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मां के अस्त्र-शस्त्र पोशाक में रहते हैं गायब, राजस्थान के माता राजराजेश्वरी मंदिर की कहानी सीना चौंड़ा कर देगी

युद्ध में विजय दिलाने वाली और राज कराने वाली मां राजराजेश्वरी का भव्य मंदिर जयपुर में विराजमान हैं. यही कारण है कि माता के दरबार में बड़ी संख्या में भक्त माथा टेकने आते है. आमेर से रोहन शर्मा की रिपोर्ट

मां के अस्त्र-शस्त्र पोशाक में रहते हैं गायब, राजस्थान के माता राजराजेश्वरी मंदिर की कहानी सीना चौंड़ा कर देगी
मां राजराजेश्वरी
Jaipur:

राजधानी जयपुर के आमेर-दिल्ली राजमार्ग पर करीब 500 मीटर अंदर मानबाग के सुरम्य वन क्षेत्र की पहाड़ी पर युद्ध में विजय दिलाने वाली और राज कराने वाली मां राजराजेश्वरी का भव्य मंदिर विराजमान हैं. यही कारण है कि माता के दरबार में बड़ी संख्या में भक्त माथा टेकने आते है. खासतौर पर नवरात्रि में तो भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिर के पीछे की तरफ बना विशाल पहाड़ हरियाली की चादर ओढ़े ढाल की तरह खड़ा है. लोग आज भी यहां अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाने के लिए आते हैं. शुरू से ही संतों की तपोभूमि होने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को मानसिक शांति भी मिलती है. 

मराठों पर जीत की याद दिलाता है मंदिर

मंदिर के पुजारी बद्रीपुरी ने बताया कि जब मराठों की सेना जयपुर पर हमला करने आई. तब जयपुर की सेना ने तूंगा के पास मराठों से जमकर मुकाबला किया. मराठों का हमला तेज होने लगा, तब महाराजा प्रताप सिंह बंदी बनाए जाने के डर से युद्ध क्षेत्र से निकलकर गुर्जर घाटी में प्रभातपुरी की एक की गुफा की तरफ आ गए. जहां उनका परिचय सिद्ध संत अमृतपुरी महाराज से हुआ. संत ने महाराजा को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया और कहा कि है राजन राज-राजेश्वरी माता तुम्हारे साथ है वही तुम्हें इस युद्ध में विजय दिलाएगी. जीत के बाद यहां माता के मंदिर का निर्माण करवाना है. महाराजा ने वापस से युद्ध भूमि में जाकर युद्ध किया और विजयश्री प्राप्त की. 1780 के लगभग महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने आमेर रोड स्थित मानबाग में राज राजेश्वरी माता के मंदिर का निर्माण करवा कर विधि-विधान से माता की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई. 

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राजराजेश्वरी मां के सिर्फ मुखारविंद के होते दर्शन

पुजारी महेशपुरी ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में मां जगदम्बा की अष्टभुजाधारी प्रतिमा हैं. मां के दायीं और के चारों हाथों में खड़क, त्रिशुल, कृपाण और माला व पक्षी है, तो बाएं और के तीन हाथों में मां सर्प, तीर-कमान, राक्षस की चोटी धारण किए हुए हैं वही चौथा हाथ पक्षी पर रखा हुआ है. मां के किसी भी शस्त्र के दर्शन भक्तों को नहीं कराए जाते हैं. सभी हाथ पोशाक के अंदर अदृश्य रहते हैं. मातेश्वरी के अलावा अलग-अलग मंदिरों में आठ भुजाओं के भैरवनाथ और दस भुजा वाले हनुमानजी की अति दुर्लभ मूर्तियां भी हैं. मंदिर परिसर में ही पांच मुख के भगवान शिव एवं माता के सामने गणेशजी व सूर्य भगवान विराजमान हैं.

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सच्चे मन से मांगी मुराद माता करती पूरी

स्थानीय निवासी देवी सैनी ने बताया कि यह सिद्ध मंदिर है, सच्चे मन से मांगी गई मुराद माता जरुर पूरी करती हैं. महंत परिवार की वर्तमान में यहां 11वीं पीढ़ी माता रानी की सेवा पूजा कर रही है, शुरू से ही संतों की तपोभूमि होने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को मानसिक शांति भी मिलती है.

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