Bihar | प्रियदर्शन |शुक्रवार दिसम्बर 6, 2019 05:12 PM IST क्या एक बर्बरता का जवाब दूसरी बर्बरता हो सकती है? क्या किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी जमात को ये इजाज़त दी जा सकती है कि वह अपनी मर्ज़ी से गुनहगारों को पकड़े, चार दिन हिरासत में रखे और पांचवें दिन गोली मार दे? फिर इसमें और उस मॉब लिंचिंग में क्या अंतर है जो पिछले वर्षों में कभी गो-तस्करी, कभी बच्चा-चोरी और कभी किसी बहाने हम अपने चारों तरफ़ होता देखते रहे हैं?