवन पर कैसा असर डाला है. आम लोग महंगाई से कैसे लड़ रहे हैं. क्या आप जानते हैं कि 24 मई तक भारतीय रेल ने गाड़ियों के करीब 1100 फेरे रद्द किए हैं. पैसेंजर और मेल ट्रेनों के रद्द होने से आम लोगों के जनजीवन पर क्या असर पड़ा होगा इसकी भी जानकारी नहीं है. क्या यही विकल्प था या यही एकमात्र कारण था, इस पर कितनी कम चर्चा है.
कोविड के दूसरे लहर की याद आज भी उन घरों में जस की तस है जहां लोगों की मौत हुई है.मध्य प्रदेश के सिवनी में गोकशी के शक में दो आदिवासियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई लेकिन जांच से पहले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र ने बजरंग दल को क्लीन चिट दे दी.. स्थानीय विधायक और लोगों ने हत्या का आरोप बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर लगाया है यहां तक की स्थानीय थाना प्रभारी ने भी आरोपियों के बजरंग दल और राम सेना से संबंधित होने की बात कही थी.
कोरोना की दूसरी लहर की याद उन घरों में आज भी वैसी ही है जिनमें कई लोगों की जान नहीं बच सकी. इस दौरान उन परिवारों पर क्या बीती है, वही जानते हैं. पूजा भारद्वाज की रिपोर्ट बता रही है कि किसी महिला के लिए मुआवज़ा पाना और तमाम कागज़ी ज़रूरतों को पूरा करना कितना मुश्किल काम है. यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि रूसी सैनिकों ने चार लाख टन अनाज चुरा लिए हैं. बताइये ये सब होने लगा है. धान-गेहूं लूट रहे हैं सब. कुछ दिन में आरोप लगेगा कि पाकेट मार रहे हैं. जब रूस को यही सब करना है तो युद्ध बंद कर देना चाहिए. युद्ध बंद नहीं होने से उन ग्लोबल नेताओं की नेतागीरी चल रही है जो केवल बयान दे रहे हैं कि युद्ध बंद हो लेकिन हो कुछ नहीं रहा है. युद्ध जारी है.