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लालू प्रसाद यादव पर लगा था EBC आरक्षण को कमजोर करने का आरोप, अपने ही हो गए थे खिलाफ

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 1992- 93 में बिहार में मंडल आरक्षण लागू करने की घोषणा की थी, तब इसका भारी विरोध हुआ था. पार्टी के कई नेता भी लालू प्रसाद यादव के खिलाफ हो गए थे. 

लालू प्रसाद यादव पर लगा था EBC आरक्षण को कमजोर करने का आरोप, अपने ही हो गए थे खिलाफ
लालू प्रसाद यादव पर ही अति पिछड़ा आरक्षण को कमजोर करने का आरोप लगा था. (फाइल फोटो)
  • बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन ने EBC एक्ट लागू करने और आरक्षण बढ़ाने सहित दस महत्वपूर्ण ऐलान किए हैं
  • 1992-93 में लालू प्रसाद यादव ने मंडल आरक्षण लागू करने की घोषणा की थी, जिसके खिलाफ पार्टी के कई नेता हो गए थे.
  • नीतीश कुमार तब कहा था कि कर्पूरी फार्मूले पर आधारित आरक्षण को खत्‍म करने की कोशिश हुई तो सड़कों पर उतरेंगे.
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पटना :

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन ने अपना EBC एजेंडा जारी कर दिया है. SC/ST एक्ट की तर्ज पर EBC एक्ट लागू करने, पंचायती राज और नगरीय निकाय चुनाव में आरक्षण को 20 से बढ़ाकर 30 % करने समेत 10 ऐलान किए हैं. कोशिश है कि इन ऐलानों के जरिए 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग को साधा जाए. एजेंडा जारी करने के कार्यक्रम में तेजस्वी यादव ने अति पिछड़ा आरक्षण के इतिहास पर बात की. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी ने अति पिछड़ों की भागीदारी सुनिश्चित की, लेकिन यह दिलचस्प है कि लालू प्रसाद यादव पर ही अति पिछड़ा आरक्षण को कमजोर करने का आरोप लगा था और उनका भारी विरोध हुआ था. 

उस दौर में बिहार में पिछड़े वर्ग के लिए मुंगेरीलाल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. कर्पूरी आरक्षण के इस फार्मूले में पिछड़ों के लिए 8 और अति पिछड़ी जातियों के लिए 12 फीसदी आरक्षण लागू किया गया था. 

लालू के खिलाफ हो गए थे कई नेता

1992- 93 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार में मंडल आरक्षण लागू करने की घोषणा की थी, तब इसका भारी विरोध हुआ था. पार्टी के कई नेता भी लालू प्रसाद यादव के खिलाफ हो गए थे. 

दरअसल, कर्पूरी आरक्षण में अति पिछड़ी जातियों के लिए अलग से कोटा निर्धारित था, लेकिन मंडल कमीशन में ऐसा कोटा नहीं बनाया गया था. इसलिए नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी सरीखे नेता उनके फैसले के खिलाफ हो गए. 1993 में कर्पूरी जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में नेताओं ने विरोध किया. तब नीतीश कुमार ने यह तक कहा था कि अगर कर्पूरी फार्मूले पर आधारित आरक्षण को समाप्त करने की कोशिश हुई तो हम सड़कों पर उतरेंगे. 

ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया फैसला

पार्टी में विरोध को देखकर यह फैसला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. हालांकि विरोधियों ने लालू प्रसाद यादव को अति पिछड़ा विरोधी और एक जाति का नेता बताने की कोशिश की. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने बिहार विधान परिषद में कई अति पिछड़ी जाति के नेताओं को भेजा था. 

हालांकि लालू प्रसाद यादव की जीवनी "द किंग मेकर, लालू प्रसाद की अनकही दास्तान" लिखने वाले राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयंत जिज्ञासु इन आरोपों को नकारते हैं. वे कहते हैं, "कर्पूरी ठाकुर द्वारा 1978 में दिए गए आरक्षण की सीमा 12 वर्षों तक नहीं बढ़ी. लालू प्रसाद मुख्यमंत्री हुए तो अति पिछड़ों का आरक्षण 12 फीसदी से बढ़ाकर उन्होंने 14 फीसदी और पिछड़ों का आरक्षण 8 फीसदी से बढ़ा कर 12 फीसदी किया था, वहीं 10 साल बाद राबड़ी देवी ने झारखंड के अलग प्रांत बनने के बाद अति पिछड़ों का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ा कर 18 फीसदी किया था." 

लालू यादव पर आरोप निराधार: जयंत जिज्ञासु

उन्‍होंने कहा, "इसी को आगे बढ़ाते हुए, तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद के संघर्षों को बढ़ाते हुए बिहार में जाति आधारित गणना कराई और आरक्षण की सीमा बढ़ा कर 65 फीसदी तक पहुंचाया. अति पिछड़ों का आरक्षण बढ़ा कर 25 फीसदी किया. यह बगैर प्रतिबद्धता के संभव नहीं है. इसलिए लालू प्रसाद यादव पर इस तरह के आरोप निराधार हैं."

महागठबंधन ने अपना EBC एजेंडा जारी करते हुए कहा कि आरक्षण की देखरेख के लिए उच्च अधिकार प्राप्त आरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा और आरक्षण की 50% की सीमा को बढ़ाने वाले कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची मे शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा, जिससे आरक्षण पर कोई आंच न आए. 

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