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70 साल की दादी को पीठ पर लादकर क्यों ले जा रहा पोता? कहानी रुला देगी

70 साल की बीमार दादी, पोते की पीठ और 1 किलोमीटर का कच्चा पथरीला रास्ता. यह किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि सिरोही जिले के आबू रोड ब्लॉक में स्थित निचलागढ़ गांव की दिल दहला देने वाली हकीकत है. कोमल यादव की रिपोर्ट

70 साल की दादी को पीठ पर लादकर क्यों ले जा रहा पोता? कहानी रुला देगी
सिरोही, राजस्थान:

70 साल की बीमार दादी, पोते की पीठ और 1 किलोमीटर का कच्चा पथरीला रास्ता. यह किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि सिरोही जिले के आबू रोड ब्लॉक में स्थित निचलागढ़ गांव की दिल दहला देने वाली हकीकत है. आजादी के 75 साल बाद भी, सोलंकीफली गांव में रहने वाले कालाराम को अपनी बीमार दादी सोमी बाई को इलाज के लिए पीठ पर लादकर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ा. यह तस्वीर उन सरकारी दावों को आईना दिखाती है, जिनमें देश के हर कोने तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने की बात कही जाती है.

42 साल से एक ही PHC के भरोसे है पूरा इलाका
तस्वीरों में देखा जा सकता है कि पोता कालाराम 70 वर्षीय बीमार दादी सोमी बाई को पीठ पर लाद चल रहा है. वह एक किलोमीटर कच्चे मार्ग पर चलकर मुख्य सड़क पर पहुंचा था. फिर दादी को कुछ ही दूरी पर स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र पर ले गया. आबू रोड का निचलागढ़ आदिवासी बहुल भाखर क्षेत्र का हिस्सा है. यहां के ग्रामीण सालों से मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. सबसे बड़ी समस्या प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं की है. ब्लॉक में 1983 के बाद से एक भी नया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) नहीं खुला है. इसका मतलब है कि 42 साल से पूरा ब्लॉक सिर्फ एक PHC और कुछ नाम मात्र के उप-स्वास्थ्य केंद्रों के सहारे चल रहा है. ग्रामीणों को छोटी-मोटी बीमारी के इलाज के लिए भी कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, या फिर गुजरात की तरफ रुख करना पड़ता है.

rajasthan news

दादी को पीठ पर लादकर ले जाता पोता.

ग्रामीणों कहते-कहते थक गए, लेकिन नतीजा सिफर
टीएसपी आबू रोड ब्लॉक की 32 में से 30 ग्राम पंचायतों के लोग दशकों से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही. इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे PHC खोलने की मांग करते-करते थक गए हैं, लेकिन सरकारी तंत्र और स्थानीय नेताओं की उदासीनता ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। इस एक घटना ने दिखा दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं की कमी किस तरह ग्रामीणों की जिंदगी को जोखिम में डाल रही है.

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