दागना कुप्रथा ने मध्यप्रदेश के शहडोल में दो दिन में दो बच्चों की जान ले ली. मौत के बाद सरकार ने कुछ छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई की. कुछ को कारण बताओ नोटिस जारी किया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आश्वस्त किया है कि पूरे मामले में कानून सम्मत कार्रवाई होगी. लेकिन सवाल है कि क्या कार्रवाई की परिधि में छोटे कर्मचारी ही आते हैं ?
तीन महीने की रुचिता कोल को सांस लेने में दिक्कत थी. इलाज के नाम पर उसे 51 बार गर्म सलाखों से दागा गया, जिससे उसकी हालत गंभीर हो गई और अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. इस संबंध में रोशनी कोल ने बताया कि बच्ची के बीमार होने पर उसने चमनिया (एक तरह की जाति, जिससे ताल्लुक रखने वाले लोग बच्चों का कथित घरेलू उपचार करते हैं) को बुलाया. उसने कहा कि बच्ची को दागना पड़ेगा. इस पर उसने कहा कि ऐसा करने से आंगनबाड़ी में मना किया गया है. लेकिन फिर सोचा कि क्या करूं, बच्ची रो रही है.
इधर, ढाई महीने की शुभी कोल को भी इलाज के नाम पर 24 बार दागा गया, जिससे उसकी भी मौत हो गई. शुभी के पिता सूरज कोल ने कहा कि बच्ची को निमोनिया हो गया था. वो मेडिकल कॉलेज में 2-3 दिन भर्ती रही, वहां से उसे निजी अस्पताल लेकर गए. वहां भी समझ नहीं आया तो उसे घर लेकर जा रहे थे. इसी दौरान उसने दम तोड़ दिया.
इस घटना के बाद प्रशासन ने सामतपुर और कठोतिया गांव की आशा कार्यकर्ता और सहयोगी की सेवाएं समाप्त कर दीं. 8 कर्मचारियों का ट्रांसफर कर दिया और एक डॉक्टर को कारण बताओ नोटिस थमा दिया.
कार्रवाई के संबंध में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि शहडोल में बच्ची की दागने से मौत हुई है. विधि अनुसार कार्रवाई होगी. लाडली बहन योजना सिर्फ योजना नहीं है बहन के खाते में पैसे जाएंगे तो परिवार कल्याण में लगाएंगी.
इधर, कांग्रेस प्रवक्ता संगीता शर्मा ने कहा कि सरकार 5 दिनों में 5000 करोड़ कर्ज ले चुकी है. मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. ये सरकार का दुर्भाग्य है जो ना बच्चों का ख्याल रख रही है ना आदिवासी भाई-बहनों का.
आपोरों की सत्यता जांचने के लिए एनडीटीवी की टीम कठौतिया गांव पहुंची, जहां के सामुदायिक केन्द्र पर ताला जड़ा है. रंग-रोगन चटक है, लेकिन अंदर व्यवस्था वेंटिलेटर पर. केवल उप स्वास्थ्य केंद्र है, जहां सिर्फ ANM तैनात हैं. मंगलवार को टीका लगता है. बीमारी में भी 40 किलोमीटर दूर शहडोल ज़िला मुख्यालय जाना होता है, जिसका किराया 100 रुपये है.
रुचिता के पिता रोहित कोल ने कहा कि हमारे यहां कोई सुविधा नहीं है. रोगियों को इलाज के लिए दूर लेकर जाना पड़ता है. कभी अमराहा तो कभी शहडोल. वहीं, ग्रामीण रूकैय्या बाई ने कहा कि जब बीमार पड़ते हैं तो अमराहा या शहडोल जाते हैं. पिछले साल मई जून में अपने बहू को प्रसव के लिए ले गए थे. पर वहां भी आशा कार्यकर्ता आती ही नहीं. रोगी मर जाएं तो मर जाएं.
दागने के कारण मरी शुभी सामतपुर की थी, यहां स्वास्थ्य केन्द्र में रंग रोगन चल रहा है. ग्रामीण श्यामलाल कोल का कहना है कि गांव के लोग ईश्वर के भरोसे रहते हैं. नहीं तो शहडोल जाते हैं. साधन रहा तो अमराहा लेकर गए. नहीं तो झोलाछाप के पास. वहीं, ग्रामीण संतोष चौधरी ने कहा कि हमारे यहां अस्पताल की व्यवस्था सही नहीं है. शहडोल या सिंहपुर जाना पड़ता है.
गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो ग्रामीण स्वास्थ्य के आंकड़े दिए हैं, उसमें मध्यप्रदेश सबसे निचली पायदान पर है. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 95% पद खाली हैं.
यह भी पढ़ें -
भूकंप से दहले तुर्की में तलाश-राहत टीमें और राहत सामग्री भेजेगा भारत
सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर यूपी सरकार को दिया बड़ा आदेश
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं